हंस योग (Hamsa / Hans Yog)
पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)
हंस योग (Hamsa / Hans Yog) इस योग का निर्माण देवगुरु ग्रह बृहस्पति करते हैं। जब गुरु स्वराशि धनु या मीन या फिर अपनी उच्च राशि कर्क में होकर पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव में बैठे हों तो इसे हंस महापुरुष योग कहते हैं।
ऐसे योग वाला जातक आकृति में खूब लंबा सुंदर पांव, रक्तवर्ण की नखें और मधुवर्ण नेत्र वाला होता है। यह भी बताया गया है कि ऐसा जातक 86 अंगुल ऊंचा होता है। ऐसा जातक विधा में निपुण, शास्त्रों को जानने वाला, सुखी, बड़े लोगों से आदरणीय, बहुगुण संपन्न, साधु प्रकृति, आचारवान और मनमोहिनी कांति का होता है। ऐसे जातक की स्त्री सुंदर होती है और जातक अति कामी होता है। ऐसे जातक की जलाशय में विशेष प्रीति होती है। अनेक स्थानों पर अधिकार रखता है। ऐसे जातक की मृत्यु जंगल में होती है। कहा जाता है कि ऐसे जातक की आयु 82 से 86 वर्ष की होती है। कुछ अलग विचारों के अनुसार कर्क, मकर, कुंभ और मीन लग्नों में यह फल सर्वाधिक उत्कृष्ट रूप में प्राप्त होते हैं।
हंस योग जिनकी कुंडली में होते वे बहुत ही ज्ञानी और ईश्वर की विशेष कृपा पाने वाले जातक होते हैं। इनकी समाज में काफी प्रतिष्ठा होती है। इनके स्वभाव में संयम और परिक्वता झलकती है। समस्याओं का समाधान ढूंढने में इन्हें महारत हासिल होती है। ये बहुत अच्छे शिक्षक और प्रबंधक की भूमिका निभा सकते हैं। इस योग से प्रभावित जातक सुन्दर, सुमधुर वाणी के प्रयोग वाला, नदी या समुद्र के आसपास रहने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति राजा के समान जीवन जीते हैं। इनको कफ़ की परेशानी रहती है। एवं इनकी पत्नी कोमलांगी होती है। ये व्यक्ति सुंदर, सुखी, शास्त्रों के ज्ञाता, निपुण, गुणी और सदाचारी एवं धार्मिक प्रवृति के होते हैं। इनका स्वभाव बड़ा संयमित और परिपक्व होता है, ऐसे व्यक्ति समस्याओं का समाधान बड़ी सरलता से ढूंढ लेते हैं। अपने ज्ञान से बहुत नाम कमाते हैं।
मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि पंच महापुरुष योग बनाते हैं जो कि जातक के लिये बहुत ही शुभ माने जाते हैं इनमें मंगल रूचक योग बनाते हैं तो बुध भद्र योग का निर्माण करते हैं वहीं बृहस्पति से हंस योग बनता है तो शुक्र से मालव्य योग एवं शनि शश योग का निर्माण करते हैं। इन पांचों योगों को ही पंच महापुरुष योग कहा जाता है।
यदि के पूर्ण बली हों तो ही उत्कृष्ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्चता अथवा न्यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्डली में एक योग हो तो वह भाग्यशाली दो हो तो राजा तुल्य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्पष्ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं।