शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव और उपाय
(Shani Sadhesati Effects and Remedies)
ज्योतिष की दुनिया में शनि की साढ़ेसाती (Shani Sadhesati) कालसर्प के बाद सबसे ज्यादा डराने वाला बिंदू है। हर जातक जीवन में कम से कम तीन बार साढ़े साती की जद में आता है। जन्म कुण्डली के चंद्रमा पर शनि के प्रभाव को साढ़ेसाती के रूप में देखा जाता है। क्या प्रभाव होता है साढ़े साती का, किन जातकों पर साढ़ेसाती का अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, किन जातकों पर कम प्रभाव पड़ता है, कौनसे जातक साढ़ेसाती (sadhesati) से अप्रभावित होते हैं। क्या साढ़े सात साल का पूरा समय एक जैसा खराब रहता है। अगर नहीं तो कौनसा समय अधिक कठिन होता है और कौनसा समय अपेक्षाकृत अनुकूल होता है। इन सभी विषयों पर हम इस लेख में चर्चा करेंगे।
क्या है साढे़ साती
पहले हम यह जान लें कि साढ़ेसाती होती क्या है। जातक की कुण्डली में चंद्रमा जिस राशि में जिस डिग्री पर बैठा है उससे 45 डिग्री की परास में जब गोचर का शनि आता है तो शनि की साढ़ेसाती शुरू होती है। यह 45 डिग्री के दायरे में आने के साथ शुरू होती है और चंद्रमा से आगे निकलकर 45 डिग्री दूर चली जाए, तब तक चलती है। यह समय कुल साढ़े सात साल का होता है, इसी कारण इसे साढ़ेसाती कहते हैं। एक राशि तीस डिग्री की होती है। शनि का एक राशि में भ्रमण ढाई साल का होता है। चंद्रमा के दोनों ओर डेढ़ डेढ़ राशि यानी 45 डिग्री तक इसका भ्रमण यह स्थिति पैदा करता है। यानि ढाई ढाई साल के तीन हिस्से किए जा सकते हैं।
शनि का चंद्रमा पर प्रभाव (Saturn and Moon)
साढ़े साती हमें अधिक मेहनत करने के लिए विवश करती है। शनि न्याय का देवता है और चंद्रमा मन का। इसी मन पर शनि का क्रूर प्रभाव हम साढ़ेसाती में देखते हैं। जब हम समय के साथ दौड़ नहीं पाते तो अपनी स्वाभाविक लय को खो बैठते हैं। इसे ही खराब समय कहा जाता है। किसी व्यक्ति पर साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव (Shani Sadhesati Effect) है या नहीं यह जांचने के लिए एक बहुत आसान रास्ता है। जातक से पूछा जाए कि अभी क्या समय हुआ है। साढ़ेसाती से पीडि़त अधिकांशत: इसका गलत जवाब देंगे। अगर शनि खराब प्रभाव नहीं कर रहा है तो जवाब सही आएगा। इस फार्मूले को निकालने के पीछे ठोस कारण यह है कि खराब शनि हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर आक्रमण करता है और हमारे दैनिक कार्य करने में भी परेशानी आने लगती है। इसी से शुरू होती है टाइमिंग की समस्या। यानि गलत समय पर आप सही जगह पर पहुंचते हैं या सही समय पर गलत जगह पर। यह साढ़ेसाती का दूसरा बड़ा साइन है।
साढ़ेसाती का भय (Effects of Shani Sadhesati)
यह तो मैंने बताया कि समस्या कहां दृष्टिगोचर होती है और कैसे होती है। अब सवाल कि इससे डरा क्यों जाए और डरा क्यों न जाए। पहले सवाल का जवाब है कि जब पता चल गया कि शनि की साढ़ेसाती टाइमिंग और टाइम सेंस को खराब करती है तो सबसे पहले इसी पर चेक लगाया जाए। यानि इसे दुरुस्त करने के जमीनी उपाय शुरू कर दिए जाएं (Shani Sadhesati Remedies)। मसलन घड़ी पहनी जाए और दिनांक और समय के प्रति सचेत रहा जाए। प्लान बनाकर काम किए जाएं और जहां जाएं वहां समय नष्ट करने के बजाय पूर्व में पूरी जानकारी एवं समय लेकर पहुंचा जाए। इसी तरह के खुद के मैनेजमेंट के हजारों उपाय हैं। इससे साढ़ेसाती का असर नब्बे प्रतिशत तक कम हो जाएगा।
डरा क्यों न जाए
वह इसलिए कि एक आदमी की औसत आयु सत्तर साल भी मान ली जाए तो उस व्यक्ति की जिंदगी में तीन बार साढ़ेसाती आएगी। यानि साढे़ 22 साल तक साढ़ेसाती का काल रहेगा। यही नहीं कुछ योग शनि के कंटक के भी बनेंगे। यानि उस दौरान भी साढ़ेसाती के कुछ असर रहेंगे। इस तरह तो पहले चालीस साल के सक्रिय जीवनकाल में ही पंद्रह साल ऐसे आ जाएंगे जब इस डर के साथ जीना पड़ेगा। अब यह बात कैसे मानी जा सकती है कि किसी व्यक्ति के चालीस में से पंद्रह साल तो खराब ही हो गए। नहीं ऐसा नहीं हो सकता।
साढ़े साती पूरी तरह खराब भी नहीं होती। अपने तीन चरणों में वह सिर, पेट और पैर में या इससे ठीक उल्टे क्रम में रहती है (Shani Dhaiyya शनि की ढैया)। जब सिर में होगी तो सोचने के लिए मजबूर करेगी और जब पांव में होगी तो दौड़ने के लिए और जब पेट में होगी तो ढेर सारा धन दिलाएगी। यानि पेट भर देगी। अगर ऐसी है साढ़ेसाती तो डरने की नहीं बल्कि रोलर कोस्टर राइड करने का समय है। तो अब मैं सोच सकता हूं कि इस बार जब कोई आपको बताएगा कि आपकी साढ़ेसाती शुरू होती है अब… और आपको दिमाग में आएगा कि ठीक है चलो चलते हैं राइड पर।
साढ़े साती की कब चिंता करें
जब आपके किसी वृद्ध परिजन को साढ़ेसाती लगे तो चिंता करनी चाहिए। आमतौर पर तीसरी साढ़ेसाती जीवन के साथ ही खत्म होती है और तीसरी किसी तरह निकल जाए तो चौथी आखिरी होती है। हर कोई जानता है कि वृद्ध लोग रोलरकोस्टर राइड नहीं कर पाते हैं। साढेसाती में यही होता है। इसी से बड़े बूढों को दिल और दिमाग की बीमारियां होती है। कुछ लोग शारीरिक रूप से थक कर हार जाते हैं तो कुछ मानसिक लड़ाई में टूटते हैं। लेकिन जवानों के साथ ऐसा कुछ नहीं होता।