शनि महादशा के प्रभाव और उपाय
(Shani Mahadasha Effects and Remedies)
ज्योतिषीय कोण से देखा जाए तो शनि भगवान सूर्य नारायण और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य अपने आप में आदर्श कृष्णिका है। विज्ञान के कोण से आदर्श कृष्णिका का अर्थ होता है कि ऊर्जा उत्सर्जित करने वाला ऐसा पिंड जो शून्य से अनन्त सभी प्रकार की रश्मियों को उत्सर्जित करता है। सूर्य की चमक का भी यही कारण है कि हीलियम की संलयन प्रक्रिया लगातार वहां पर इतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है कि सभी प्रकार की रश्मियां उत्पन्न होती हैं।
जो पिंड सभी प्रकार की रश्मियों का उत्सर्जन करता है, वही पिंड सभी प्रकार की रश्मियों का अवशोषण करने की क्षमता भी रखता है, इसी कारण सूर्य को आदर्श कृष्णिका कहा गया है। भगवान सूर्य नारायण के सौर मण्डल में सर्वाधिक दूरी पर स्थित ग्रह शनि महाराज को उनका पुत्र कहने का संभवत: शनि ग्रह में अवशोषण की अद्भुत क्षमता होना भी हो सकता है। अभी हमें शनि को विज्ञान के दृष्टिकोण से समझने में बहुत लंबा वक्त लगेगा, लेकिन ज्योतिषीय कोण से प्रकृति के रूप में देखा जाए तो शनि सूर्य के गुण लिए ठीक उनके विपरीत हैं।
ज्योतिषीय कोण से शनि को भी आदर्श कृष्णिका कहा जा सकता है, बस यहां शनि उत्सर्जन नहीं कर रहे, सभी प्रकार का अवशोषण कर रहे हैं। एक तरफ जहां सूर्य सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहे हैं, वहीं शनि महाराज सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का अवशोषण कर नकारात्मक चेतना का विस्तार कर रहे हैं। क्षमता के स्तर पर दोनों लगभग एक स्तर पर हैं, लेकिन अपनी शक्तियों के उपयोग के मामले में नितांत विपरीत हैं।
न्याय के देवता शनि महाराज को लेकर आम जातक में बहुत भय भरा गया है। शनि की महादशा (Shani Mahadasha and Antardasha) के अलावा शनि की साढ़ेसाती (Shani Sadhesati) को लेकर भी बहुत भ्रम फैलाए गए हैं। मैं निजी तौर पर साढ़ेसाती और ढैय्या को नहीं मानता हूं, इस पर मैंने एक अलग लेख भी दिया है, नीचे उसका लिंक मिल जाएगा। कुण्डली में शनि की स्थिति का प्रभाव जातक के व्यक्तित्व और महादशा का प्रभाव उसके जीवन की घटनाओं पर दृष्टिगोचर होता है।
शनि प्रभावित जातक
अगर जातक के व्यक्तित्व पर शनि ग्रह के प्रभाव (Effects Of Saturn) को देखा जाए तो हमें दिखता है कि एक पूर्वाग्रहों के साथ जीने वाला, परंपराओं का सख्ती से पालन करने वाला, कुछ नकारात्मक, निरुत्साही, कुछ काला रंग लिए हुए, कुछ एकांतिक रहने वाला, कुछ कम बोलने वाला, नकारात्मक भाव रखने और देने वाला, लगातार काम में लगा रहने वाला, भाग्य पर निर्भर रहने के बजाय काम पर अधिक ध्यान देने वाला और विकास के बजाय स्थिरता की ओर अग्रसर जातक दिखाई देता है।
प्रथमदृष्टया ये सभी चीजें नकारात्मक ही अधिक दिखाई देंगी, लेकिन शनि के ही कोण से देखा जाए तो ये गुण समाज में साख और जीवन में स्थिरता के लिए बहुत जरूरी गुण हैं। ऐसे जातक समाज को स्थिरता देते हैं, गलत होने से रोकते हैं, अधिक गति से होने वाले क्षरण को कम करते हैं और कार्य को अंजाम तक पहुंचाते हैं। शनि प्रभावित जातकों को समझने के लिए मेरा लेख “उस जातक की शक्ल तो देखो” देखिएगा। इससे आप तुलनात्मक रूप से शनि को अधिक सटीकता से समझ पाएंगे।
शनि की दशा और घटनाएं (Shani Mahadasha)
ऐसा सामान्य तौर पर समझा जाता है कि शनि की दशा (Shani Dasha) खराब होती है, लेकिन मेरा निजी तौर पर मानना है कि बहुत गिने चुने मामलों को छोड़ दें तो अधिकांश जातकों के लिए शनि की दशा अच्छी होती है, लेकिन उसे देखने का नजरिया ऐसा है कि वह नकारात्मक दिखाई देती है।
उदाहण के तौर पर मान लेते हैं कि एक जातक के जीवन की शुरूआत में राहू की महादशा है, इस दौर में जातक बिना कारण चिंतित और अव्यवस्थित रहेगा, बाद में गुरू की दशा आती है, इस समय जातक योजना बनाकर काम करता है और प्रगति करता है, लेकिन जीवन में स्थिरता नहीं आती, अब जीवन का तीसरा चरण चल रहा है, जब शनि की महादशा आती है, इस समय पर्याप्त प्रगति कर चुके जातक को जीवन में स्थिरता की जरूरत होती है। तीस वर्ष से साठ वर्ष की उम्र के बीच आई शनि की महादशा जातक के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है।
