केतु की महादशा के प्रभाव और उपाय
Ketu Mahadasha Effects and Remedies
जीवन का एक दौर ऐसा होता है, जब बहुत अधिक संभावनाओं पर काम चल रहा होता है, सुबह से शाम तक काम में लगातार फंसे होते हैं, चाहे प्रोजेक्ट पर काम हो या बिजनेस में, नौकरी में काम हो या परिवार में, लगातार लंबे समय तक काम करने के बावजूद न तो काम खत्म होता दिखाई देता है और न ही काम के अनुरूप प्रगति दिखाई देती है। एक सीमा के बाद जूझते रहने से फ्रस्ट्रेशन होने लगता है। यह केतु की महादशा अथवा अंतरदशा का दौर हो सकता है। केतु की महादशा (Ketu Mahadasha) 7 साल की और अंतरदशा 11 महीने से सवा साल तक की होती है।
केतु की महादशा बुध और शुक्र के बीच में आती है, यानी पहले बुध की महादशा होती है, फिर केतु के सात साल और बाद में शुक्र के बीस साल। आमतौर पर बहुत खराब स्थिति न हो तो बुध और शुक्र की महादशाएं उत्तम ही होती हैं, ऐसे में बीच में आया केतु का स्टेगनेशन पीरियड बुरी तरह झुंझला देने वाला होता है। इस लेख में हम बात करेंगे केतु महादशा की प्रकृति (Nature and Effects of Ketu Mahadasha), उसकी महादशा और उपायों के बारे में…
केतु अपनी प्रकृति से ही मोनोटोनस है, अगर ज्योतिषीय मिथकों की मानें तो समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीने के लिए एक राक्षस अपना रूप बदलकर देवताओं की कतार में आ बैठता है, इस राक्षस के मुंह में अमृत की बूंद जाने के साथ ही सूर्य और चंद्रमा उसे पहचान लेते हैं और भगवान विष्णु को आगाह करते हैं। श्रीहरि तुरंत ही सुदर्शन चक्र से राक्षस का सिर और धड़ अलग कर देते हैं। राक्षस का सिर भाग राहु बनता है और धड़ भाग केतु।
राक्षस का मूल स्वरूप कुछ इस प्रकार बतलाया गया है कि सिर भाग आम इंसान जैसा होता है और धड़ भाग सर्प की तरह। धड़ अलग होकर पूंछ के रूप में जीवित रहता है। चूंकि सूर्य और चंद्रमा ने श्रीविष्णु से चुगली की थी, इसका खामियाजा भी सूर्य और चंद्रमा को भुगतना पड़ता है। राहु सूर्य को ग्रहण लगाता है और केतु चंद्रमा को।
अगर ज्योतिषीय गणित की बात करें तो सूर्य और चंद्रमा को पृथ्वी पर खड़ा जातक एक ऑब्जर्वर की तरह देखे तो आसमान में सूर्य और चंद्रमा के चक्कर लगाते हुए पथ दिखाई देंगे। इन दोनों के पथ उत्तर तथा दक्षिण दिशा में एक दूसरे को संपात कोण से काटते हैं। इसमें से उत्तरी पथ के संपात कोण को राहु या नॉर्थ नोड नाम दिया गया है और दक्षिण के संपात कोण को केतु नाम दिया गया है। चूंकि सूर्य और चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं, इसी कारण राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं।
केतु की महादशा और अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha and Antardasha
फलित ज्योतिष के कोण से केतु के पास दिमाग नहीं है, केवल धड़ वाला भाग है। जिस जातक की कुण्डली में केतु की महादशा अथवा अंतरदशा चल रही हो, वह समय जातक के लिए बिना दिमाग लगाए काम करने का दौर होता है। यही कारण है कि केतु की महादशा (Ketu Ki Mahadasha) के दौर में काम तो बहुत होता है, लेकिन परिणाम हासिल नहीं होते। पूर्ववर्ती बुध की महादशा (Budh Ki Mahadasha) में धीमी गति से ही सही लेकिन लगातार प्रगति होती है और योजनाएं बनाने का दौर चलता है। केतु की महादशा (Ketu Mahadasha or Antardasha) शुरू होने के साथ ही सभी प्रोजेक्ट या तो जहां के तहां खड़े हो जाते हैं, अथवा उससे होने वाले लाभ की मात्रा न्यूनतम पर आ जाती है। केतु की महादशा बीतने के साथ ही फिर से लाभ का दौर शुरू हो जाता है और प्रयासों का उचित परिणाम मिलने लगता है। ऐसा नहीं है कि केतु की महादशा के दौरान किए गए प्रयास मिथ्या हो जाते हैं, उनका लाभ बहुत बार आगामी शुक्र की महादशा में मिलने लगता है, लेकिन ठीक केतु की महादशा का दौर यह लाभ नहीं मिलने देता।
जातक पर केतु की महादशा का प्रभाव
Ketu Mahadasha Effects on Jatak
ज्योतिष में छह नक्षत्रों में पैदा हुए जातकों को गंडमूल नक्षत्र का जातक कहा जाता है। इनमें से तीन नक्षत्र यथा अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र केतु के आधिपत्य के नक्षत्र हैं। ज्योतिष में इन नक्षत्रों को न केवल जातक के लिए बल्कि अभिभावकों के लिए भी कष्टकारक बताया गया है। यही कारण है कि गंडमूल नक्षत्र में पैदा हुए जातक के जन्म के 27 दिन के भीतर नक्षत्र पूजन की सलाह दी जाती है। लग्न में केतु (Ketu Lagna) वाला जातक कुछ चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। अगर कुण्डली में केतु महत्वपूर्ण स्थिति में बैठा हो, केतु के नक्षत्र (Ketu Nakshtra) में कई ग्रह हों अथवा केतु खुद कारक ग्रह के नक्षत्र में हो तो जातक एक सीध में काम करने वाला अतिमहत्वाकांक्षी जातक होता है।
केतु की महादशा के उपाय
Ketu Mahadasha Remedies
केतु द्विरंगी ग्रह बताया जाता है। ऐसे में सामान्य तौर पर केतु को शांत करने के लिए किसी भिखारी को दोरंग का वस्त्र दान करने की सलाह दी जाती है। केतु ध्वजा है, अगर केतु अनुकूल परिणाम देने वाला हो तो जातक को घर के दक्षिण पश्चिम कोने में तिकोनी ध्वजा लगाने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा केतु की महादशा के उपाय (Ketu Ki Mahadasha Ke Upay) संबंधित राशि, संबंधित ग्रहों और कुण्डली में भाव स्थिति को देखकर ही सटीक तरीके से बताया जा सकता है।
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