इक्कीसिया श्री गणेश जी (Shri Ganesh)
ज्योतिष का यह ब्लॉग शुरू किया तो विषय पर लिखने के दौरान कई बार लगता कि ब्लॉग सूना-सूना लगता है। सो इस पर अपने ईष्ट देव इक्कीसिया गणेशजी (Shri Ganesh) का फोटो लगा दिया। शुरूआत में लोगों ने ध्यान दिया या नहीं लेकिन बाद में बहुत से लोगों ने पूछा कि ये इक्कीसिया गणेशजी कहां है, इनका क्या महत्व है।
शायद ज्योतिष के ब्लॉग पर गणेश जी की तस्वीर होने के कारण कौतुहल का कारण बनी होगी। बीकानेर शहर के पश्चिमी कोने में किराडूओं की बगीची में स्थित गणेश जी के इस मंदिर की स्थापना का दिन तो मुझे नहीं पता लेकिन इसके साथ एक तथ्य जुड़ा है।
वह यह कि इसे इक्कीस पुष्य नक्षत्रों के दिन बनाया गया था।जितनी देर तक पुष्य नक्षत्र चलता उतनी देर तक मूर्ति बनाने का काम होता और बाद में अगले नक्षत्र पर फिर से शुरू होता। इक्कीस पुष्य नक्षत्रों तक यह काम चला और मूर्ति बन गई।
इसमें गणेश जी (Shri Ganesh) की गोद में सिद्धि भी विराजमान है। आमतौर पर मूर्ति का श्रृंगार इतना अधिक होता है कि पता ही नहीं चलता कि मूर्ति का वास्तविक स्वरूप क्या है। एक दिन हमारा फोटोग्राफर नौशाद अली मंदिर पहुंचा तो उसे बिना श्रृंगार के गणेश जी (Shri Ganesh) दिखाई दिए। वह उनकी फोटो ले आया। उसी फोटो को मैंने इस ब्लॉग पर लगा रखा है।
श्री गणेश (Shri Ganesh) और मेरी मनोकामनाएं
इस मंदिर की खासियत यह है कि इक्कीस दिन तक रोजाना बिना बोले मंदिर जाने और गणेशजी की इक्कीस फेरी रोजाना लगाने पर मन की इच्छा पूरी हो जाती है। मैं जब पहली बार इस मंदिर में गया था तो यह छोटा सा मंदिर था। गर्भग्रह के पीछे इतनी कम जगह थी कि एक बार में दो जन फेरी नहीं लगा पाते थे।
लेकिन गणेशजी का चमत्कार ही है कि उन्होंने लोगों की इच्छाएं इतनी तेजी से पूरी की कि मंदिर बड़ा होता गया। अब यह शहर का सबसे ग्लोरियस मंदिर बन गया। जब मैंने जाना शुरू किया था तो मैं डिप्रेशन में था और एकांत की खोज में वहां जाकर बैठता था। मन को बड़ा सुकून मिलता था। तीन साल तक रोज जाता रहा। कभी कुछ मांगा नहीं लेकिन मेरी स्थिति में तेजी से बिना मांगे सुधार होता गया। एकाध बार मैंने मन में इच्छा लेकर फेरी निकालनी शुरू की तो बाधा आ गई और फेरियां पूरी नहीं कर पाया।
तो फिर से पुराने ढर्रे पर आ गया। जब भी बिना मांगे जाता था तो नियमित रूप से बिना नागा महीनों तक यह क्रम चलता रहता। मांगने पर ही बाधा आती। बहुत से लोग इक्कीस दिन फेरियां नहीं निकाल पाते हैं। कुछ लोग जो निकाल लेते हैं उन्हें पुत्र संपत्ति जैसी चीजें आसानी से मिल जाती है।
कालान्तर में दूसरे लोगों की इच्छाएं पूरी हुई तो मंदिर में भीड़ बढ़ने लगी। अब तो हालात ये हैं कि बुधवार के दिन गणेशजी की परिक्रमा एक साथ चालीस या पचास लोग करते हैं।
कई बार तो दर्शन भी मुश्किल से होते हैं। अब मैंने जाना कम कर दिया है। साल में एकाध बार ही जा पा रहा हूं। लेकिन मन में वही पुरानी वाली छवि है। कभी उहा पोह में होता हूं तो गणेश जी (Shri Ganesh) को याद करता हूं और समस्या का समाधान हो जाता है। यह मेरी आस्था से अधिक जुड़ा है सो यही मेरे ईष्ट हुए।