ग्रहों के उच्च और नीच का सिद्धांत
मेरे बच्चे का गुरू नीच neech का है तो क्या वह पढ़ाई नहीं कर पाएगा। मेरी कुण्डली में शुक्र shukra नीच का है इसीलिए मेरी अपनी पत्नी से बनती नहीं हैं, मेरा सूर्य नीच का होने के कारण हमेशा बॉस से झगड़ा रहता है। ऐसे ही कई सवाल कई लोग मुझसे कुण्डली के विश्लेषण के दौरान पूछते हैं। ग्रहों के उच्चत्व uchch और नीचत्व पर उनका इतना भरोसा होता है कि जब मैं कहता हूं कि आपकी कुण्डली तो तुला tula लग्न की है इसमें गुरू अकारक है या आपकी कुण्डली धनु लग्न की है इसमें शुक्र अकारक है। उच्च का हो या नीच का कोई फर्क नहीं पड़ता तो वे मेरी बात पर एक बारगी विश्वास ही नहीं कर पाते हैं।
क्योंकि शब्द और शब्दों का विश्लेषण करने वाले कई ज्योतिषी उन्हें विश्वास दिला चुके होते हैं कि जो कुछ है इन्हीं ग्रहों के उच्चत्व और नीचत्व में है। जबकि मेरा मनाना है कि ग्रहों के उच्च-नीच का होने से ग्रहों के प्रभाव के तरीके में नहीं बल्कि उनकी तीव्रता में अन्तर आता है।
ग्रहों के व्यवहार को दर्शाने के लिए ज्योतिष की जो टर्मिनोलॉजी इस्तेमाल की जाती है उससे कई बार यह भ्रम होता है कि फलां ग्रह की दशा या अन्तर दशा या कुण्डली में स्थिति का भी यही परिणाम होगा। अधिकांश नए ज्योतिषी भी इस प्रकार की टर्मिनोलॉजी में उलझ जाते हैं। मुझे यह बात स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं होती कि शुरूआत में मैं खुद भी इसमें उलझ गया था। अब दूसरे लोगों को उलझे हुए देख रहा हूं।
तो क्या होता है उच्चत्व और नीचत्व का प्रभाव
सबसे पहली बात हर ग्रह अपनी उच्च राशि में तीव्रता से परिणाम देता है और नीच राशि में मंदता के साथ। अगर वह ग्रह आपकी कुण्डली में अकारक है तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उच्च का है या नीच का। सूर्य मेष में, चंद्र वृष में, बुध कन्या में, गुरू कर्क में, मंगल मकर में, शनि तुला में और शुक्र मीन राशि में उच्च के परिणाम देते हैं। यानि पूरी तीव्रता से परिणाम देते हैं। इसी तरह सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, गुरू मकर में, मंगल कर्क में, शुक्र कन्या में और शनि मेष में नीच का परिणाम देते हैं।
पारम्परिक भारतीय ज्योतिष कभी यह नहीं कहती कि उच्च का ग्रह हमेशा अच्छे परिणाम देगा और नीच का ग्रह हमेशा खराब परिणाम देगा। लेकिन हेमवंता नेमासा काटवे की मानें तो उच्च ग्रह हमेशा खराब परिणाम देंगे और नीच ग्रह अच्छे परिणाम देंगे। इसके पीछे उनका मंतव्य मुझे यह नजर आता है कि जब कोई ग्रह उच्च का होता है तो वह इतनी तीव्रता से परिणाम देता है कि व्यक्ति की जिंदगी में कर्मों से अधिक प्रभावी परिणाम देने लगता है। यानि व्यक्ति कोई एक काम करना चाहे और ग्रह उसे दूसरी ओर लेकर जाएं। इस तरह व्यक्ति की जिंदगी में संघर्ष बढ़ जाता है। इसी वजह से काटवे ने उच्च के ग्रहों को खराब कहा होगा।
कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं जब नीच ग्रह उच्च का परिणाम देते हैं। यह मुख्य रूप से लग्न में बैठे नीच ग्रह के लिए कहा गया है। मैंने तुला लग्न में सूर्य और गुरू की युति अब तक चार बार देखी है। तुला लग्न में सूर्य नीच का हुआ और गुरू अकारक। अगर टर्मिनोलॉजी के अनुसार गणना की जाए तो सबसे निकृष्ट योग बनेगा। लेकिन ऐसा नहीं होता। लग्न में सूर्य उच्च का परिणाम देता है और वास्तव में देखा भी यही गया।
लग्न में उच्च का सूर्य गुरू के साथ हो तो जातक अपने संस्थान में शीर्ष स्थान पर पहुंचता है। यानि ट्रेनी की पोस्ट से भी शुरू करे तो एमडी की पोस्ट तक जा सकता है। चारों लोगों के साथ ऐसा ही हुआ। अगर वे सीधे एमडी नहीं भी बने तो उसी संस्थान का एक विभाग और बना और वे उसके अध्यक्ष बन गए। इस तरह योग भी पूरा हुआ और नीच के सूर्य का उच्च परिणाम भी दिखाई दिया। मैं अपने जातकों को डिस्क्लोज नहीं करता सो उनके नाम नहीं दे रहा हूं लेकिन इन चार लोगों में से एक देश के बड़े सरकारी महकमे के अध्यक्ष रहे, दूसरे एक निजी संस्थान के किसी अनुभाग के प्रमुख हैं। शेष दो लोग निजी कंपनियों के अनुभाग प्रमुख ही हैं।