इस समय जातक प्रगति के बजाय स्थिरता की आकांक्षा करने लगता है। चूंकि शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होती है, ऐसे में कुछ जातकों को पूर्ववर्ती गुरू की महादशा की सकारात्मकता और प्रगति की तुलना में शनि की नकारात्मकता (Saturn’s Negativity) और स्थिरता कुछ खलती है, लेकिन अंतत: जातक यह देखता है कि शनि ने उसे स्थिर कर दिया है। यही शनि की दशा जीवन के शुरूआती वर्षों में या 60 या 70 वर्ष की वय में आए तो बहुत उपयोगी नहीं होती। यहां हम कह सकते हैं कि शनि नकारात्मक होकर भी उपयोगी है, क्योंकि वह हमें स्थिरता दे रहा है। जिन जातकों की कुण्डली में शनि खराब होगा, उन्हें शनि में भी स्थिरता नहीं मिलती।
शनि का उपचार कौन करे (Shani Remedies)
शनि मंदिर में जाना कोई बुरी बात नही है। अवश्य जाना चाहिए लेकिन पहले यह समझे कि किसे जाना चाहिए और कब जाना चाहिए। कुंडली में मौजूद सभी ग्रह अच्छे या बुरे साबित हो सकते हैं। शनि यदि कुंडली में शुभ भावों के स्वामी हैं तब वह कभी बुरा फल नहीं देगें। यदि शनि आपकी कुंडली में बली है तब उसे और बल देने से कुछ नहीं होगा। यदि शनि शुभ होकर निर्बल है तब उसे बल देना आवश्यक है। यदि शनि कुंडली में बुरे भाव का स्वामी है तब उसे हम बली क्यूँ बनाएँ! (कर्क लग्न और सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ है) तब तो हमें उसे मंत्र जाप के द्वारा शांत करना है।
यदि कोई व्यक्ति साढेसाती अथवा शनि की ढैय्या (Shani Ki Dhaiya) से पीड़ित है तब उसे अपने कर्मों का भुगतान करना ही होगा चाहे वह कितना भी उपाय क्यों ना कर ले। इस समय शनि उन्हें अपने और पराये का फर्क बताने का काम करता है। व्यक्ति को आग में तपाकर सोना बनाता है. लेकिन हमें तो मेहनत करने की आदत नहीं है इसलिए जरा सा परेशान होते ही पंडित जी के पास दौड़कर जाते हैं।
शनि के लिए तेल दान अथवा उपाय
यदि कोई शनिदेव का उपचार (Shani Related Remedies) करना भी चाहता है तब उसे कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। सबसे पहले तो यह ध्यान रखें कि कभी भी शनिवार के दिन तेल नहीं खरीदें। तेल को पहले से ही खरीदकर घर में रखें और उसी में से थोड़ा–थोड़ा शनि मंदिर में अर्पित करें। जब शनिदेव की मूर्ति पर तेल अर्पित करें तब कभी भी उनकी आंखों में ना झांके क्यूंकि उनकी दृष्टि को ही खराब माना गया है। शनि देव जी के चरणों में देखते हुए तेल दें। चाहे तो शनिवार के दिन तेल मांगने वाले को भी तेल दान कर सकते हैं। यह तेल दान छाया दान के रुप में भी दिया जा सकता है। एक कटोरी में थोड़ा सा तेल लेकर उसमें अपनी परछाई देखकर उसे दान कर दें, इसे छाया दान कहा गया है। साथ में एक सिक्का भी अवश्य दान करना चाहिए।
शनि देव के लिए मंत्र उपचार (Shani Mantra)
जिन लोगों की कुंडली में शनि ग्रह की महादशा (19 years of Shani Mahadasha) चल रही हो उन्हें उसके मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए। चाहे शनि ग्रह उनकी कुंडली के लिए शुभ हो अथवा अशुभ हो। जब भी किसी ग्रह की महादशा आरंभ होती है तब फल उस महादशा को देने होते हैं और महादशा घर में आए मेहमान की भांति होती है. यदि मेहमान का स्वागत ना किया जाए तो वह भीतर – भीतर कुछ रुष्ट सा हो जाता है। इसी तरह यदि महादशानाथ का पूजन ना किया जाए तब शुभ फल मिलने में विलम्ब हो सकता है। यदि अशुभ ग्रह की दशा है तब वह और अधिक अशुभ हो सकती है। इसलिए महादशानाथ के मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए। शनि की महादशा के लिए शनि के मंत्रों का जाप करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के शनिवार से संध्या समय में मंत्र जाप आरंभ करने चाहिए। स्वच्छ वस्त्र पहन कर शुद्ध आसन पर बैठना चाहिए। उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करना चाहिए। उसके बाद शुद्ध मन से शनिदेव को याद करके मंत्र जाप शुरु करना चाहिए. मंत्र जाप की संख्या 108 होनी चाहिए।
यदि शनि की महादशा आरंभ होते ही 19,000 मंत्रों का जाप यदि कर लिया जाए तो अशुभ फलों में कमी आ सकती है। महादशा शुरु होने के बाद जब तक शनि की प्रत्यंतर दशा चलती है तब तक 19,000 हजार मंत्रों का जाप पूरा किया जा सकता है। उसके बाद हर शनिवार को एक माला की जा सकती है।
मंत्र है :- “ऊँ शं शनैश्चराय नम:”
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