प्रतीक शास्त्र : स्वस्तिक 卐 swastik
कभी आपने कमल के फूल को गौर से देखा है, यह स्वस्तिक 卐 की आकृति लिए होता है। समाज व्यवस्था में लक्ष्मी का प्रभाव ज्यों ज्यों बढ़ा, वैसे वैसे स्वस्तिक का प्रभाव भी बढ़ता गया, कमल पर विराजमान लक्ष्मी की आराधना का यह सबसे सशक्त सांकेतिक माध्यम है।
बहुत सीधा सा कारण है कि हलायुधकोष में वर्णित चौबीस सर्व शुद्ध चिन्हों में से एक स्वस्तिक आज न केवल समृद्धि और प्रसन्नता का प्रतीक है, बल्कि गणों में प्रमुख गणाधिपति का चिन्ह भी यही है।
यजुर्वेद में मंत्र मिलता है
हरि: ऊं।। स्वस्तिन इंद्रो वृद्धश्रवां स्वस्ति पूषा विश्ववेदां, स्वस्तिनस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमि स्वस्तिनो वृहस्पतिर्द्दधातु
卐 का चिन्ह सूर्य मण्डल के चारों ओर से चार विद्युत केन्द्रों को प्रदर्शित करता है। पूर्व दिशा में वृद्धश्रवा इंद्र, दक्षिण दिशा में वृहस्पति इंद्र, पश्चिम दिशा में पूषा विश्ववेदां इंद्र और उत्तर दिशा में स्ताक्षप अरिष्टनेमि इंद्र।
गणपति उपासकों के लिए स्वस्तिक बिंदूरूप है। जीवन, संसार, सृष्टि सभी को बिंदूरूप में प्रदर्शित करने वाला प्रतीक। चारों ओर से समान होने के कारण इसे सर्वतोभद्र मण्डल भी माना गया है, यानी चारों ओर से समान। तांत्रिक उपासना में भी इस यंत्र का बड़ा महत्व है।
श्राद्ध आदि कार्यों में पितृमण्डल गोल होता और देवता मण्डल चौखूंटा होता है, इसी प्रकार किसी शुभ कार्य में चारों दिशाओं को सुरक्षित करने की गरज से बांधने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग होता है। इसी कारण इसे विध्न विनाशक माना गया है।
स्वस्तिक का सावधानी से भली प्रकार उपयोग किया जाए, तो यह चमत्कारी परिणाम देता है। तांत्रिक विधियों में यंत्रों के आधार के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। अधिकांश यंत्रों को बनाने का कार्य भी स्वस्तिक से ही शुरू होता है।
अगर इसी चिन्ह का गलत उपयोग किया जाए तो विनाशकारी परिणाम भी आ सकते हैं। हिटलर के उल्टे स्वस्तिक का परिणाम हम देख ही चुके हैं। कई पश्चिमी विद्वानों ने अपने स्तर पर स्वस्तिक की व्याख्या करने का प्रयास भी किया है। चूंकि वे सनातन मान्यता की समझ नहीं रखते थे, सो कुछ ने तो इसे स्त्री पुरुष के मेल का चिन्ह तक घोषित कर दिया, जिसमें ऊपरी भाग पुरुष और निचला भाग स्त्री बताया गया है, लेकिन यह व्याख्या पूर्णतया आधारहीन ही है।