ज्योतिष का एक भाग संकेत भी हैं। ओमेन ज्योतिष की ऐसी शाखा है जिसका अधिकांश भाग संकेत पर ही आधारित है। ओमेन के अलावा संकेत हमारी जिंदगी को और भी कई तरीकों से प्रभावित करते हैं। ज्योतिषीय उपचारों, धर्म और वास्तु का एक बड़ा भाग इन्हीं संकेतों के आधार पर हमारे सुखद या दुखद भविष्य की जानकारी देता है।
पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में इन संकेतों के बारे में जानकारी दी गई है। हालांकि यह बिखरी हुई जानकारी है, लेकिन ज्योतिष का अध्ययन करने वाले एक एक कर इन संकेतों (Symbol) से रूबरू होते हैं।
गणित की चार मूलभूत संक्रियाओं से Symbol के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं। ये संक्रियाएं हैं जोड़, बाकी, गुणा और भाग। हमें इनकी आकृति पर गौर करना होगा। जोड़ (+) का निशान एक आडी खड़ी रेखा और एक सीधी खड़ी रेखा को जोड़कर बनाया जाता है। आडी रेखा को निष्क्रिय अथवा नकारात्मक माना जाता है और खड़ी रेखा सक्रियता अथवा सकारात्मकता का संकेत है। किसी भी वस्तु, संसाधन, क्रिया अथवा क्षमता में बढ़ोतरी के लिए उसमें प्लस का निशान जोड़ दिया जाए तो उसकी प्रगति तेज गति से होती है।
जो जातक अपने नाम के आखिर में आड़ी और खड़ी रेखा एक साथ बनाकर उसे प्लस का निशान देते हैं, वे तेजी से लोकप्रिय होते हैं। इसी प्रकार किसी दवा, न्यूज चैनल, किसी प्रॉडक्ट के आखिर में प्लस जोड़कर आमजन में उसकी स्वीकार्यता बढ़ाई जा सकती है। जैसे गूगल प्लस, डायक्लोविन प्लस, नोटपेड प्लस, समाचार प्लस जैसे नामों से आप परिचित होंगे।
पहले रेडक्रॉस ने लाल रंग के प्लस के निशान को अपनाया था। इस सेवा ने इतनी तेज गति से पूरी मानवजाति को प्रभावित किया कि हर देश में रेडक्रॉस फैल गई। अब चिकित्सक लाल रंग का प्लस उपयोग में लेते हैं। जो चिकित्सक इस निशान का अधिक इस्तेमाल करते हैं उनकी ख्याति भी तेजी से बढ़ती है। इसी तर्ज पर अब इंजीनियरिंग की कई शाखाएं भी प्लस के निशान का इस्तेमाल करने लगी हैं।
ईसाई संप्रदाय में सर्वाधिक प्रचलित निशान सूली पर लटके हुए ईसा मसीह का है। उसमें भी प्लस का निशान है। अगर आपके कार्यस्थल, घर, वाहन, विजिटिंग कार्ड और वेबसाइट तक पर प्लस का निशान हो तो यह आपके व्यापार और प्रभावक्षेत्र में तेजी से बढ़ोतरी करता है।
इसी तरह हम देखते हैं कि क्रॉस के निशान को बहुत से स्थानों पर रोक लगाने के लिए काम में लिया जाता है, वास्तव में यह क्रॉस रोकने के बजाय अधिक से अधिक लोगों का ध्यान आकर्षित करने का काम करता है। आपने रेल के आखिरी डिब्बे पर लाल रंग के क्रॉस का निशान देखा होगा। आप समझ सकते हैं, समय के साथ रेल के डिब्बे बढ़ते जा रहे हैं और उसके चाहने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। भूतहा अथवा काली विधा से संबंधित निशान खोपड़ी और काले रंग का क्रॉस है।
