कई जातकों को सवाल होता है कि हमें कौनसे भगवान की आराधना करनी चाहिए। इस पर हर जातक को उसकी कुण्डली के अनुरूप देवता बता देता हूं। कुछ समय बाद जातक लाभ में आया दिखाई देने लगता है। जातक का ईष्ट कौन हो सकता है (Isht sadhna)। दर्शन का विद्यार्थी होने के नाते मैंने ईश्वर की अवधारणा को पढ़ा है और समझने का प्रयास किया है। सांख्य और अद्वैत वेदान्त जैसे दर्शनों में ईश्वर के बजाय परम ब्रह्म के स्वरूप को माना गया है। सांख्य उसे पुरुष कहता है तो अद्वैत ब्रह्म। ऐेसे में गणेशजी, हनुमानजी, विष्णुजी, ब्रह्माजी, शिवजी, शनिदेव, भैरवजी, वैष्णो देवी, करणी माता जैसे देवताओं को किसी रूप में देखा जाए।
वेदों की ओर देखा जाए तो जो प्राकृतिक तत्व हैं वही देव हैं। जिनसे हमें कुछ मिलता है, वह देव हैं। इसके इतर सभ्यता के विकास के साथ इंसान ने अपनी जरूरत की चीजों को सुविधा का साधन बनाना शुरू कर दिया। अब नल खोलने पर पानी आता है, गैस जलाने पर अग्नि मिल जाती है। आकाश की अब उतनी जरूरत नहीं और पृथ्वी पर भी फ्लैट बनाकर उसे कई गुणा करने के प्रयास शुरू हो चुके हैं। ऐसे में प्राकृतिक तत्व अपनी उस प्राकृतिक अवस्था में हमारे सामने नहीं हैं, जिसमें आज से सैकड़ों साल पहले पूजे जाते रहे हैं। ऐसे में रूपक के तौर पर हमारे पास अब अन्य देवता हैं। गौर करेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश देव अपने किसी न किसी खास गुण के साथ पूजे जा रहे हैं।
जब मैं कल्पना करता हूं भगवान गणेश की। तो मुझे बुद्धिशाली, गणों के प्रमुख, चतुर, रिद्धी सिद्धी के साथ गणेशजी दिखाई देते हैं। गणेशजी के पास हर समस्या का समाधान है। वे शिव और पार्वती के प्रथम पुत्र हैं। इसके चलते बुद्धि की जरूरत होने पर मैं गणेशजी के पास जाता हूं। जिस जातक को अपने कार्य के लिए अतिरिक्त सामर्थ्य की जरूरत होती है मैं उसे गणेशजी के पास भेजता हूं। लाल किताब पढ़ने पर पाया कि केतू की समस्याओं के समाधान के लिए भी गणपति के पास भेजने की संभावना है। शिव के त्रिशुल से सिर कटा होने के कारण केवल मूल धड़ के मालिक गणेश केतू की समस्याओं का समाधान भी करते हैं। यानी ऐसी समस्याएं जिनमें दिमाग लगाने के बजाय श्रम और एकरसता की जरूरत होती है।
आदि भगवान शिव (Lord Shiva) को चौरासी लाख योगों में सिद्ध बताया गया है। चंद्रमा उनके सिर पर विराजमान है और कंठ विष पीने के कारण नीला हो चुका है। शिव के परिवार के सदस्य एक दूसरे के विरोधी होते हुए भी साथ रहते हैं। शिव के संरक्षण में। शिव के पुत्र गणेश (GANESHA) का वाहन चूहा सर्प से डरता है, शिव का बैल नंदी पार्वती के वाहन सिंह से डरता है, शिव के गले में पड़ा सर्प कार्तिकेय के वाहन मोर से डरता है। इसके बावजूद परिवार का कोई सदस्य किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। यह शिव की ही महिमा हो सकती है। इसमें सबसे बड़ा रहस्य चंद्रमा पर शिव के अधिकार का है। शिव का क्रोध भयंकर है, क्योंकि देवताओं के रूद्र के रूप में ही शिव प्रकट हुए हैं। ऐसे में शिव की जटाओं को भिगोती आ रही गंगा नदी उन्हें शीतल बनाए रखती है। शिव के योगी, चंद्रमा पर अधिकार, परिवार के मुखिया और आवश्यकता होने पर विष तक पी जाने की क्षमता वाले गुण जातकों को सबल बना देते हैं।
