किसी भी जातक की कुण्डली (Kundali) वास्तव में जातक के जन्म के समय आकाशीय पिण्डों की स्थिति दर्शाने वाला चार्ट (Chart) होता है। कोई जातक अपने जीवन के बीसवें, तीसवें अथवा पचासवें साल में जब ज्योतिषी (Astrologer) को कुण्डली दिखाता है तो ज्योतिषी के पास कुण्डली के विश्लेषण के साथ इवेंट्स (Events) की गणना के लिए मुख्यत: तीन विधियां होती हैं।
पाराशरीय पद्धति (Parashar system of astrological calculation) में किसी भी जातक की आदर्श आयु 120 साल मानते हुए हर ग्रह (Planet) को एक निश्चित अवधि दी गई है। दशाओं का यह क्रम इस प्रकार रहता है…
केतू (Ketu) – यह दशा 7 साल चलती है।
शुक्र (Shukra) – इसकी दशा 20 साल तक चलती है।
सूर्य (Surya) – इसकी दशा 6 साल तक चलती है।
चंद्र (Chandra) – इसकी दशा 10 साल तक चलती है।
मंगल (Mangal) – इसकी दशा 7 साल चलती है।
राहू (Rahu) – इसकी दशा 18 साल चलती है।
गुरु (Guru) – इसकी दशा 16 साल चलती है।
शनि (Shani) – इसकी दशा 19 साल चलती है।
बुध (Buddh) – इसकी दशा 17 साल चलती है।
इन सभी वर्षों को जोड़ा जाए तो कुल अवधि 120 साल होती है। यह अवधि बीत जाने के बाद फिर से पहली दशा शुरू हो जाती है। मान लीजिए कि किसी जातक का जन्म सूर्य के नक्षत्र में हुआ है। तो उसे पहली दशा केतू की मिलेगी, फिर शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल आदि। इसी प्रकार जो जातक गुरु की दशा में पैदा होगा उसे आगे शनि, बुध, केतू, शुक्र आदि दशाएं इसी क्रम में मिलेंगी। इसके साथ ही नक्षत्र के चार चरण होते हैं। जितने चरण बीत जाते हैं, भोगने वाली दशा भी उतनी ही कम होती जाती है। मसलन किसी जातक का जन्म आर्द्रा के द्वितीय चरण में हुआ है तो उसकी दशा राहू की दशा होगी, लेकिन भोग्य दशाकाल 18 साल के बजाय 13 साल ही रह जाएगा।
अंतरदशा (Anterdasha)
चूंकि महादशा की अवधि अधिक होती है, ऐसे में दशाओं को बाद में अंतरदशा में तोड़ा गया। जिस प्रकार नक्षत्रों के क्रम से दशा बनाई गई, उसी प्रकार नक्षत्रों (Nakshatras) को जिस क्रम में तोड़ा गया है, उसी क्रम में अंतरदशाएं भी बनाई गई है। हर महादशा में नौ नौ अंतरदशाएं होती हैं। उदाहरण के तौर पर हम शुक्र की महादशा लेते हैं। शुक्र की 20 साल की दशा में शुक्र का अंतर तीन साल चार महीने के करीब होता है। इसी प्रकार शुक्र में सूर्य का अंतर लगभग एक साल का होता है। जितने समय की महादशाएं होंगी, उसी अनुपात में अंतरदशाओं का क्रम होगा।
शुक्र शुक्र – यह करीब तीन साल चार महीने का समय होगा।
शुक्र सूर्य – यह करीब एक साल का समय होगा।
शुक्र चंद्र – यह करीब डेढ़ साल का समय होगा।
शुक्र मंगल – यह करीब एक साल दो महीने का समय होगा।
शुक्र राहू – यह करीब तीन साल का समय होगा।
शुक्र गुरू – यह करीब ढाई साल का समय होगा।
शुक्र शनि – यह करीब तीन साल तीन माह का समय होगा।
शुक्र बुध – यह करीब पौने तीन साल का समय होगा।
शुक्र केतू – यह करीब एक साल तीन महीने का समय होगा।
