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retrograded mercury बुध वक्री अच्‍छा होता है या खराब beneficial or malicious

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वक्री अच्‍छा होता है या खराब retrograded mercury beneficial or malicious

आमतौर पर ग्रहों के संबोधन को ही उनका असर मान लिया जाता है। जैसे नीच के ग्रह को नीच यानि घटिया और उच्‍च के ग्रह को उच्‍च यानि श्रेष्‍ठ मान लिया जाता है। यही स्थिति कमोबेश वक्री ग्रह के साथ भी होती है। उसे उल्‍टी चाल वाला मान लिया जाता है। यानि वक्री ग्रह की दशा में जो भी परिणाम आएंगे वे उल्‍टे ही आएंगे। ऐसा नहीं है कि केवल नौसिखिए या शौकिया ज्‍योतिषी ही यह गलती करते हैं बल्कि मैंने कई स्‍थापित ज्‍योतिषियों को भी यही गलती करते हुए देखा है।

कैसे होता है वक्री ग्रह

जो लोग एस्‍ट्रोनॉमी जानते हैं उन्‍हें पता है कि सौरमण्‍डल में सारे ग्रह सूर्य की दीर्धवृत्‍ताकार कक्ष में परिक्रमा करते हैं। इस दौरान ग्रह कई बार सूर्य के बिल्‍कुल नजदीक आ जाते हैं तो कई बार अधिकतम दूरी पर चले जाते हैं। भारतीय ज्‍योतिष में सूर्य को भी एक ग्रह मानकर गणनाएं की जाती हैं। ऐसे में पृथ्‍वी पर खड़ा अन्‍वेषक जब देखता है कि सूर्य के बिल्‍कुल पास पहुंच चुका ग्रह गति करते हुए रफ्तार में सूर्य से आगे निकल रहा है तो उसे कहते हैं तीव्रगामी और जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होता है तो अन्‍वेषक को ग्रह की गति सूर्य की तुलना में धीमी होती दिखाई देती है। इसे कहते हैं ग्रह का वक्री होना। चूंकि बुध सूर्य के सबसे नजदीक है। ऐसे में सबसे कम अंतराल में बुध वक्री, मार्गी और अतिगामी होता है। वहीं शनि सबसे अधिक दूरी पर होने के कारण बहुत धीमी रफ्तार से अपनी ऐसी गति प्रदर्शित करता है।

कैसा होगा वक्री ग्रह का प्रभाव

अब दूसरा और महत्‍वपूर्ण प्‍वाइंट है कि वक्री ग्रह का परिणाम क्‍या होगा। इसके लिए उदाहरण लेते हैं बुध का। बुध कभी भी सूर्य से तीसरे घर से दूर नहीं जा पाता है। यानि 28 डिग्री को पार नहीं कर पाता है। इसी के साथ दूसरा तथ्‍य यह है कि सूर्य के दस डिग्री से अधिक नजदीक आने वाला ग्रह अस्‍त हो जाता है। अब बुध नजदीक होगा तो अस्‍त हो जाएगा और दूर जाएगा तो वक्री हो जाएगा। ऐसे में बुध का रिजल्‍ट तो हमेशा ही नेगेटिव ही आना चाहिए। शब्‍दों के आधार पर देखें तो ग्रह के अस्‍त होने का मतलब हुआ कि ग्रह की बत्‍ती बुझ गई, और अब वह कोई प्रभाव नहीं देगा और वक्री होने का अर्थ हुआ कि वह नेगेटिव प्रभाव देगा।

वास्‍तव में दोनों ही स्थितियां नहीं होती

टर्मिनोलॉजी से दूर आकर वास्‍तविक स्थिति में देखें तो सूर्य के बिल्‍कुल पास आया बुध अस्‍त तो हो जाता है लेकिन अपने प्रभाव सूर्य में मिला देता है। यही तो होता है बुधादित्‍य योग। ऐसे जातक सामान्‍य से अधिक बुद्धिमान होते हैं। यानि सूर्य के साथ बुध का प्रभाव मिलने पर बुद्धि अधिक पैनी हो जाती है। दूसरी ओर वक्री ग्रह का प्रभाव। सूर्य से दूर जाने पर बुध अपने मूल स्‍वरूप में लौट आता है। जब वह वक्री होता है तो पृथ्‍वी पर खड़े अन्‍वेषक को अधिक देर तक अपनी रश्मियां देता है। यहां अपनी रश्मियों से अर्थ यह नहीं है कि बुध से कोई रश्मियां निकलती हैं, वरन् बुध के प्रभाव वाली तारों की रश्मियां अधिक देर तक अन्‍वेषक को मिलती है। ऐसे में कह सकते हैं बुध उच्‍च के परिणाम देगा। अब यहां उच्‍च का अर्थ अच्‍छे से नहीं बल्कि अधिक प्रभाव देने से है।

तो बुध कब अच्‍छे या खराब प्रभाव देगा

इसका जवाब बहुत आसान है। जिस कुण्‍डली में बुध कारक हो और अच्‍छी पोजिशन पर बैठा हो वहां अच्‍छे परिणाम देगा और जिस कुण्‍डली में खराब पोजिशन पर बैठा हो वहां खराब परिणाम देगा। इसके अलावा जिन कुण्‍डलियों में बुध अकारक है उनमें बुध कैसी भी स्थिति में हो, उसके अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिलेंगे।

कहां है बुध का प्रभाव

वर्तमान में हर जगह बुध का प्रभाव है। जहां भी संदेशों का आदान-प्रदान हो रहा है वहां बुध का प्रभाव है। इसमें हर तरह का मीडिया शामिल है। संचार क्रांति बुध की ही क्रांति है, इंटरनेट बुध का ही स्‍वरूप है, लेखा और बैंकिंग भी बुध के प्रभाव क्षेत्र के हिस्‍से हैं और हां शेयर बाजार में भी बुध का भीषण प्रभाव है। आम आदमी की जिंदगी में भी सूचना का आना, जाना, रुकना और सूचना पैदा करना बुध का ही काम है।


इस संबंध में पूर्व में मैंने एक वीडियो भी बनाया था, इसमें मैंने विस्‍तार से वक्री बुध के बारे में चर्चा की है, देखिएगा… और लाइक कमेंट और शेयर भी कीजिएगा..