वीर हनुमान का वर्णन सुनकर ही मन में वीरोचित विचार आने लगते हैं। आपन तेज सम्हारो आपे। जैसी उक्तियां हमें भी बली बनकर हर प्रकार के कष्ट से टकरा जाने को प्रेरित करती है। वायु पुत्र हनुमान का तेज, उनकी बुद्धि, उनकी स्वामी भक्ति, उनका बल, उनका शौर्य जानकर ही भुजाओं में बल आता हुआ प्रतीत होने लगता है। हनुमान चालीसा में उन्हीं का वर्णन समाया हुआ है। जैसे जैसे हम हनुमानजी के गुणों से साक्षात्कार करते हैं, हमें खुद के भीतर में वह तेज बढ़ता हुआ महसूस होने लगता है। भूत प्रेत और लौकिक समस्याएं तो जैसे छू मंतर होने लगती हैं। हनुमान के यही गुण उनके भक्तों में अंश रूप में दिखाई देने लगते हैं।
शक्ति की महिमा का तो जितना बखान किया जाए, उतना कम है। देवियों के प्रमुख रूप से नौ रूप बताए गए हैं। कहीं काली है तो कहीं कामाख्या, कहीं दुर्गा (DURGA) है तो कहीं लक्ष्मी (LAXMI)। जैसी आपकी इच्छा या कामना है, वैसी ही देवी की आराधना कर आप इच्छित फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। अब सवाल यह है कि किस जातक को किसी देव या देवी की आराधना करनी चाहिए। इसके लिए हमें फिर से ज्योतिष की ओर लौटना पड़ेगा। जैसा कि हम जानते हैं कि हर जातक की एक विशिष्ट प्रकृति होती है। व्यक्तित्व के तौर पर देखा जाए तो हर जातक अपने आप में विशिष्ट है, उसकी किसी दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती। फिर भी प्रमुख लक्षणों के आधार पर उन्हें बारह राशियों के अनुरूप बांटा गया है।
हर राशि की अपनी खासियत है और हर भाव में उस राशि का अपना परिणाम हासिल होता है। राशि और भावों के साथ ग्रहों की युति, दृष्टि और स्थिति भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में हम कम से कम तीन कोणों से देखकर यह अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं कि जातक को किस देवता की आराधना करनी चाहिए।
मेष (Aries) राशि मंगल ग्रह के अधीन है, यह राशि अग्नि तत्वीय, चतुष्पदीय चर स्वभाव की है। चर स्वभाव के कारण गतिशीलता इन जातकों का प्रमुख गुण होता है। बल की अधिकता होने के कारण इस राशि के अधिक प्रभाव वाले जातकों को मंगल के प्रतीक हनुमानजी की आराधना करने का लाभ प्राप्त होता है।
वृष (Taurus) राशि शुक्र के अधीन स्थिर और पृथ्वीतत्वीय राशि है। इस राशि के जातकों की प्रकृति अपेक्षाकृत स्थिर होती है। शुक्र के रूप में देवी की आराधना करने से इनको लाभ होता है। अब वृष राशि पर किन ग्रहों की दृष्टि और प्रभाव है, उसके अनुसार देवी का चुनाव किया जाएगा।
मिथुन (Gemini) राशि द्विस्वभाव राशि है। यह वायु तत्वीय है। यह बांझ राशि है। इसका अधिपति बुध है। बुध के स्वामी गणेशजी को बताया गया है। ऐसे में गणेश आराधना करने से बुध राशि के प्रभाव वाले स्थानों का लाभ मिलेगा।
कर्क (Cancer) राशि जलतत्वीय, चर स्वभाव और ठण्डी राशि है। इस राशि के प्रभाव वाले जातकों के लिए चंद्रमा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह होगा। चंद्रमा का अधिपति भगवान शिव को बताया गया है।
सिंह (Leo) राशि स्थिर स्वभाव की अग्नतत्वीय राशि है। मेष जहां चर स्वभाव की अग्नि है वहीं सिंह में यह अग्नि स्थिर प्रकृति की हो जाती है। ऐसे में स्वभाव में तेजी होने के बावजूद दिखने में स्थिरता दिखाई देती है। कह सकते हैं बैठा हुआ शेर। सिंह राशि का अधिपति सूर्य है। ऐसे में सूर्य आराधना लाभ देगी।
कन्या (Virgo) राशि दूसरी द्विस्वभाव राशि है। यह पृथ्वीतत्वीय है। अब एक ओर पृथ्वी की स्थिरता है तो दूसरी ओर द्विस्वभाव का दोलन। वायुतत्वीय मिथुन राशि के द्विस्वभाव की तुलना में कन्या का द्विस्वभाव कुछ स्थिर प्रकृति का होगा। इस राशि का अधिपति भी बुध को ही बनाया गया है। बुध के अधिपति गणेशजी इस राशि से प्रभावित जातकों को लाभान्वित करेंगे।
