ऋषि पाराशर द्वारा दिए भाव आधारित राजयोगों के इतर बुद्धादित्य योग ऐसा योग है जो भले ही स्वतंत्र रूप से राजयोग की श्रेणी में न आता हो, लेकिन जिस जातक की कुण्डली में होता है, उसे श्रेष्ठ जीवन देता है। हालांकि सभी जातकों की कुण्डली में बुद्धादित्य योग का फल एक जैसा नहीं होता, लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो बुद्धादित्य यानी सूर्य और बुध की युति वाले जातक अन्य जातकों की तुलना में श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करते हैं।
बुद्धादित्य योग कैसे बनता है?
किसी भी जातक की कुण्डली में सूर्य और बुध एक ही भाव व राशि में साथ आकर बैठ जाए तो उसे बुद्धादित्य योग कहा जाता है।
ग्रहों की युति से बनने वाले योग जातक को सर्वांगीण रूप से न तो भाग्यशाली बनाते हैं और न दुर्भाग्यशाली, वे जीवन के किसी एक कोण के प्रति जातक की विशिष्टता को इंगित करते हैं। अगर मानसिक शक्ति की बात की जाए तो बुद्धादित्य योग जातक को सहज रूप से बुद्धिमान और अनुशासनिक बुद्धि वाला जातक बनाता है। यही इस योग की विशेषता है। यही कारण है कि चाहे प्रारंभिक स्नातक स्तर की शिक्षा हो या उच्च शिक्षा, बुद्धादित्य योग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यही कारण है कि इस योग वाले जातक अन्य जातकों की तुलना में विशिष्ट होते हैं।
किसी जातक की कुण्डली में सूर्य और बुध के एक साथ आ जाने के कारण बुद्धादित्य योग बन रहा है तो यह जातक की मानसिक शक्ति को कई गुना बढ़ा देता है। यह योग अगर शिक्षा से किसी प्रकार जुड़ा हो तो जातक को शिक्षा में बेहतरीन स्थिति पर ले जाता है। ऐसे में पंचम भाव जो कि प्राथमिक शिक्षा का होता है, उसमें बुद्धादित्य योग बने तो जातक अपने प्रारंभिक शिक्षा के दौरान बहुत अच्छा प्रदर्शन करता है। अगर इस योग का संबंध उच्च शिक्षा यानी नवम भाव से न हो तो उच्च शिक्षा में मदद नहीं मिलती। यही योग अगर अष्टम भाव में बना हो तो जातक चाहे उच्च शिक्षा अर्जित न भी करे तो उसका गहन शोध और विश्लेषण में अच्छा दिमाग होता है। नवम भाव से संबंधित हो तो उच्च शिक्षा अच्छी होती है, भले ही प्रारंभिक शिक्षा कैसी भी रही हो। लग्न में हो तो जातक बहुत ही अधिक बुद्धिमान और कुशल नेतृत्वकर्ता होता है।
यहां बुध बुद्धि का कारक है और सूर्य अनुशासन का। बुद्धि के साथ सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि वह सही सही चलती रहे तो ही सही परिणाम हासिल करती है, अगर अध्ययन में फोकस न हो तो जातक ऊट पटांग कुछ भी पढ़ता रहेगा, लेकिन फोकस स्टडी नहीं कर पाएगा। इसी कारण बुध के साथ सूर्य आने पर जातक अत्यंत मेधावी हो जाता है।
कई बार इस योग को गलत भी मान लिया जाता है, क्योंकि सूर्य की 10 डिग्री की जद में आने पर कमोबेश सभी ग्रह अस्त हो जाते हैं, ऐसे में सूर्य और बुध का योग जातक के बुध को भी अस्त कर देता है। मैंने कई बार कई ज्योतिषियों के मुख से भी सुना है कि बुध अस्त होने के कारण काम नहीं कर रहा, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। बुध जब सूर्य के साथ जाकर अस्त हो जाता है तो अपने गुण भी सूर्य को सौंप देता है, ऐसे में केवल अकेला सूर्य ही अगर तुला का भी हो तो बुद्धादित्य योग में श्रेष्ठ परिणाम देने वाला सिद्ध होता है।
इसके अलावा सूर्य के पास बुध की चार स्थितियां होती है। चूंकि बुध तीव्र चाल वाला है, ऐसे में वह तेजी से गति करता हुआ सूर्य की ओर जाता है, जब तक वह अंशों में सूर्य से पीछे होता है तब तक वह सूर्य से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रहा होता है, ऐसे बुद्धादित्य योग वाले जातक के जीवन में इस योग के सर्वश्रेष्ठ परिणाम आते हैं। दूसरी स्थिति में वह सूर्य के बहुत अधिक करीब पहुंच जाता है, यहां बुध अस्त हो जाता है। अब सूर्य भले ही बुध से जुड़े परिणाम दे रहा हो, स्वयं बुध उतने श्रेष्ठ परिणाम नहीं देता है। तीसरी स्थिति में बुध तीव्र चाल चलते हुए सूर्य से आगे निकल जाता है। अगर अंशों में बुध सूर्य से अधिक अंश वाला है तो बुद्धादित्य योग में इतने अच्छे परिणाम देखने में नहीं आते। चौथी स्थिति में बुध अधिकतम आगे जाने के बाद वहां से वक्री हो जाता है। ऐसे में वक्री बुध के साथ बने बुद्धादित्य योग से बहुत अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती। अगर किसी जातक की कुण्डली में बुद्धादित्य योग तो बन रहा हो, लेकिन इसमें बुध वक्री और अस्त हो और साथ ही अंशों में सूर्य से अधिक अंश का हो तो इस बुद्धादित्य योग को अप्रभावी माना जा सकता है।
अगर आपकी कुण्डली में बुद्धादित्य योग बन रहा है, बुध सूर्य से अंशों में कुछ पीछे हो, अस्त न हो और पंचम, नवम, अष्टम अथवा लग्न से संबंध बना रहा हो तो ही उसे श्रेष्ठ बुद्धादित्य योग मानिए और उसका परिणाम भी आपकी श्रेष्ठ मानसिक क्षमता के रूप में मानिए, न कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में।