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गुरू (बृहस्पति) की दशा का प्रभाव और फल (Guru / Jupiter Mahadasha Effects and Remedy)

गुरू (बृहस्पति) की दशा का प्रभाव और फल (Guru / Jupiter Mahadasha Effects and Remedy)
गुरू (बृहस्पति) की दशा का प्रभाव और फल (Guru / Jupiter Mahadasha Effects and Remedy)

गुरू की दशा (Guru Mahadasha and Antardasha) को समझने से पहले गुरू की प्रकृति को और उससे पहले की राहु की महादशा और उसके बाद आने वाली शनि की दशाओं को भी समझना होगा। गुरू की दशा अपने आप में कई तरह के परिणाम देने वाली होती है। कुण्‍डली में गुरु की जैसी स्थिति होती है, प्रभाव उसी के अनुरूप आता है, इसके बावजूद दशा की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं, जो हर प्रकार की कुण्‍डली और हर प्रकार की राशि में कॉमन देखने को मिलती है।

हम यहां गुरू (बृहस्पति) की दशा के बारे में विचार कर रहे हैं, कुण्‍डली के अनुसार हर जातक के लिए प्रभाव में कुछ कुछ परिवर्तन हमेशा रहेगा, यह परिवर्तन अनुकूल होगा या प्रतिकूल होगा, कारक होगा या अकारक होगा, फल देने वाला होगा या दशा निष्‍फल जाएगी, इन सभी बातों को पूरी कुण्‍डली के विश्‍लेषण से ही ज्ञात किया जा सकता है। दशा का प्रभाव पूरी तरह आ भी जाए, तो भी कुण्‍डली का प्रभाव आने के लिए योगायोग और ग्रह की स्थिति भी जाननी जरूरी होती है। मैं यहां जो कुछ बता रहा हूं, उसे दशा की आधार प्रकृति ही माना जाना चाहिए।

दशाएं बदलने पर इवेंट यानी घटनाएं अपेक्षाकृत तेजी से बदल सकती हैं, लेकिन माहौल, मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थितियों के बदलने में कुछ वक्‍त लगता है। औचक लाभ वाले कुछ अवसरों को छोड़ दें तो अधिकांश परिवर्तन धीरे धीरे होते हैं। इसे आप ऑर्गेनिक बदलाव की तरह समझ सकते हैं। जहां आयनिक बदलाव तुरंत होते हैं, वहीं आर्गेनिक बदलाव धीरे धीरे होते हैं और स्‍थाई प्रकृति के होते हैं।

गुरू से ठीक पूर्व अठारह साल तक राहु की दशा चलती है। अगर किसी जातक की कुण्‍डली में किशोरावस्‍था या उसके ठीक बाद राहु की दशा शुरू होती है, तो निश्‍चय ही ऐसे जातक का सक्रिय काल बहुत ही कठिनाई भरा होता है। राहु की दशा में जातक की स्थिति किस प्रकार बदलती है और कैसे स्‍थाई परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं, यह हम  राहु की दशा और फल लेख में कर चुके हैं। कोई भी जातक हो, किसी भी लग्‍न अथवा राशि का हो, राहु की कुण्‍डली में जैसी भी स्थिति हो, यह दशा अंतत: खराब ही होती है।

गुरू (बृहस्पति) की दशा का प्रभाव और फल (Guru / Jupiter Mahadasha Effects and Remedy)
गुरू (बृहस्पति) की दशा का प्रभाव और फल (Guru / Jupiter Mahadasha Effects and Remedy)

अब राहु की दशा के ठीक बाद गुरू की दशा आती है। मोटे तौर पर इस दशा के बारे में कह सकते हैं कि हर जातक की कुण्‍डली में गुरू की दशा (Jupiter Mahadasha) कमोबेश अच्‍छी ही जाएगी। यहां अच्‍छा होना सापेक्ष है। राहु की दशा में जो अनिश्‍चतता का दौर चल रहा होता है, वह कुछ हद तक थम जाता है। आंखों के नीचे की झांइयां कम होने लगती हैं, नींद में सुधार होता है और दिमागी फितूर बहुत हद तक थम जाते हैं। राहु की अस्‍त-व्‍यस्‍तता कम होती है, अचानक आने वाली समस्‍याओं से अपेक्षाकृत कम सामना होता है, गुरू की दशा में योजनाबद्ध काम होने शुरू होते हैं।

ऐसे में किसी भी लग्‍न में गुरू की दशा अपेक्षाकृत अच्‍छी ही होती है। लेकिन यह अनुकूलता रातों रात नहीं बन जाती है। राहु ने अठारह साल तक कुण्‍डली पर प्रभाव रखा है, तो उसके प्रभाव कम होने अथवा खत्‍म होने में भी कुछ समय लगता है। राहु के दौरान शुरू किए गए प्रोजेक्ट्स हालांकि बंद होने लगते हैं, लेकिन उनका प्रभाव बना रहता है। कई लोग ऋण का शिकार होते हैं, कई रोग का तो कुछ लोगों को गहन मानसिक यंत्रण भी झेलनी पड़ती है, इन सभी का प्रभाव कम होने अथवा समाप्‍त होने में गुरू की महादशा (Guru Mahadasha) में गुरू की अंतरदशा (Guru Antardasha) का समय लग जाता है। इसी कारण गुरू की महादशा में गुरू की अंतरदशा को छिद्र दशा की संज्ञा दी जाती है।

