Sexual pleasure
वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में यौन आनंद महत्वपूर्ण कारक होता है। हर व्यक्ति की यौन संतुष्टि का पैमाना अलग-अलग है और देखने में आया है कि सभी को यौन संतुष्टि नहीं मिल पाती। ऐसे लोगों को यह पता चल जाए कि वास्तव में उनके ग्रह इसका कारक हैं, तो शायद वह अपने संतुष्टि के स्तर पर मन को समझा सकते हैं अथवा उन ग्रहों का उपाय कर सकते हैं।
कृष्णमूर्ति पद्वति के अनुसार यौन आनंद के लिए सप्तम कस्प (नक्षत्र नवांश) के उप स्वामी और उसके नक्षत्र स्वामी को समझना चाहिए। सभी ग्रह यहां अलग-अलग परिणाम देते हैं। केवल गुरु, चंद्र और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं, जो यौन संतुष्टि देते हैं। अन्यथा की स्थिति में व्यक्ति को कभी आनंद नहीं आता और इससे उनके यौन व्यवहार में भी बदलाव आते हैं, जो कदापि सही नहीं होते।
सूर्य यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप स्वामी या उसका नक्षत्र स्वामी है तो यौन क्रिया के बाद कोई खुशी नहीं होती।
चंद्र यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो हमेशा हनीमून जैसा आनंद जातक हासिल करता है।
मंगल यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो हमेशा उस दौरान झगड़ा होगा, जातक ताकत का इस्तेमाल करेगा और अंततः प्रसन्नता नहीं मिलेगी।
बुध यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो इस दौरान जातक बातें करेगा, बीच में अंतराल लेगा और हो सकता है कि कोई व्यवधान भी आए। हालांकि उसे प्रसन्नता हासिल होती है।
गुरु यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो इस दौरान प्रसन्नता दायक, सामान्य और संतुष्टिपूर्ण अनुभव मिलेगा।
शुक्र यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो जातक विभिन्न तरीके आजमाता है और इस मामले में भाग्यशाली होता है। लेकिन शुक्र
सप्तम भाव से किसी खराब स्थान पर नहीं होना चाहिए।
शनि यदि सप्तम नक्षत्र नवांश का उप या नक्षत्र स्वामी है तो बहुत छोटी अवधि होती है। खुशी नहीं मिलती और इस दौरान सन्नाटा बना रहता है।
इस तरह गुरु, शुक्र और चंद्र उप या नक्षत्र स्वामी वाले जातक ही भाग्यशाली होते हैं, लेकिन यहां देखना भी जरूरी है कि इनकी स्थिति सप्तम भाव से छह, आठ या बारहवें भाव में नहीं होनी चाहिए और राहु-केतु की युति या दृष्टि भी इनके फल को कम कर देती है।