ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो इसके साथ अपने मानस से कुछ पुत्रों को जन्म दिया, ऐसे में ही मानस पुत्र भृगु ने वेदों के नेत्र और वेदांग में हाथों के रूप में ज्योतिष विषय की नींव रखी। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम महर्षि भृगु ने ही भगवान गणेश के साथ मिलकर ग्रहों की पहचान, कुण्डलियों का निर्माण, विश्लेषण और डाटा संग्रह के साथ फलादेश का क्रम शुरू किया था। इन्हीं विश्लेषणों से पहले ज्योतिष शास्त्र और कालांतर में ज्योतिष संहिता की नींव पड़ी। भले ही महर्षि पाराशर ने ज्योतिष गणित और फलित के आधार सिद्धांत दिए हों, लेकिन ग्रहों और राशियों से फलित की नींव महर्षि भृगु द्वारा ही की गई बताई जाती है।
ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ऋषि
ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ऋषि के मूल स्थान और कार्यस्थल का दावा करने वाले भारतभूमि में कई स्थान हैं। परन्तु ब्रह्मा ने सप्तऋषियों में से एक भृगु को अपनी कल्पना ही उत्पन किया, ताकि सृष्टि के नियमन में वे सहयोगी सिद्ध हो सकें। भृगु ने दक्ष की पुत्री ख्याति से विवाह किया और उनके दो पुत्र हुए दाता और विधाता। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी भी उन्हीं की पुत्री थी।
भृगु के बारे में कहीं कथा आती है कि उन्होंने जीवों की पीड़ा से व्यथित होकर शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते श्रीहरि के हृदय पर लात मार दी थी, निजी तौर पर मुझे यह कथा बोगस लगती है, क्योंकि जिन श्रीहरि के स्मरण मात्र से क्रोध, शोक, विषाद का हरण हो जाता है, उन श्रीहरि के दर्शन से ब्रह्मा के मानस पुत्र का क्रोध शांत नहीं हो गया होगा। कई कहानियों रूपक के तौर पर बनाई जाती हैं, कालांतर में वे बुरी तरह विकृत होकर हमारे सामने पेश की जाती हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। भगवान विष्णु और महर्षि भृगु की कहानी भी किसी रूपक (मेटाफर) को स्थापित करने के लिए कही गई होगी और कालांतर में रूढ़ कथा बन गई।
राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य और आयुर्वेद के आचार्य महर्षि च्यवन को भी महर्षि भृगु की संतान माना जाता है। महर्षि भृगु की संतानों को कालांतर में भार्गव के रूप में पहचान मिली। इन भार्गव कुल के कई महान ऋषियों ने अर्थववेद में अपना अमूल्य योगदान दिया है।
एक अन्य आख्यान के अनुसार महर्षि भृगु की दो पत्नियों का उल्लेख आर्ष ग्रन्थों में मिलता है। इनकी पहली पत्नी दैत्यों के अधिपति हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या थी। जिनसे आपके दो पुत्रों क्रमशः काव्य-शुक्र और त्वष्टा-विश्वकर्मा का जन्म हुआ। बड़े पुत्र काव्य-शुक्र खगोल ज्योतिष, यज्ञ कर्मकाण्डों के निष्णात विद्वान हुए। मातृकुल में आपको आचार्य की उपाधि मिली। ये जगत में शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए। दूसरे पुत्र त्वष्टा-विश्वकर्मा वास्तु के निपुण शिल्पकार हुए। मातृकुल दैत्यवंश में आपको ‘मय’ के नाम से जाना गया। अपनी पारंगत शिल्प दक्षता से ये भी जगद्ख्यात हुए।
