लोहड़ी के दो दिन… (Lohri ke do din)
दक्ष प्रजापति से दल्ला भट्टी तक की कहानियाँ के इतर सूर्य की गर्मी में अब जीवनदायी तपिश का संचार होने लगा है। उत्सव का बड़ा कारण यही है। सर्दियों के आखिर में लकडि़यों की आग, रेवड़ी की महक और नृत्य की तरंग बताती है कि इस उत्सव के साथ ही जीवन की गति में इजाफा होगा। सभी मित्रों, पाठकों और सर्द हवाओं से त्रस्त लोगों को मकर संक्रांति और लोहड़ी की ढ़ेरों शुभकामनाएं।
इन सालों में मकर संक्रांति अंग्रेजी तारीख के अनुसार 15 जनवरी को आने लगी है, लेकिन भारतीय काल गणना के अनुसार मकर संक्रांति सूर्योदय के बाद होने पर ही 15 तारीख की मानी जाएगी। ऐसे में देश के उत्तरी भूभाग में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाने वाली मकर संक्रांति कहीं 14 जनवरी को मनेगी तो कहीं 15 जनवरी को।
इसके साथ ही लोहड़ी के दिन भी दो हो गए हैं। लोहड़ी त्योहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर आयोजित किया जाता है। यह धनु के सूर्य की आखिरी रात होती है।
ऐसे में जो लोग 14 को मकर संक्रांति का आयोजन करेंगे वे 13 की रात को लोहड़ी मनाएंगे और जो लोग 15 को मकर संक्रांति मान रहे हैं वे 14 की रात को लोहड़ी के उत्सव का आयोजन करेंगे। इस आमुहयोजन को लेकर किसी प्रकार के मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है।
मकर संक्रांति के पूर्व की संध्या पूरी ही लोहड़ी के उत्सव के लिए मानी गई है। हालांकि 14 की रात को सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा, ऐसे में एक कोण से 15 की सुबह को हमें मकर का सूर्य मिलेगा, लेकिन 14 को सूर्य अस्त होने तक धनु राशि में ही रहेगा, ऐसे में दोनों में से किसी भी दिन को संक्रांति पर्व और लोहड़ी उत्सव मनाया जा सकता है।
सूर्य की आकाशगंगा के चारों ओर की गति के चलते हर 72 साल में एक अंश आगे खिसक जाता है। हर अंश के आगे खिसकने पर संक्रांति भी एक दिन आगे बढ़ती जाएगी।
अभी यह 14 जनवरी से 15 जनवरी की ओर बढ़ रही है। संक्रांति भी संक्रमण के दौर में है, तो क्यों न दोनों दिनों का आनन्द लिया जाए। एक बार फिर से शुभकामनाएं।