छिद्र दशा को तो कहीं कहीं खराब दौर (Malefic Jupiter) भी कहा गया है, लेकिन मैं इसे परिवर्तन के दौर के रूप में देखता हूं। कोई भी इंसान लगातार स्थिरता के लिए प्रयास करता है, ऐसे में स्‍थाई प्रकृति के परिवर्तन जातक को परेशान कर देते हैं, इसलिए बोलचाल की भाषा में छिद्र दशा को खराब समय भी कह दिया जाता है। देखा जाए तो यह दुरावस्‍था में ईश्‍वरीय कृपा के रूप में ही होता है। इन परिवर्तनों का दौर कई बार कुछ महीने का होता है तो कई बार गुरु की महादशा में गुरू की अंतरदशा पूरी की पूरी ही रोलर कोस्‍टर राइड बन जाती है। यहां जातक की शिकायत होती है कि जब समय को उत्‍तम बताया गया था, वह दौर खराब कैसे गया, दरअसल यह खराब समय नहीं बल्कि परिवर्तन का समय है।

लग्‍नों में प्रभाव

अगर लग्‍नों की बात की जाए तो मेष, सिंह, धनु और मीन लग्‍नों में राहु की दशा से गुरू की दशा में प्रवेश करने के साथ ही उत्‍तम परिणाम दिखाई देने लगते हैं। इन लग्‍नों में देव गुरू वृहस्‍पति कारक की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वहीं वृष, मिथुन, कन्‍या और तुला राशियों में गुरु की दशा तुरंत बेहतर परिणाम नहीं दे पाती हैं, क्‍योंकि वृषभ और तुला में तो गुरू अकारक ही है और मिथुन और कन्‍या में ये बाधकस्‍थानाधिपति साबित होते हैं। कर्क लग्‍न में गुरू की दशा अपेक्षाकृत खराब ही जाती है। मकर, कुंभ और वृश्चिक राशियों में गुरू की दशा के परिणाम कभी शुरूआत में अच्‍छे में देखने में मिलते हैं तो कभी पूरी छिद्र दशा खराब जाते हुए दिखाई देती है, यह वृहस्‍पति की खुद की स्थिति पर निर्भर करता है।

भावों में प्रभाव

गुरू जिस भाव में बैठता है, उस भाव का नाश करता है। गुरू भारी ग्रह है, ऐसे में यह भाव से संबंधित कारकों यानी वस्‍तुओं और संबंधों का भी नुकसान करता है। कालपुरुष की कुण्‍डली के अनुसार लग्‍न में गुरु साख का नुकसान करते हैं, द्वितीय भाव में गुरू परिवार पर भारी रहते हैं, तृतीय भाव में गुरू जातक को भीरू बनाता है, चतुर्थ भाव में गुरू उच्‍च का परिणाम देता है, लेकिन घर में सरसता का अभाव होता है, पंचम भाव में गुरू सर्वाधिक अनुकूल परिणाम देता है, छठे भाव में गुरू दीर्घकालीन रोग देता है, सप्‍तम भाव में गुरू दांपत्‍य जीवन (Married Life in Guru Mahadasha) में कष्‍ट देता है, अष्‍टम भाव में गुरू लंबे रोग के बाद मृत्‍यु देता है, नवम भाव में गुरू अनुकूल परिणाम देता है और जातक की समाज में इज्‍जत और साख की बढ़ोतरी होती है। दसवें भाव में कार्य संबंधी बाधाएं आती हैं, एकादश भाव में आय के स्रोत सूखने लगते हैं और द्वादश भाव में अनुकूल परिणाम मिलते हैं।

देखने में ऐसा लग सकता है कि गुरू का अधिकांश भावों में विपरीत परिणाम ही आता है, लेकिन इनमें से अधिकांश कारक सांसारिक या कहें भौतिक साधनों यानी दुनियादारी के मामलों में ही होता है। बाकी जातक दिमागी रूप से अपेक्षाकृत शांत रहता है, अपनी प्रगति के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करता है, उसकी सीखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, अस्थिरता के दौर में भी वह आगे बढ़ता है, कर्क लग्‍न के अलावा अन्‍य सभी लग्‍नों में स्‍वास्‍थ्‍य (Health in Guru Mahadasha) में तेजी से सुधार होता है।

गुरू की दशा के दौरान अपने ईष्‍ट देव की आराधना की जाए और अनुकूल ग्रहों के उपयुक्‍त उपचार किए जाएं तो जातक को तेजी से लाभ मिलता है और वह प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ने लगता है। हालांकि जिन लग्‍नों में अस्थिरता की स्थिति होती है, वह तो समाप्‍त नहीं होती, लेकिन उस अस्थिर दौर में भी तेजी से प्रगति की सीढि़यां चढ़ी जा सकती हैं।


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