महर्षि भृगु की दूसरी पत्नी दानवों के अधिपति पुलोम ऋषि की पुत्री पौलमी थी। इनसे भी दो पुत्रों च्यवन और ऋचीक पैदा हुए। बड़े पुत्र च्यवन का विवाह मुनिवर ने गुजरात भड़ौंच (खम्भात की खाड़ी) के राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से किया। भार्गव च्यवन और सुकन्या के विवाह के साथ ही भार्गवों का हिमालय के दक्षिण पदार्पण हुआ। च्यवन ऋषि खम्भात की खाड़ी के राजा बने और इस क्षेत्र को भृगुकच्छ-भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। आज भी भड़ौच में नर्मदा के तट पर भृगु मन्दिर बना है।
भृगु संहिता की पचास लाख कुण्डलियां
सृष्टि में पैदा हुए और होने वाले सभी जीवों की महर्षि भृगु ने भगवान गणेश के सहयोग से कुण्डलियां पहले ही बनाकर रख दी थी। इन कुण्डलियों की संख्या तब करीब पचास लाख थी। समय के साथ अधिकांश कुण्डलियां नष्ट हो गई। कुछ हजार कुण्डलियां शेष रहीं। पंजाब के होशियारपुर में उन्हीं बची हुई कुण्डलियों को देखा जाता है। इस संहिता में कुंडली के लग्न के अनुसार बताया गया है व्यक्ति का भाग्योदय कब होगा? कई जन्मों का राज खोलती है। अगर आपको अपने पिछले कई जन्मों के बारे में जानना है तो होशियापुर की ‘भृगुअन दी गली’ जरूर जाइए यहां रखी पांच हजार साल पुरानी भृग संहिता में अगर आपकी लग्न कुण्डली मिल जाती है तो आपको सभी प्रकार के फलादेश और उपचार बता दिए जाते हैं। महर्षि की इस संहिता द्वारा किसी भी जातक के तीन जन्मों का फल निकाला जा सकता है। इस ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति,शुक्र शनि आदि ग्रहों और नक्षत्रों पर आधारित वैदिक गणित के इस वैज्ञानिक ग्रंथ के माध्यम से जीवन और कृषि के लिए वर्षा आदि की भी भविष्यवाणियां की जाती थी।
ज्योतिष शास्त्र और भृगु संहिता
फलित ज्योतिष के सरल सिद्धांतों को लेकर किए गए अद्भुत फलादेश हमें होशियारपुर में तो मिल जाते हैं, लेकिन इन फलादेशों के लिए आधार सिद्धांत भृगु संहिता में नहीं मिलते। यही कारण है कि ज्योतिष शिक्षण में भृगु ज्योतिष को बहुत अधिक स्थान नहीं मिला है। गणित से फलित की ओर के विकास में भृगु निश्चय ही महत्वपूर्ण कड़ी रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार ज्योतिषीय गणित का विकास करते हुए उससे फलित सिद्धांतों का विकास महर्षि पाराशर ने लघु पारशरी सिद्धांत और वृहद् पाराशर होराशास्त्र में किया है, वैसा भृगु संहिता में नहीं मिलता है। वर्तमान में कई पुस्तकें भृगु संहिता फलित प्रकाश के नाम से बाजार में बिक रही हैं, लेकिन इनमें भी केवल यही स्पष्ट किया गया है कि कौनसा ग्रह किस राशि और किस भाव में होने पर क्या परिणाम रहेगा, इसके मूल सिद्धांत कहीं नहीं मिलते हैं।
महर्षि भृगु ने अपने निजी स्तर पर भगवान गणेश के सहयोग से अकल्पनीय फलादेश तो किए हैं, लेकिन ज्योतिष सीखने वालों के लिए बहुत कुछ बाकी नहीं रहता है। ऐसा भी माना जाता है कि आततायियों के आक्रमण और ब्राह्मणों के पलायन के दौरान भी बहुत से ग्रंथ समय के साथ लुप्त या समाप्त हो गए, इसमें भृगु संहिता को भी अच्छा खासा नुकसान हुआ होगा। पचास लाख कुण्डलियां बनाने के साथ बनी संहिता, जो कि विभिन्न शास्त्रों और ज्ञान की धाराओं से मिलकर बना होता है, उसे कितना नुकसान हुआ होगा, इसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती। बस आश्चर्य किया जा सकता है कि ऐसे ऋषि हुए हैं जिन्होंने भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी कुण्डलियां एक साथ बना ली थी। हो सकता है भृगु ने नींव रखी हो और भार्गवों ने बाकी काम किया हो, जो भी स्थिति रही हो, आज हमारे पास केवल छटांक भर बाकी है। महत्वपूर्ण सूत्रों के मिसिंग लिंक कहीं काल में खो गए हैं।