जो जातक पहली बार कुण्डली दिखाता है वह इतना जैनुइन होता है कि उसे जो कुछ बताते हैं वह सटीक पड़ता हुआ महसूस होता है। मैं यहां कह रहा हूं कि महसूस होता है। कई बार फलादेश सटीक होते हैं तो कई बार जातक भी ‘हां’ कहने की मुद्रा में ही रहता है।
दूसरी तरफ ऐसे जातक होते हैं जो सैकड़ों ज्योतिषियों को कुण्डलियां दिखा-दिखाकर और चूरण छाप किताबें पढ़कर ऐसे हो जाते हैं कि उन्हें डील करने और कुतुबमीनार से छलांग लगा देने में कोई खास अन्तर नहीं लगता। ऐसे जातक (jataka) भाग्य के भरोसे ही सबकुछ पा लेने की हसरत पालने लगते हैं। इसी से शुरू होता है एक के बाद दूसरे ज्योतिषी के दहलीज पर कदम रखने का सिलसिला, जो कुण्डली के फट जाने पर भी नहीं रुकता।
मैं अपनी बात स्पष्ट करने से पहले कुछ बात बीकानेरी भुजिया के बारे में बताना चाहूंगा। बीकानेर में भुजिया मोठ की दाल के बनते हैं। मोठ की दाल उत्तरी पश्चिमी राजस्थान की विशिष्ट दाल है। जाहिर है कि यह दाल देश के अन्य हिस्सों में पैदा नहीं होती। इस दाल से भुजिया बनाने के कई तरीके हैं। शुद्ध दाल के भुजिया, दाल में थोड़ी या अधिक मात्रा में चावल मिलाकर बनाए गए भुजिया, मुल्तानी मिट्टी मिलाकर बनाए गए भुजिया। मसालों और उपयोग में ली जाने वाली सामग्री के अलावा बनाने के तरीकों के आधार पर भी भुजिया चार तरह के होते हैं। महीन, तीन नम्बर, मोटे और डूंगरशाही। मसालों और आधारभूत उत्पादों के वैरिएशन और बनाने के इतने तरीकों के चलते हर भुजिया कारीगर की अपनी शैली बन जाती है। ऐसे में बीकानेरी लोग हमेशा एक ही दुकान के भुजिया खाने के बजाय अलग-अलग दुकानों के भुजिया चखते रहते हैं।
अलग-अलग ज्योतिषियों के पास जाने वाले जातकों को मैं ऐसे ही भुजिया चखने वाले लोगों की श्रेणी में रखता हूं। पहली बार किसी ढंग के ज्योतिषी के पास पहुंचकर उपचार कर लेने वाले जातक को अपनी जिंदगी में प्रभावी बदलाव दिखाई देते हैं तो वह बार-बार उसी ज्योतिषी के चक्कर लगाना शुरू कर देता है। आखिर एक दिन वह ज्योतिषी हाथ खड़े कर देता है। जातक को भी ज्योतिषी का पुराना उपचार और उससे आए बदलाव उकताने लगते हैं।
ऐसे में वह दूसरे ज्योतिषी के पास जाता है। दूसरा ज्योतिषी दूसरे कोण से कुण्डली देखता है। नए उपचार बताता है और उससे होने वाले नए लाभ बताता है। कई दिन में दूसरे ज्योतिषी का स्वाद भी ‘जीभ’ खराब करने लगता है तो जातक तीसरे, चौथे और ऐसे बहुत से ज्योतिषियों के पास जाता रहता है। इस बीच जातक को लगता है कि उसे भी कुण्डली की समझ पड़ने लगी है। आखिर अपनी कुण्डली का विश्लेषण करने के लिए वह एक किताब खरीद लाता है।
अगर बहुत महंगे ज्योतिषियों से पाला पड़ा हुआ होता है तो वह शानदार और महंगी किताबें खरीदता है और अगर सस्ते और मुफ्त के ज्योतिषियों से लाभान्वित हुआ होता है तो सौ या दो सौ रुपए की किताबें खरीदकर ‘पढ़ाई’ शुरू कर देता है। इसके बावजूद फलादेश न कर पाता है न समझ पाता है, लेकिन प्राथमिक ज्ञान हासिल करने के बाद नए ज्योतिषियों से बहस करने के लिए तैयार हो जाता है।
करीब बीस ज्योतिषियों के चक्कर लगाने और पांच चूरण छाप ज्योतिष की किताबें पढ़ने के बाद मेरे पास फटी हुई कुण्डली लेकर पहुंचे जातक को देखकर ही मेरा माथा ठनक जाता है। अपने अंतर्ज्ञान से मुझे पहले ही भान हो जाता है कि अब यह कई दिन तक मुझे खून के आंसू रुलाएगा। ऐसे जातक आमतौर पर क्या सवाल करते हैं, इसकी एक बानगी आप भी देखिए…
– मेरी तुला लग्न की कुण्डली है, बुध की दशा में गुरु का अन्तर कैसा जाएगा।
– फलां सिंहजी ने उपचार बताया था, उससे पहले तो फायदा हुआ, लेकिन अब उपाय बेअसर साबित हो रहे हैं
– मेरा 2000 से 2007 तक का पीरियड को शानदार गया, लेकिन पिछले चार साल से कोई खास लाभ नहीं हो रहा है।
– शायद उपचार काम नहीं कर रहे
– फलां किताब में लिखा है कि शनि और सूर्य साथ होने से मेरी अपने पिता से लड़ाई रहेगी, लेकिन मेरी तो उनसे बातचीत ही नहीं होती
– थोड़ा बहुत समय बीच में ठीक गया था, लेकिन प्रभावी उपचार नहीं होने से मेरा पूरा समय अच्छा नहीं जा रहा
– काम तो कोई नया शुरू नहीं किया, यही नौकरी है, लेकिन पैसा कब होगा मेरे पास
– ये मेरी पत्नी की कुण्डली है, वह हमेशा घर में तनाव बनाए रखती है
इसके अलावा कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका दूसरा छोर कहीं नहीं होता जैसे
– आप ही कुछ बता दो
– आपको मेरी कुण्डली में क्या दिखाई देता है,
– मेरे भाग्य में क्या लिखा है,
– फलां सिंहजी ने यह बताया था, वह अब तक तो नहीं हुआ, आपका क्या कहना है,
– आपने अब तक जितना अध्ययन किया है उसके अनुसार जो भी समझ में आए सब बता दो
भुजिया चखने के इन जातकों का आज तक मुझे तो कोई इलाज नहीं मिला है, आपके पास कोई इलाज हो तो बताइएगा।