हालांकि यह भय पैदा करता है, लेकिन नकारात्मकता के बावजूद आकर्षण बना रहता है। बहुत से तांत्रिक और पराविधाओं से जुड़े लोग इसका इस्तेमाल करते हैं और जनता में तेजी से लोकप्रिय होते हैं। बहुत सी कंपनियों के उत्पाद के आखिर में एक्स का निशान मिलता है। चाहे रोलेक्स हो या बीटेक्स। इसी प्रकार सरकार जो टैक्स वसूलती है, उसमें भी नियमित बढ़ोतरी होती है और टैक्स देने वालों की संख्या में भी।
मूलभूत संक्रियाओं के अलावा दैवीय चित्र भी महत्वपूर्ण संकेत हैं और हमारी इच्छाओं की पूर्ति का साधन बनते हैं। हालांकि देवी सर्वदा शक्ति का प्रतीक है, पर यह शक्ति किस प्रकार की हो, यह हमारी इच्छा पर निर्भर है। जब हमें शक्ति और शत्रु मर्दन की जरूरत होती है तब हम दुर्गा की उपासना करते हैं। दुर्गा को रौद्र रूप दिया गया है।
वहीं शांति, ज्ञान और प्रज्ञा की जरूरत हो तो हम देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। यह देवी हाथ में वीणा, सादे वस्त्र, मोहक मुस्कान और वेद लिए हुए हमें दिखाई देती हैं। वहीं धन के उपासक देवी लक्ष्मी की आराधना करते हैं। लक्ष्मी के एक हाथ में सोने के सिक्कों से भरा घड़ा है तो दूसरा हाथ उन सिक्कों की बारिश कर रहा होता है।
अगर हम सही चित्रों को सही स्थान पर उपयोग करें तो इच्छित परिणाम तेजी से हासिल कर सकते हैं। ऐसे में घर के बैठककक्ष, उपासनाग्रह, शयनकक्ष, आंगन, रसोई आदि में संबंधित देवी देवताओं के चित्र ही लगाए जाएं तो बेहतरीन परिणाम मिलते हैं। अगर शयनकक्ष में लड़ते हुए जंगली जानवरों, हिंसक पशुओं और उत्तेजक तस्वीरें लगाई जाएंगी तो दांपत्य जीवन में सहज ही तनाव आ जाएगा। वहीं मनोरम दृश्य और मन में शांति पैदा करने वाले दृश्यों वाली तस्वीरें लगाई जाएंगी तो हमें वैसे परिणाम मिलेंगे।
इन्हीं संकेतों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सीधा त्रिभुज सकारात्मक है और उल्टा त्रिभुज नकारात्मक है। पिरामिड सकारात्मक परिणाम देता है और गड्ढा नकारात्मक परिणम देता है। अगर अंग्रेजी वर्णमाला देखी जाए तो ACDEFGHIJKLXY अक्षर सकारात्मक हैं और BMNOPQRSTU VWZ शब्द नकारात्मक हैं। इसका मुख्य कारण है कि प्रथम श्रेणी के अक्षरों में या तो सीधा त्रिभुज बनता है या रेखाएं प्लस एवं क्रॉस का निशान बनाती हैं। वहीं दूसरी श्रेणी के अक्षरों की रेखाएं नकारात्मक संकेत देती हैं।
तंत्र क्रियाओं में इन पिरामिडों और संकेतों का बहुत सावधानी से ख्याल रखा गया है। श्रीयंत्र को ही देख लें तो उसमें सीधे त्रिभुज शिव हैं और उल्टे त्रिभुत शक्ति हैं। शिव और शक्ति के त्रिभुजों को समान मात्रा में रखा गया है। ऐसे में किसी स्थान पर केवल श्रीयंत्र लगाकर छोड़ दिया जाए तो उसका फल नहीं मिलेगा। श्रीयंत्र का फला प्राप्त करने के लिए श्रीविद्या से उसे सक्रिय करना होता है, उसके बाद श्रीयंत्र के चाहे गए फल मिलते हैं।
इसके अलावा अन्य यंत्रों में कोणों की संख्या को बढ़ाकर भी त्रिभुजों का लाभ लेने का प्रयास किया जाता है। तंत्र साधनाओं में हम देख सकते हैं कि अधिकांश भीषण प्रयोग षट्कोण, अष्टकोण अथवा त्रिभुज आकार के यंत्रों पर ही बनाए जाते हैं।