योगीराज है शिवYogiraj Lord Shiva |
श्रावण मास (Shravan month) में शिव खुद ब खुद याद आने लगते हैं। स्वभाव से भोले, गायों (संपदा) की रक्षा करने वाले और शीघ्र प्रसन्न होने वाले प्रिय शिव (Lord Shiva) भक्तों की पुकार पर दौड़कर आते हैं। मैंने-आपने उन्हें देखा नहीं है, महसूस तो किया ही होगा। मैंने अपने योगाभ्यास (Yoga exercise) में उन्हें महसूस किया है, इतना करीब कि बता सकता हूं।
करीब पंद्रह साल पहले हमें योगीराज के पास भेजा गया। वे हमें हठ योग सिखाते थे। 5 फीट 9 इंच ऊंचाई के साथ मेरा वजन बिना वर्जिश किए 84 किलोग्राम तक पहुंच गया था। पेट पर हाथ मारते तो कई देर तक हिलता रहता था। मैंने योगीराज से कहा कि मुझे वजन कम करना है। उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा वजन कम करना है या पतला होना है।
मैंने कहा 84 किलोग्राम वजन है। उन्होंने कहा अभी एक किलोग्राम और बढ़ाना पड़ेगा। मेरी आंखे दीवार की दरार की तरह थीं। हंसने पर तो दिखाई देना भी बंद जाता था। मुझे दिखाई नहीं दिया कि योगीराज भी हंस रहे हैं या नहीं। उन दिनों बाबा रामदेव का कहीं नामो निशान भी नहीं था। ऐसे में केवल एक ही प्राणायाम था जिसे विवेकानन्द ने अपने राजयोग में बताया था। वह था अनुलोम विलोम।
सुबह पहले सूक्ष्म व्यायाम (Sooksham Vyayam) होते थे। इसमें शरीर को पर्याप्त मात्रा में हिलाया जाता। सूक्ष्म व्यायाम के बाद सूर्य नमस्कार (Surya Namaskaar)। शरीर की इन मामूली हरकतों से भी सर्दियों की सुबह सवा पांच बजे पसीना निकल आता था। इसके बाद आसन और आखिर में प्राणायाम।
सूक्ष्म व्यायाम और प्रणायाम कोई भी कर सकता है, लेकिन आसन, वे तो तोड़कर रख देते हैं। हर आसन मेरे लिए नई चुनौती लेकर आता। कुछ दिन में जब आसन लगने लगता तो योगीराज अगला आसन बता देते। पद्मासन, मत्स्यासन, अर्द्धमत्यासन, भुजंगासन, पर्वतासन तो मैंने किसी तरह आगे पीछे करके कर लिए।
इसके बाद आया एक बहुत ही आसान आसन। वह था वज्रासन (Vajrasana)। मैंने समझा यह आसन कराना तो फिजूल है। सभी आराम से बैठ गए हैं। इसी आसन की अगली कड़ी था सुप्त वज्रासन (Supt Vajrasana)। कल्पना कीजिए एक मोटे व्यक्ति की, जिसकी जांघे उसके शरीर के कुल भार के बराबर हों। ऐसी स्थिति में वज्रासन में सीधा बैठना आसान है। पीछे तरफ झुकने की भी कल्पना नहीं की जा सकती। योगीराज पास में आए।
उन्होंने एक-दो बार पीठ के पीछे हाथ रखकर मुझे सहारे से लिटाने का प्रयास किया, फिर छोड़ दिया। कहा क्लास के बाद मुझसे मिलकर जाना। उन्होंने मुझे एक कागज पेन दिया और कहा कि लिखो। उन्होंने शंख प्रक्षालन (Shankh Prakshalan) की विधि बताई। कहा दो दिन यहां आना मत। शंख प्रक्षालन करो और एक दिन का आराम करो, फिर लौटकर आना। घर आया और शंख प्रक्षालन में जुट गया। इसमें नमक मिला पानी पीना होता है और भुजंग आसन सहित चार आसान आसन बार बार करने होते हैं। हर बार एक गिलास पानी पीने के बाद चारों आसन।
