आज जो ज्योतिषीय योग हम पढ़ रहे हैं, उन्हें आज से कई हजार साल पहले लिखा गया था। कम से कम मुनि नारद, ऋषि गर्ग, ऋषि पाराशर आदि द्वारा लिखे गए ज्योतिषीय योग जब लिखे गए होंगे, तब न तो आज की लिपी रही होगी और न सभ्यता। इसके बावजूद आज भी ये सभी सूत्र इतने अधिक प्रभावी हैं कि ज्योतिषीय फलादेश का स्ट्रक्चर उन्हीं पर खड़ा है।
जब मैं कहता हूं स्ट्रक्चर या ढांचा तो मेरा मंतव्य होता है कि जिस फलित ज्योतिष का हम अभ्यास कर रहे हैं, यानी जो भाग हमें दिखाई दे रहा है और जो भाग भीतर है, उसमें भेद है। ऊपरी बनाव शृंगार में समय के साथ बदलाव हो सकता है, लेकिन ढांचा वही था, वही है और वही रहेगा।
इसे सबसे सटीक राजयोग से समझ सकते हैं। राजयोग हम चार भागों में देखेंगे। राजतंत्र के दौरान, अंग्रेजी शासन के दौरान, आजादी के ठीक बाद और ग्लोबलाइजेशन के बाद। इन चारों दौर में हमें राजयोग तो मिलता है, लेकिन राजयोग का फल बदलता चला जाता है।
ऋषि पाराशर ने लघु पाराशरी सिद्धांत में भावों के आधार पर राजयोग को सबसे शक्तिशाली राजयोग बताया गया है। पाराशर कहते हैं केन्द्र शक्ति और त्रिकोण समृद्धि का सूचक है। इन दोनों का संयोग होता तो सबसे शक्तिशाली राजयोग बनेगा। लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव केन्द्र हैं। इसी प्रकार लग्न, पंचम और नवम भाव त्रिकोण हैं। अब केन्द्रों में से एक दशम भाव का अधिपति ग्रह नवम भाव यानी त्रिकोण में जाकर बैठ जाए और नवम भाव का अधिपति ग्रह दशम भाव में जाकर बैठ जाए तो यह सबसे शक्तिशाली राजयोग माना जाएगा। ऐसे जातक को पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, धन, सुख सुविधा, साख और पहचान सबकुछ मिलेगा।
राजयोग में वर्णित सभी प्रकार के लाभ राजतंत्र में तभी मिल सकते थे, जब राजा की कृपा हो। क्योंकि संसाधनों पर पूरा नियंत्रण राजदरबार का रहता था। दूसरे शब्दों में कहें तो जातक को दरबार में स्थान मिलना अपने आप में राजयोग हुआ करता था। चाहे वह ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र हो, अगर राजतंत्र में दरबार में किसी भी स्तर पर जातक अपना प्रभाव रखता था, तो उसे सभी प्रकार की विशिष्टताएं स्वत: अर्जित हो जाती थी। अब यहां भले ही राजयोग भावों से बना हो, यानी केन्द्र त्रिकोण के संबंध से बना हो, लेकिन जातक में जो विशिष्ट गुण होने चाहिए थे, वे मुख्यत: सूर्य, गुरु और मंगल आधारित हुआ करते थे।
जब राजतंत्र की जड़ें कमजोर हुई और विदेशी शासन आया। चाहे वह पुर्तगाली हों, स्पेनी हों, फ्रेंच हो या ब्रिटिश हों, उस दौर में अलग अलग क्षेत्रों में राजाओं से अधिक शक्तिशाली ये विदेशी तंत्र थे। इन लोगों ने व्यापार की दृष्टि से प्रवेश किया और संसाधनों पर धोखे से नियंत्रण कर लिया। ऐसे में जो जातक इन विदेशी ताकतों के लिए उपयोगी सिद्ध होते या विदेशी तंत्र के साथ अपना सामंजस्य बिठा लेते, वे राजयोग का भोग करते थे। इस दौर में राजयोग भले ही केन्द्र और त्रिकोण बना रहे थे, लेकिन चूंकि व्यापारी राज कर रहे थे, सो बुध प्रभावित जातकों को राज में घुसने का प्रबल अवसर मिला। अब गुरु, सूर्य और मंगल के गुण इतने प्रभावी गुण नहीं रहे।
