Lucky Dress भाग्यशाली परिधान
क्या किसी जातक को उसके परिधान (Dress) उसे भाग्यशाली (Lucky) बना सकते हैं, इसका स्पष्ट जवाब हैं, हां। ज्योतिष में न केवल परिधान पहनने के लिए मुहूर्त का प्रावधान है बल्कि परिधान के प्रकार और रंगों के आधार पर भाग्य को उन्नत बनाने के उपाय भी दिए गए हैं।
लोक व्यवहार में भी कहा जाता है बुध पहने बागा कदैई न रैवे नागा यानी बुधवार को जो नए वस्त्र धारण करता है उसे कभी परिधान की कमी नहीं रहती। विलासी परिधान पहनने के लिए तो शुक्रवार को विशेष दिन माना जाता है। अलग अलग क्षेत्रों में परिधान की अलग अलग परिपाटियां हैं, लेकिन वारों के आधार पर बुध और शुक्रवार को सर्वमान्य माना गया है।
दोषयुक्त परिधान
ज्योतिष में पुराने, घिसे हुए, कटे फटे, छेद वाले अथवा टूटे बटन अथवा खराब चेन वाले कपड़े किसी भी जातक को नहीं पहनने चाहिए। भले ही इसका दुष्परिणाम तात्कालिक नजर नहीं आए, लेकिन समय बीतने के साथ ऐसे कपड़े धीरे धीरे आर्थिक और मानसिक कष्ट देने लगते हैं। स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि घिसे, फटे अथवा दोषयुक्त वस्त्र जातक को दरिद्रता की ओर लेकर जाते हैं।
आजकल कटी हुई जींस और कटा टॉप पहनने का फैशन है, अगर खरीदने समय ही यह जींस पहले से डिजाइन में ही कटी हुई है तो संभवत: तकनीकी रूप से उसे दोषयुक्त जींस न कहा जाए, लेकिन उसे दोषमुक्त जींस भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वस्त्र धारण करने के मूल उद्देश्य का यह फैशन निषेध करती है।
वस्त्रों की तासीर
दूसरी ओर वस्त्रों की खुद की भी तासीर होती है। अगर महीन धागों से बुना हुआ गाढ़ा वस्त्र हो, प्रति मीटर जिसका घनत्व अधिक हो और आंशिक रेशे हुए निकले दिखाई दे तो वह सूर्य का वस्त्र होता है। रेशम से बने वस्त्र को शनि का वस्त्र कहा गया है। केतू का वस्त्र डॉटेड पोल्का की तरह होंगे। बुध का वस्त्र महीन और काला रंग लिए हुए होगा। राहु का वस्त्र चित्र- विचित्र कहा गया है। अगर वस्त्र पर सोने चांदी अथवा अन्य कीमती धातुओं को विभिन्न रंग रूपों में जड़ा गया हो तो वह वस्त्र शुक्र का वस्त्र बन जाता है। सफेद कोरा कपड़ा शुद्ध चंद्रमा का होता है। पीले वस्त्र को गुरु का वस्त्र कहा गया है। गुरु के वस्त्र की रेंज लेमन यलो से लेकर गेरूए तक है। ये वस्त्र ऐसे होते हैं जो जातक के शरीर के अधिकांश भाग को ढक लेते हैं।
अनुकूल नक्षत्र और उनके फल
अगर अनुकूल नक्षत्र में वस्त्र पहनें जाएं तो दीर्धकाल में इनके अनुकूल परिणाम आते हैं जो स्थाई प्रकृति के होते हैं। अश्विनी नक्षत्र में नया वस्त्र धारण करने से बहुत वस्त्र का लाभ होता है, भरणी नक्षत्र में वस्त्रों की हानि, कृतिका में अग्नि से भय, रोहिणी में धन प्राप्ति, मृगशिरा में वस्त्रों को चूहों का भय, आर्द्रा में मृत्युतुल्य कष्ट, पुनर्वसु में शुभ की प्राप्ति, पुष्य में धन का लाभ, आश्लेषा में वस्त्र नाश, मघा में मृत्युतुल्य कष्ट, पूर्वफाल्गुनी में राज या सरकार से भय, उत्तरफाल्गुनी में धन का लाभ, हस्त में कार्यों की सिद्धी, चित्रा में शुभ की प्राप्ति, स्वाति में उत्तम भोजन, विशाखा में जनों का प्रिय (Social success), अनुराधा में मित्रों का समागम, ज्येष्ठा में वस्त्र का क्षय, मूल में जल में डूबने का भय, पूर्वषाढ़ा में रोग, उत्तराषाढ़ा में मिष्ठान्न का लाभ, श्रवण में नेत्र रोग, धनिष्ठा में अन्न का लाभ, शतभिषा में विष का भय, पूर्वभाद्रपद में जल का भय, उत्तरभाद्रपद में पुत्र का लाभ और रेवती नक्षत्र में नवीन वस्त्र का धारण करने से रत्न लाभ होता है।
बुरे नक्षत्रों में भी राज से मिला, विवाह में प्राप्त अथवा ब्राह्मण की आज्ञा से धारण किए गए नए वस्त्र शुभ फल देने वाले साबित होते हैं।
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वस्त्र से शुभ अशुभ का ज्ञान
थान में से फाड़कर अलग किए गए नए वस्त्र को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है। देवता, राक्षस और मनुष्य। चारों कोनों में देवता का निवास माना गया है, दोनों पार्श्व में मनुष्य और बीच के तीन भाग राक्षस के माने गए हैं। कुछ इस तरह
देवता – राक्षस – देवता
नर – राक्षस – नर
देवता – राक्षस – देवता
अगर नया वस्त्र स्याही, गोबर, कीचड़ से सन जाए, जल या फट जाए तो इसके शुभ और अशुभ फल बताए गए हैं। अगर राक्षस भाग दूषित होता है रोग अथवा मृत्युतुल्य कष्ट होता है, मनुष्य भाग के दोष से पुत्र जन्म और तेज का लाभ मिलता है तथा देवताओं के भाग के दूषित होने से भोग में वृद्धि होती है। अगर सभी भाग एक साथ ही दूषित हो जाएं तो अशुभ परिणाम कहा गया है।
वस्त्र के किसी भी भाग में छिद्र का आकार अगर मेंढ़क, उल्लू, कबूतर, कौआ, मांसभक्षी जानवर, सियार, गदहा, ऊंट अथवा सर्प के समान हो तो अनिष्ट होता है। इसी प्रकार छत्र, ध्वज, स्वस्तिक, वर्धमान, वृक्ष, कलश, कमल, तोरण आदि के शुभ चिन्ह जैसा छिद्र का आकार हो तो शुभ परिणाम देने वाला होता है।