छह गिलास पीने तक तो कुछ महसूस नहीं हुआ, लेकिन जब सातवीं गिलास पानी पी रहा था, तो अचानक तेज प्रेशर महसूस हुआ। लैट्रीन की ओर भागा। मुझे बीस गिलास तक यह क्रिया दोहरानी थी। हर बार एक गिलास पानी पीने के बाद दौड़ना पड़ रहा था। बस राहत की बात इतनी ही थी कि घर में इटैलियन कमोड था।
अगर नीचे बैठने की प्रक्रिया दोहरानी पड़ती तो शंख प्रक्षालन से पहले उठक बैठक से ढेर हो चुका होता। आखिर बीसवें गिलास तक यह स्थिति हो गई कि जैसा पानी पी रहा था, साफ सुथरा, वैसा ही निकाल रहा था। (इसे कहते हैं शंख प्रक्षालन, मेरी आंतों को नमक मिले पानी ने धो दिया था) अब मैं काफी हल्का और थका हुआ महसूस कर रहा था।
अगले दिन आराम किया और तीसरे दिन पहुंचा तो फिर वही सुप्त वज्रासन। दूसरे पुराने विद्यार्थी आसानी से आसन कर रहे थे और मैं उन्हें देख भर रहा था। आंतें साफ हो चुकने के बाद पीछे की ओर झुकने की स्थिति नहीं बन पा रही थी। 19 साल तक जिस कमर को ठोस बनाया था, वह मुड़ने को तैयार नहीं हो रही थी। सभी को आसन की मुद्रा से हटने को कहा गया और योगीराज ने सभी को एक बात बताई कि :-
“शिव का योगीराज कहा जाता है। जानते हो इसका कारण क्या है। किसी को नहीं पता था। योग गुरु ने बताया कि शिव ने विश्व में पाई जाने वाली कुल जमा 84 लाख योनियों के अनुरूप 84 लाख आसनों को सिद्ध किया है। इसलिए वे योगीराज हैं।”
(किसी भी हठ योगी को एक आसन सिद्ध करने में कई बार सालों लग जाते हैं। आसन सिद्ध होने का अर्थ होता है करीब साढ़े तीन घंटे उसी एक आसन में बैठे रहना। आसन सिद्ध तभी समझा जाता है जबकि योगी को उस आसन में बैठने में किसी प्रकार की कठिनाई महसूस न हो)
मैं रोमांचित था इस बात को सुनकर। सभी विद्यार्थी फिर सुप्त वज्रासन में जुट गए। मैं अब भी सुप्त वज्रासन नहीं कर पा रहा था। इस बार योगीराज ने मेरी सहायता नहीं की। बस इतना भर कहा कि शिव का ध्यान करो। मैंने आंखें बंद की और खिलंदड़ शिव दिखाई दिए। सुप्त वज्रासन करते हुए।
मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आई और मैं पीछे की ओर लेट गया। लेटे लेटे मैंने आंखे खोली तो देखा कि सिर की ओर योगीराज (योग गुरु) खड़े हैं और मुस्कुरा रहे हैं। धीरे से बोले, जितना असर तुममें दिखाई दिया है किसी और में नहीं दिखा।
उस दिन से आज भी मेरे दिमाग में शिव की वही छवि है। कोई दूसरी छवि बैठ भी नहीं पाई। अब भी ध्यान करने बैठता हूं तो अनुलोम विलोम के पूरक, कुंभक और रेचन में एक, चार और दो के अनुपात को बनाए रखने के लिए ऊं नम: शिवाय का मंत्र बोलता हूं। एक बार के लिए एक, चार बार के लिए चार बार और दो बार के लिए दो बार मंत्र का जाप।
इससे ध्यान भी जल्दी लगता है। आष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये आठ भाग हैं। ये मन को स्थिर करते हैं। चूंकि शिव इन सभी के लिए कृपा करते हैं, इसलिए कहते हैं शिव की उपासना करने से मन को मजबूती मिलती है