विज्ञान और ज्योतिष Science and Astrology
पिछले सत्रह साल से ज्योतिष पढ़ रहा हूं। विज्ञान के विद्यार्थियों से भरे परिवार में बायोलॉजी का स्टूडेंट था तो एक ओर घर में विज्ञान की बातें तो दूसरी ओर दोस्तों और सर्किल में विज्ञान और ज्योतिष (Science and Astrology)।
इस बीच इतिहास की एक छोटी सी पुस्तक पढ़ने को मिली। लेखक थे ई एच कार और पुस्तक का नाम था ऐतिहासिकतावाद। इस पुस्तक के जारी होने से पहले ऐसा कोई शब्द इतिहासकारों की डिक्शनरी में नहीं था।
कार ने पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया और इसका अर्थ भी समझाया। मुझे जो कुछ समझ में आया वह यह कि हर विषय को विज्ञान की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता। यानि हर चीज को सही सिद्ध करने के लिए उसको विज्ञान सिद्ध करना जरूरी नहीं है।
ऐसा कैसे हो सकता है कि एक विषय सभी विषयों का जांचकर्ता बन जाए। वह भी ऐसा विषय जो सूक्ष्मता में अब भी अधूरापन लिए बैठा हो। हाइजनबर्ग कहता है किसी पदार्थ विशेष की स्थिति और संवेग एक साथ ज्ञात नहीं किए जा सकते, डार्विन कहता है हम शायद बंदरों की संतान हैं। न्यूटन ने कहा गति के नियम शाश्वत हैं और आइंस्टाइन ने इसे झूठ साबित कर दिया।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति बिग बैंग से हुई या यह शुरू से ही ऐसा था, प्रकाश से तेज रफ्तार में क्या होता है, ब्लैक होल क्या है, हीरे की बाहरी संरचना में तीन-तीन फ्री कार्बन क्यों नहीं होते और अगर होते हैं तो वह अक्रिय कैसे होता है।
सैकड़ों सवाल है जो अनुत्तरित हैं। फिर भी पश्चिम द्वारा थोपे गए विज्ञान को सिर पर बैठाया जाता है और हमारे ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान को नीचा दिखाया जाता है। मेरी समझ में तो यह गुलामी की मानसिकता से अधिक और कुछ नहीं है।
मैं निजी तौर पर योग सिखाने वाले बाबा रामदेव का फैन हूं। इसका कारण यह नहीं है कि वे अपनी योग कक्षाओं में बैठने की फीस लेते हैं बल्कि इसके बावजूद उन्होंने सहज योगासनों और सामान्य प्राणायामों से लोगों को सक्रिय कर दिया है। आज स्थिति यह है कि किसी चिकित्सक को जब यह कहा जाता है कि इस बीमारी का हल तो बाबा रामदेव ने इस योग में बताया है तो चिकित्सक मारने को दौड़ता है।
पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव है कि चिकित्सक यह मानने को तैयार नहीं होता कि सांस लेने से भी कोई ठीक हो सकता है। श्वास के साथ जुड़े प्राण को अंग्रेजों ने नकारा तो भारतीयों ने भी नकार दिया। अब विदेशी लोग योग करते हैं और ग्लेज पेपर वाली मैग्जीन्स में भारतीय उनके फोटो देखते हैं।
विज्ञान और ज्योतिष (Science and Astrology) का संबंध
वापस विषय पर आता हूं ,इतिहास के संदर्भ में ही देखें तो प्रयोग, प्रेक्षण और परिणाम की कसौटी पर इतिहास के किसी तथ्य को नहीं रखा जा सकता। जैसी दुनिया आज है वैसी दस साल पहले नहीं थी और जैसी दस साल पहले थी वैसी सौ साल पहले नहीं थी। तो कैसे तो प्रयोग होगा, किस पर प्रेक्षण किया जाएगा और आने वाले परिणामों को किस कसौटी पर जांचा जाएगा।
मेरा मानना है कि ज्योतिष के साथ भी कुछ ऐसा ही है। पूर्व में ग्रहों और राशियों की स्थिति की पुनरावृत्ति के साथ घटनाओं का तारतम्य देखकर उसके सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर योगों का निर्माण किया गया होगा। सालों, दशकों या शताब्दियों के निरन्तर प्रयास से योगों को स्थापित किया गया और आज के संदर्भ में इन योगों का इस्तेमाल भविष्य में झांकने के लिए किया जाता है।
अब जो लैण्डमार्क पीछे से आ रहे रास्ते को दिखा रहे हैं उनसे आगे का रास्ता बता पाना न तो गणित के सामर्थ्य की बात है और न कल्पना के। ऐसे में ज्योतिषी के अवचेतन को उतरना पड़ता है। जैसा कि मौसम विभाग के सुपर कम्प्यूटर करते हैं। अब तक हुई भूगर्भीय गतिविधियों को लेकर आगामी दिनों में होने वाली घटनाओं की व्याख्या करने का प्रयास।
इसके साथ ही बदलावों को तेजी से समझना और उन्हें आज के परिपेक्ष्य में ढालना भी एक अलग चुनौती होती है। पचास साल पहले कोई ज्योतिषी यह कह सकता था कि अमुक घटना हुई है या नहीं इसकी सूचना आपको एक सप्ताह के भीतर मिल जाएगी वहीं अब मोबाइल और इंटरनेट ने सूचनाओं के प्रवाह को इतना प्रबल बना दिया है कि घटना और सूचना में महज सैकण्डों का अन्तर होता है। अब देखें कि इससे क्या फर्क पड़ा।
सबसे बड़ा फर्क पड़ा बुध के प्रभाव के बढ़ने का। दूसरा फर्क मोबाइल और इंटरनेट के इस्तेमाल के दौरान व्यक्ति पर आ रही किरणों के असर का। इसे बुध राहु के रूप में लेंगे या शनि चंद्रमा के रूप में, ये निर्णय होने से अभी बाकी है। ऐसे में कोई ज्योतिषी करीब-करीब सही फलादेश कर देता है तो उसे और उसके अवचेतन को धन्यवाद देना चाहिए।