इस प्रकार हर अंतरदशा को एक निश्चित अवधि मिलेगी। कुण्डली में जैसी स्थिति दशानाथ की होगी, यानी जिस ग्रह की महादशा चल रही है, वैसी ही स्थिति मोटे तौर पर जातक (Jataka) की भी होगी। शुक्र की महादशा बीस साल तक रहती है, ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता कि बीस साल तक जातक का समय पूरा अच्छा या पूरा खराब जाएगा। ऐसे में बीस साल की अवधि को बांट दिया गया है। अब हर दशा में अंतरदशा स्वामी की जैसी स्थिति होगी, जातक का समय वैसा ही जाएगा। मान लीजिए यह कुण्डली वृषभ लग्न के जातक की है। ऐसे में शुक्र की महादशा में शनि का अंतर कमोबेश अच्छा ही जाएगा। क्योंकि वृषभ लग्न में शुक्र लग्न का अधिपति है और शनि इस लग्न का कारक ग्रह है।
यदि अंतरदशा वाले समय से अधिक सूक्ष्म समय के लिए हमें जातक का अच्छा या खराब समय ज्ञात करना हो तो इसके लिए प्रत्यंतर दशा का प्रावधान है। गणना की विधि एक बार फिर ही रहेगी, कि दशा के भीतर अंतरदशा और उस अंतरदशा के नौ नौ भाग किए जाएंगे। हर अंतरदशा के वे नौ भाग अंतरदशा को मिले समय में से उसी प्रकार विभक्त किए जाएंगे जिस प्रकार दशा में से अंतरदशा का काल निर्धारण किया गया था।
अब तक बताई गई विधि पाराशर पद्धति से दशा की गणना की विंशोत्तरी (120 साल की गणना) पद्धति है। वर्तमान में पारंपरिक गणनाओं में इसी का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। दूसरी विधि कुछ अधिक क्लिष्ट है। इसे गोचर विधि (Transit method) कहेंगे। मूल कुण्डली की तुलना में वर्तमान में आकाशीय पिण्डों की क्या स्थिति है। उसे पश्चिम में ट्रांजिट होरोस्कोप ( Transit horoscope) कहते हैं और पूर्व में उसे तात्कालिक गोचर स्थिति के नाम से जाना जाता है।
इसके अनुसार आपकी जन्म कुण्डली में बैठे ग्रहों की तुलना में वर्तमान में ग्रहों का जो गोचर है, वह बताता है कि इस साल या प्रश्न पूछते समय आपकी क्या स्थिति है। इस विधि में पूर्व स्थापित नियमों की तुलना में ज्योतिषी की व्यक्तिगत मेधा (Skill) और इंट्यूशन (Intution) ही अधिक काम करते हैं। कुछ सिद्धांत हो पहले से बताए गए हैं, वे केवल फलादेश की मदद भर कर पाते हैं। इसके इतर भारतीय पद्धति में किसी व्यक्ति की चंद्र राशि से ग्रहों को गोचर को लेकर अधिक विस्तृत फल देखने को मिलते हैं। ये फल भी कम या अधिक मात्रा में विंशोत्तरी दशा के फलों को मैच करते हुए पाए जाते हैं।
अगर आप अपनी कुण्डली में वर्तमान दशा जानना चाहते हैं तो पहले देखिए कि वर्तमान में आपकी महादशा कौनसी चल रही है। प्रिंट की गई कुण्डली में यह आखिरी पेजों में दी गई होती है। लग्न का अधिपति और कारक ग्रह की दशा सामान्य तौर पर किसी भी जातक के लिए सर्वाधिक अनुकूल समय होती है। महादशा के बाद देखिए कि कौनसी अंतरदशा चल रही है। अनुकूल महादशा में अगर प्रतिकूल अंतरदशा हो तो वह दौर जातक के लिए खराब दौर होता है। महादशा अनुकूल हो और अंतरदशा प्रतिकूल हो, इसके बाद देखिए कि अंतरदशा के दौर अनुकूल है या प्रतिकूल। अगर अंतरदशा का दौर अनुकूल है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप बेहतर परिणाम लाने की सामर्थ्य रखेंगे।
दूसरी ओर प्रोग्रेस्ड होरोस्कोप अथवा गोचर की बात की जाए तो प्रत्येक कुण्डली में हमें विश्लेषण करना होगा कि किस ग्रह को वर्तमान में देखा जा रहा है और कुण्डली के अनुसार किसी ग्रह का गोचर आपकी कुण्डली के लिए कितना अनुकूल अथवा प्रतिकूल रहेगा। प्रोग्रेस्ड होरोस्कोप के लिए आपको लंबे अभ्यास की जरूरत होती है। ऐसे में नए लोगों के लिए यही सलाह है कि वे पाराशर के विंशोत्तरी दशा सिस्टम से ही ज्ञात करें कि उनका वर्तमान दौर कैसा चल रहा है।