उपायों का विश्वकोष: लाल किताब Encyclopedia of astrological remedies Lal Kitab Predictions
लाल किताब के उपाय (Lal Kitab Predictions) पारंपरिक ज्योतिष उपायों से भिन्न है। ज्योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्तेमाल किया गया है।
जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बांटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएं। आकशीय घटनाओं की पुख्ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्ययन ज्योतिष का फलित हिस्सा है।
फलित ज्योतिष में आकाशीय घटनाओं का मानव जीवन से संबंध जोड़ा गया है। जब ज्योतिषी ग्रहों की चाल के आधार पर जातक को भविष्य बता देता है तो जातक का अगला सवाल होता है कि ग्रहों की चाल के कारण बन रही खराब स्थितियों से कैसे बचा जाए। इसके लिए फलित ज्योतिष में उपायों का विकास हुआ।
प्राचीन या वैदिक कही जाने वाली भारतीय फलित ज्योतिष में उपचारों के लिए दान, जप और पूजन का प्रावधान दिया गया था। यह कमोबेश ग्रहों की स्थिति के कारण बन रही खराब स्थितियों के लिए प्रायश्चित की तरह था, लेकिन लाल किताब ने उपायों की एक नई सीरीज शुरू की।
लाल किताब उपायों के सिद्धांत
हालांकि यह पारंपरिक ज्योतिष से कुछ हटकर गणनाएं करती है, लेकिन उसके आधार पर बताए गए उपचार इतने अधिक और सटीक हैं कि हमें ग्रहों के कारण बन रही खराब स्थितियों से निपटने के लिए बहुत अधिक संभावनाएं मिल जाती हैं।
लाल किताब ज्योतिष की ऐसी पुस्तक है जो पारंपरिक ज्योतिष की तरह कुण्डलियों के विश्लेषण को दरकिनार कर अपनी पद्धति पेश करती है। इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्व नहीं है। लग्न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियां स्थिर कर दी गई हैं।
उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्न के जातक की कुण्डली भी बनाई जाए तो भी लग्न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्हीं का इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा।
इसकी भाषा मूल रूप से उर्दू और हिन्दी का मिला जुला रूप है। जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्हें अपने स्थान से हटाकर दूसरे स्थानों पर ले जाया जा सकता है।
अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्डों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है।
हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्न, धातु अथवा वस्तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्न में बैठा है।
इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्तु स्थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्थान में, दसवें के लिए सरकारी प्लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्तुओं को रखना होगा।
लाल किताब कहती है कि ग्यारहवां भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया जाता है।
मसनुई ग्रह
पारंपरिक ज्योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्य ग्रह की तरह होने लगेगा।
ग्रहों की युति किसी अन्य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।
विशिष्ट शब्दावली
लाल किताब ने न केवल उपायों का पूरा शास्त्र रच दिया, बल्कि अपनी विशिष्ट शब्दावली भी पेश की है। जैसे पक्का घर। हर ग्रह का अपना पक्का घर होता है। यह वह भाव होता है जहां ग्रह अपने सबसे अच्छे प्रभाव के साथ होता है। शक्की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो।
सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।
लाल किताब की भाषा मूलत: उर्दू है और भाषा प्रभाव से लगता है कि सौ या डेढ़ सौ साल पहले इसे पंजाब के किसी प्रांत में विकसित किया गया था। कुछ लोग इसे अरुण संहिता का नाम भी देते हैं, लेकिन इसके वास्तविक लेखक का कहीं जिक्र नहीं आता है।
इसकी सामान्य से अलग भाषा के कारण कई बार लोग इसके कथ्य को समझ नहीं पाते हैं और कई गलत अर्थ निकाल लिए जाते हैं। इस कारण लाल किताब के उपचार जहां मूल रूप से लोगों की जिंदगी को आसान बनाने का प्रयास करते नजर आते हैं, वहीं इसकी भाषा से उपजे समान अर्थ लोगों में भय भी पैदा कर देते हैं।
इसके बावजूद वर्तमान दौर में उपायों के मामले में लाल किताब का कोई विकल्प नहीं है। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं।