रुचक योग (Ruchak Yog)
पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)
रुचक योग (Ruchak Yog) पंच महापुरुष योगों में मंगल की स्थिति से जो योग बनता है वह रूचक योग कहलाता है। जब जातक की कुंडली में मंगल स्वराशि यानि मेष या वृश्चिक या फिर उच्च का जो कि मकर में होता है होकर जातक की कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव यानी केन्द्र में बैठा हो तो रूचक महापुरुष योग का निर्माण होता है।
ऐसे योग में जन्म लेने वाला जातक सुंदर, कोमल एवं कांतियुक्त आकृति का होता है। उसके शरीर के अंग सुडौल, भृकुटी सुंदर, काले केश, ग्रीवा शंख के समान, रक्त श्यामवर्ण, कमर पतली और बड़ा बलवान होता है। ऐसा जातक अत्यंत साहसी, शूरवीर, शत्रुओं पर विजय पाने वाला कीर्तिवान, शीलवान और धनवान होता है। ऐसा जातक विद्या में अभिरुचि रखने वाला, मंत्रादि का प्रयोग करने वाला देवताओं में प्रेम रखने वाला और गुरुजनों के प्रति नम्र होता है। यदि स्वयं राजा न हो तो राजा के तुल्य और उच्च पदाधिकारी होता है। साधारण रूप से उसकी आयु 70 वर्ष बताई गई है। उसके शरीर में शस्त्र अथवा अग्नि से कोई चिह्न पड़ जाता है और उसकी मृत्यु देव स्थान में होती है।
यह योग जातक को निर्भीक, बलशाली, ऊर्जावान एवं पराक्रमी बनाता है। ऐसे जातक अपने बल, बुद्धि और ऊर्जा का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में करते हैं। इन्हें शत्रुओं का कोई भय नहीं होता एवं एक बार जिस काम को यह जातक ठान लेते हैं फिर उसे परिणति तक लेकर ही जाते हैं। ये जातक अधेड़ उम्र में भी तरूण समान प्रतीत होते हैं। ये व्यक्ति धनी, शस्त्र व शास्त्र क ज्ञानी होते हैं। मंत्र और अभिचार क्रिया में भी ये कुशल होते हैं। इन्हें राजा से सम्मान मिलता है। यह शत्रुजित, कोमल मन वाले, त्यागी, धनी सुखी, सेनापति और वाहन प्रेमी होते हैं। इस योग से प्रभावित जातक पुलिस, राजनीति, सेना, शारिरिक शक्ति युक्त कार्य में अग्रणी, मशीन विभाग तथा उर्जा से जुड़े क्षेत्र में काम करते हैं। जिस बात को ठान ले उसे अवश्य पूरा करते है। इस योग के बनने पर व्यक्ति स्वास्थ्य उत्तम रहता है और प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। रूचक योग वाला व्यक्ति कर्मप्रधान और मेहनती होता है।
मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि पंच महापुरुष योग बनाते हैं जो कि जातक के लिये बहुत ही शुभ माने जाते हैं इनमें मंगल रूचक योग बनाते हैं तो बुध भद्र योग का निर्माण करते हैं वहीं बृहस्पति से हंस योग बनता है तो शुक्र से मालव्य योग एवं शनि शश योग का निर्माण करते हैं। इन पांचों योगों को ही पंच महापुरुष योग कहा जाता है।
यदि के पूर्ण बली हों तो ही उत्कृष्ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्चता अथवा न्यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्डली में एक योग हो तो वह भाग्यशाली दो हो तो राजा तुल्य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्पष्ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं।