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ज्‍योतिष : कब हो नववधू का गृह प्रवेश first entry of bride in sasural

Dulhan Grih Pravesh : Vedic Astrologers in India

ज्‍योतिष : कब हो नववधू का गृह प्रवेश first entry of bride in sasural

विवाह कर दूल्‍हा दुल्‍हन को लेकर घर आता है, लेकिन कुछ मामलों में वधू के गृह प्रवेश को लेकर भी शुभता को देखा जाता है। किसी भी कन्‍या के जीवन का वह बहुत महत्‍वपूर्ण समय होता है, जब वह उस घर की दहलीज लांघती है, जिसमें वह पैदा होती है और एक नए घर में प्रवेश करती है, जो आखिर में उसकी कर्मभूमि और भविष्‍य की सभी संभावनाओं का स्‍थल साबित होगा।

ज्‍योतिष ने इस महत्‍वपूर्ण क्षण की विशिष्‍टता को ध्‍यान में रखते हुए नववधू के लिए भी मुहूर्त बनाए हैं। किस समय वधू अपने नए घर में प्रवेश करे कि उसका जीवन सुखी और सार्थक हो।

हालांकि इसके लिए कोई कठोर नियम नहीं हैं, फिर भी कुछ ऐसे क्षणों की उपेक्षा की जाए, जो क्षण उस महत्‍वपूर्ण घटना को खराब कर सकते हैं, तो प्रवेश के साथ ही नववधू न केवल स्‍वयं के लिए बल्कि जिस परिवार से जुड़ने जा रही है, उसके लिए भी भाग्‍यशाली सिद्ध हो सकती है।

एक सामान्‍य नियम यह है कि विवाह के दिन से 16 दिन के भीतर सम दिनों में अथवा पांचवे, सातवें अथवा नौवें दिन में नववधू का भर्तागृह में प्रवेश शुभ माना जाता है।

मुहूर्तशास्‍त्रों के अनुसार विवाह वाले दिन में भी नववधूप्रवेश की शास्‍त्रों द्वारा अनुमति है। यहां अनुमति से तात्‍पर्य यह समय श्रेष्‍ठ है।

अगर विवाह के सोलह दिन के भीतर नववधू का प्रवेश अपने ससुराल के घर में संभव नहीं हो पाए तो, सोलह दिनों के बाद एक मास तक विषम दिनों में, एक मास के बाद एक वर्ष तक विषम मास में और वर्षानन्‍तर पांच वर्ष पर्यंत विषम वर्ष में नववधू ग्रह प्रवेश कर सकती है।

ध्‍यान रहे विवाहान्‍तर सोलह दिनों के भीतर वधू प्रवेश के लिए चंद्रबल, गुरु शुक्र अस्‍त आदि दोष, सम्‍मुख दक्षिणस्‍थ शुक्र दोष आदि का विचार नहीं किया जाता।

यानि विवाह के ठीक बाद का पखवाड़ा स्‍वत: शुभ होता है। हां प्रवेश के समय अल्‍पकालिक भद्रा आदि दोषों का प्रयत्‍नपूर्वक त्‍याग करना ही चाहिए। क्‍योंकि भद्रा एवं अन्‍य दोष शुभ कार्यों में वर्जित माने गए हैं। सोलह दिन के बाद सभी प्रकार के दोषों को ध्‍यान में रखते हुए घर में वधू प्रवेश होना चाहिए।

ग्राह्य तिथियां – रिक्‍ता यानी चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी और अमावस्‍या को छोड़कर शेष सभी ग्राह्य हैं।
ग्राह्य वार – चंद्र, बुध, गुरू, शुक्र और शनिवार। (कुछ बुधवार को शुभ नहीं मानते)

ग्राह्य नक्षत्र – अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, मघा, पुष्‍य, उत्‍तराफाल्‍गुनी, हस्‍त, चित्रा, अनुराधा, मूल, उत्‍तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्‍ठा, उत्‍तरभाद्रपद और रेवती ग्राह्य हैं।

रात के समय स्थिर लग्‍न अथवा स्थिर नवमांश में वधू प्रवेश शुभ माना जाता है।

अगर इन स्‍थूल बातों का ध्‍यान रखा जाए तो नववधू का जीवन भी सुखमय होगा और जिस परिवार से जुड़ेगी, वह परिवार भी सुखी रहेगा।

हालांकि मुहूर्त का विधान किसी क्षण विशेष को ही इंगित करता है, लेकिन जिस काम की शुरूआत ही बेहतरीन तरीके से हो जाए, तो उसमें आगे बाधाएं अपेक्षाकृत कम आती हैं। इसी को ध्‍यान में रखते हुए वधू के प्रवेश के मुहूर्त बताए गए हैं।