तुला राशि (LIBRA) : यह शुक्र (VENUS) के अधीन वायुतत्वीय और चर राशि है। शुक्र की इस दूसरी राशि में शनि उच्च का होता है और सूर्य नीच का। जिस प्रकार का जातक की कुण्डली में शनि होगा, वैसी ही जातक की स्थिति होगी। लाल किताब तो यहां तक कहती है कि अगर शनि नष्ट हो रहा हो तो वहां शुक्र आकर बलिदान कर देगा। तुला राशि वाले जातक शनिदेव की अथवा देवी की आरधना कर सकते हैं। अगर कुण्डली में शनि अथवा शुक्र पर मंगल का प्रभाव हो तो कई बार हनुमान (Hanumaan) आराधना भी उपयोगी सिद्ध हो सकती है…
वृश्चिक राशि (Scorpio) : यह मंगल (MARS) के अधीन दूसरी राशि है। यह जलतत्वीय और स्थिर है। इस लग्न वाले लोगों को भाग्य भाव के अधिपति के रूप में चंद्र और कर्मभाव के अधिपति के रूप में सूर्य मिलते हैं। हालांकि इन लोगों का मूल स्वभाव स्थिर होकर काम करने का होता है, फिर भी लग्नेश की स्थिति पर ही निर्णय किया जा सकता है कि ये लोग मूवमेंट के साथ काम करने वाले हैं या एक जगह स्थिर होकर। चंद्र के अधिपति देव शिव भाग्य को बढ़ाने वाले सिद्ध होंगे। वहीं कर्म के क्षेत्र में तेज सफलताएं अर्जित करने के लिए सूर्य (Surya) उपासना सहायक सिद्ध होगी।
धनु राशि (Sagittarius) : यह गुरु (JUPITER) के अधिकार क्षेत्र में आने वाली राशि है। यह अग्नितत्वीय एवं द्विस्वभाव है। किसी भी द्विस्वभाव लग्न की तरह धनु लग्न में भी कोई एक ग्रह कारक ग्रह नहीं बन पाता है। ऐसे में लग्न त्रिकोण होने पर लग्न और चतुर्थ का स्वामी गुरु खुद ही कारक बन जाता है। इसके साथ ही एक और सुखद संयोग यह है कि करीब दो तिहाई कुण्डलियों में सूर्य और बुध साथ रहते हैं। धनु लग्न की कुण्डली में सूर्य नवम भाव का तो बुध दशम भाव का अधिपति है। इन दोनों ग्रहों का मेल जातक को सहज रूप से राजयोग के रूप में मिल जाता है। इस राजयोग को सक्रिय करने के लिए भगवान लक्ष्मीनारायण (Laxminarayan) की आराधना लाभ दे सकती है।
मकर राशि (Capricorn) : यह शनि (Saturn) के अधीन पहली राशि है। भले ही मकर लग्न के लोगों का लग्नाधिपति शनि हो, लेकिन इनकी कुण्डली में कारक ग्रह शुक्र ही बनता है। मकर राशि पृथ्वीतत्वीय और चर राशि है। कारक ग्रह शुक्र होने के कारण देवी आराधना इन जातकों को तेजी से फल देती है वहीं शनि अराधना इन लोगों को कार्य करने की अधिक शक्ति प्रदान करती है। मकर लग्न में अथवा मकर लग्न के सप्तम भाव में मंगल आकर बैठ जाए तो जातक को हनुमान आरधना भी फल देने वाली सिद्ध होती है।
कुंभ राशि (Aquarius) : यह वायुतत्वीय और स्थिर राशि है। अपनी उपस्थिति में लंबे दिखाई देने वाले इन जातकों को भी कारक ग्रह के रूप में शुक्र ही मिलता है। यहां वायुतत्व और स्थिरता के साथ देवी मुझे सरस्वती और कालिका (Lord Kalika) दिखाई देती है। हालांकि काली में संहारक शक्ति भी है। ऐसे में मंगल की भूमिका को भी देखना होगा कि अगर मंगल और लग्न का मंगल से संबंध हो तो ही जातक काली की आराधना करे। अन्यथा नुकसान भी हो सकता है।
मीन राशि (Pisces) : यह गुरु के अधीन दूसरी राशि है। यह जल तत्वीय और द्विस्वभाव है। जैसे दो रंग का पानी। मेरा अनुभव है कि किसी अन्य ग्रह की तुलना में इस लग्न में चंद्रमा ही सबसे शक्तिशाली ग्रह बनकर उभरता है। ऐसे में चंद्रमा को मजबूत बनाए जाने की जरूरत होती है। शिव (Shiv) आराधना से बेहतर और कोई साधन नहीं है जिससे चंद्र को मजबूत किया जा सके। ऐसे में शिव मीन राशि के सबसे शक्तिशाली देव हैं। अन्य देवों की बात की जाए तो पीतांबर धारी कृष्ण (Lord Krishna) इस लग्न वाले जातकों के लिए सबसे अनुकूल देवता सिद्ध होते हैं।