तीसरा दौर हम देखते हैं आजादी के ठीक बाद का दौर। अब इस दौर में लोकतंत्र अपनी जडे़ं जमाना शुरू कर चुका है। लोकतंत्र का मूल आधार बड़े जनसमूह की सेवा के लिए कुछ लोगों का चुनाव किया जाता है और यह चुनाव अल्प अवधि का होता है। इन चुने हुए लोगों और इनसे बनी सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के पास संसाधनों पर नियंत्रण रहता है। ऐसे में राजयोग भी ऐसे लोग भोगेंगे जो सेवा कर्म बेहतर तरीके से कर सकते हों। लोकतंत्र के प्रभाव से केन्द्र और त्रिकोण के राजयोग के साथ शनि की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक की कर्क लग्न की जन्मपत्रिकाओं में हमें लग्न में शनि मिलता है। यानी शनि जितना अधिक प्रबल होगा, जातक राज के उतना ही करीब होगा।
अब चौथा दौर शुरू हो चुका है। हालांकि अभी लोकतंत्र समाप्त नहीं हो गया है, लेकिन राज के तरीके बदल गए हैं। अब राज करने के अपने अपने हिस्से दिखाई देते हैं। संसद पर अभी भी चुने हुए प्रतिनिधि हैं, कॉर्पोरेट में अपने स्तर पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने वाले व्यापारी हैं, जो सैकड़ों या हजारों परिवारों को प्रभावित करते हैं। सेना की कार्यप्रणाली सिविल की प्रणालियों से अलग चलती है और मुख्य धारा उसमें अधिक दखलअंदाजी नहीं कर सकती। इसी प्रकार न्यायपालिका के पास अपने स्तर पर इतने अधिकार हैं कि उसे सीधे तौर पर प्रभावित नहीं किया जा सकता।
इस दौर में स्पष्ट रूप से चार भाग दिखाई देते हैं। पहला भाग है संसदीय व्यवस्था का। इसमें चुने हुए प्रतिनिधि आते हैं। इनकी जन्मपत्रिकाओं में शनि अब भी प्रमुखता से जमा हुआ है। दूसरा भाग आईएएस-आईपीएस लॉबी का आता है। इनमें सूर्य और मंगल प्रभावी ग्रह के रूप दिखाई देता है। तीसरा भाग सेना का दिखाई देता है, जिसमें प्रमुख ग्रह मंगल के रूप में दिखाई देता है और चौथा भाग न्यायपालिका का दिखाई देता है, जिसमें सूर्य और गुरु प्रमुख ग्रह दिखाई देते हैं।
कुछ वर्ष पहले तक किसी जातक की कुण्डली में राजयोग का अर्थ सरकारी नौकरी से ही लगाया जाता था। ज्योतिष में कहीं भी सरकारी नौकरी का उल्लेख भी नहीं है, क्योंकि आजादी के बाद सरकारें बननी शुरू हुई और सरकारी नौकरियां आई। ऐसे में प्रथम श्रेणी के राजयोग का उल्लेख सरकारी नौकरी के तौर पर कर दिया जाता था। आज स्थिति यह है कि कोई जातक अगर सरकारी नौकरी लगता है तो वह निम्न मध्यमवर्गीय या मध्यमवर्गीय जीवन जीते हुए अपना जीवन संघर्ष जारी रखता है, वहीं श्रेष्ठ राजयोग वाला जातक अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ ही कॉर्पोरेट में अच्छे पद पर पहुंचता है। शुरूआती कुछ वर्षों के संघर्ष के बाद ऊंची पोस्ट पर ऐसी तनख्वाह पाता है, जिसके बारे में एक सामान्य सरकारी कर्मचारी कल्पना भी नहीं कर पाता है।
समय के साथ राजयोग की परिभाषा बदल रही है, आगे भी बदलती रहेगी। इसी कारण ज्योतिष ग्रंथों में लिखा होता है कि फलित का निर्णय काल, देश और परिस्थिति के अनुरूप होता है।