‘स्थूल प्रमेही बलवानहि एक: कृक्षरतथेव परिदुर्वलक्ष्य।
संवृहणंतम कृशस्य कार्यम् संशोधन दोष बलाधिकस्य।।
चरक के अनुसार मधुमेह रोग (Diabetes) दो प्रकार का होता है- एक तगड़े एवं बलवान लोगों पर असर करती है, दूसरी तरह की बीमारी से पतले एवं कमजोर लोग प्रभावित होते हैं।
उस जमाने में जब किसी व्यक्ति को कमजोरी की शिकायत या फोड़े-फुंसियों का होना एवं आलस्य की शिकायत और उसका यह बताना कि मैं जहाँ पेशाब करता हूँ वहाँ चीटियाँ या कीड़े इकट्ठे हो जाते हैं, उसे कहा जाता था कि तुम्हें मधुमेह रोग है।
डायबिटीज शब्द ग्रीक भाषा के ‘डाय़बिटोज’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है ‘सायफन’ यानी ‘बहना’ और मेलीटस का अर्थ है ‘मीठा’।
मधुमेह रोग दो प्रकार का होता है
टाईप एक – इंसुलिन निर्भर मधुमेह
टाईप दो- बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह
अधिकांश रोगियों में टाइप टू श्रेणी का मधुमेह रोग पाया जाता है। इंसुलिन निर्भर मधुमेह बच्चों में सत्रह से बीस साल की उम्र तक होता है। कभी-कभी वयस्क लोगों में भी पाया जाता है। इसके कारण शरीर में इंसुलिन हारमोन बिलकुल नहीं होता है। इसलिए शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन के टीके की जरूरत पड़ती है।
इसका मूल कारण पता नहीं है, लेकिन ऐसा कहते हैं कि वायरस बीमारियों या अन्य कारणों से पेंक्रियाज ग्रंथि नष्ट हो जाती है या कार्य करना बंद कर देती है। बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह यह बीमारी इंसुलिन निर्भर मधुमेह की तुलना में कम गंभीर होती है और वयस्क लोगों में ही पाई जाती है।
सब प्रकार के मधुमेह रोगियों में से दो-तिहाई रोगी बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह के होते हैं। शरीर में इंसुलिन हारमोन तो है, परंतु या तो कम मात्रा में है या आवश्यकता पड़ने पर उसकी मात्रा अधिक नहीं मिलती या इस हारमोन का असर ही नहीं होता।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
पेंक्रियाज नाभि से ऊपर और हृदय से नीचे स्थित है। ऐसे में इसे पांचवे भाव से देखा जा सकता है। छठे भाव का दूसरा द्रेष्काण नाभि को इंगित करता है। कमर और मूत्रजनन तंत्र के रोगों के कारण सातवें भाव का भी अध्ययन करना होगा। आठवें भाव का दूसरा द्रेष्काण चूंकि छठे भाव के दूसरे द्रेष्काण से सममित है।
अत: इस भाव को भी देखना होगा। छठे और आठवें भाव से संबंधित योगायोगों को ध्यानपूर्वक देखना होगा। कन्या और तुला राशियां कालपुरुष की छठी और सातवीं राशि है। सिंह राशि से पाचन तंत्र में गड़बड़ी और वृश्चिक राशि से मूत्रजनन अंगों का अध्ययन किया जाएगा।
अगर ये भाव और राशियां पाप और पीड़ादायी ग्रहों से युक्त हों तो मूत्र और इससे संबंधित अंगों में समस्याएं आने लगती हैं। ज्योतिष में शुक्र को प्रमेह का कारक माना गया है।
‘पाण्डुश्लेष्ममत्प्रकोपनयनव्यापत्प्रमेहामयात्’’ – फलदीपिका
इसके अलावा मूत्र संबंधी रोग भी शुक्र से ही देखे जाते हैं। सामान्य तौर पर देखा गया है कि मधुमेह के बिगड़ जाने पर किडनी को सर्वाधिक नुकसान होता है। ऐसे में जननांगों और किडनी से संबंधित रोगों को इसके तहत देखना होगा। गुरु आमतौर पर मिठाई के साथ देखा जाता है।
अगर गुरु खराब हो तो यह मिठाई से दूरी बना देगा। ऐसे में प्रतिकूल गुरु परोक्ष रूप से मधुमेह को ही इंगित करता है। गुरु कमजोर स्थिति में अगर छठे, आठवें और बारहवें भाव में अस्त होकर पड़ा हो तो मधुमेह होने की आशंका अधिक होती हैं। इस रोग में प्यास और भूख जैसे लक्षण प्रमुखता से होते हैं। ऐसे में चंद्रमा की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
शनि मूत्र एवं अन्य उत्सर्जन का कारक है। कुल मिलाकर देखा जाए तो पांचवे, छठे, सातवें, आठवें भावों के अलावा सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक राशि के दुष्प्रभाव में मधुमेह अथवा मूत्रजनन संबंधी रोगों का फलादेश दिया जा सकता है।
इसी तरह अगर शुक्र, चंद्रमा, गुरु दु:स्थानों पर हो तो भी रोग की संभावना प्रबल रहती है। मूत्र संबंधी रोग शनि से होंगे। जो ग्रह योग वर्गों में जलतत्वीय राशियों में हों, मृत्युभाग में हो और खराब षष्टमांश में हों तो मधुमेह रोग पैदा करने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
वहद्जातक, सारवली, जातक तत्व, यवनजातक, गंधावली जैसे ग्रंथ मधुमेह के लिए कई प्रकार के योगायोगों के बारे में जानकारी देते हैं। ऐसा देखा गया है कि गुरु से पैदा हुए रोगों से मुक्त होने की संभावना अधिक होती है। सूर्य और मंगल से पैदा हुए रोग आंशिक रूप से दूर होते हैं, लेकिन शनि से पैदा रोगों का कोई इलाज नहीं होता।