ग्रहों की भावों और राशियों में स्थिति, युति और दृष्टि संबंध से योग बनते हैं। ऐसे योग कई बार ग्रहों की सामान्य स्थिति के उलट बहुत ही अलग परिणाम देते हैं। देखने में ऐसा लगता है कि ग्रहों की स्थिति के हिसाब से जातक जीवन के सर्वश्रेष्ठ संबंधित ग्रहों की दशा में भोगेगा, लेकिन वास्तव में इसका उलट होता है और कई बार रोग के छठे घर, आयु के आठवें घर और व्यय के बारहवें घर यानी खराब वाले त्रिक स्थानों में बैठकर भी ग्रहों का यह संबंध अद्भुत परिणाम देता है। ऐसा ही एक योग है सिंहासन योग (Simhasan yoga in astrology)
मेरे सीखने के शुरूआती वर्षों की बात है कि एक छोटे शहर के प्रमुख व्यवसायी के आमंत्रण पर गुरूजी के साथ गया। जातक सरदारजी थे, बहुत ही अधिक पैसे वाले। काम कम करते थे, लेकिन पैसा डटकर कमाते थे। आज से पच्चीस साल पहले वह सफल कॉलोनाइजर थे। खुद का घर 120 गुणा 180 फीट के प्लॉट पर शहर के किनारे बना हुआ था। घर में ही स्विमिंग पूल था, जिसमें विदेशी कछुए तैरते थे। पूरे घर में ग्रेनाइट का फर्श था। उस जमाने में यह बड़ी बात हुआ करती थी। मैंने सोचा पता नहीं सरदारजी की कुण्डली में क्या गजब योग होंगे।
जातक ने जन्मपत्रिका गुरूजी को थमाई और गुरूजी ने मुझे, देखा तो मैं चकरा गया। सभी ग्रह छठे, आठवें, बारहवें और दूसरे भाव में बैठे थे। जब हम पत्रिका बांच रहे थे, तब वृहस्पति की दशा चल रही थी, लेकिन सरदारजी ने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ राहु की महादशा में देखा था। मैं आंखें फाड़े पत्रिका देख रहा था और गुरूजी मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे। आखिर पूछ ही लिया कि जातक ने कैसे सफलता हासिल की। मैंने तुरंत हार मान ली, तब गुरूजी ने बताया कि यह सिंहासन योग है, ऐसे जातक को योगा योगों में राजाओं का भी राजा कहा गया है। हालांकि उस समय तक कुछ पुस्तकें पढ़ चुका था, लेकिन ऐसा योग अब तक मेरे सामने नहीं आया था। लौटते ही मैंने पढ़ा…
कन्यामीनवृषालिभे यदि खगा: सिंहासन: कीर्तित:।
किंवा चापनृयुग्मकुंभहरिभे खेटे हि सिंहासन:।।
य: सिंहासनयोग जो हि मनुजो भूपाधिराजो।
बलीगर्जत्कुंजरावाजिराजिमुकुटारुढो धरामण्डले।।
अर्थात कन्या, मीन, वृष और वृश्चिक राशि में सभी ग्रह हों तो सिंहासन योग होता है। अगर धनु, मिथुन, कुंभ और सिंह राशि में भी ऐसी ही स्थिति बने तब भी सिंहासन योग समझना चाहिए। ऐसा मनुष्य जिसका जन्म सिंहासन योग में हो वह पृथ्वी पर गर्जन करने वाले हाथी घोड़ों की पंक्तियों में श्रेष्ठों पर बैठने वाला राजाओं का भी राजा होता है।
दूसरे शब्दों में सभी दु:स्थानों में भी बैठ जाएं तो भी ये सभी ग्रह एक विशिष्ट राजयोग बनाते हैं। पुराने जमाने में राजा हुआ करते थे, तो राजयोग का परिणाम राजा बनकर मिलता था, लोकतंत्र में भले ही राजा न बने, लेकिन ऐसा जातक राजसी जीवन तो जीता ही है। जिस सरदारजी की मैं कुण्डली देख रहा था, उनकी मेष लग्न की कुण्डली थी, ऐसे में न केवल सभी ग्रह वृषभ, कन्या, वृश्चिक और मीन राशि में बैठे थे। चूंकि राजयोग की शर्त पूरी हो रही थी, ऐसे में दु:स्थानों में बैठने के बावजूद भी सिंहासन योग अपना फल दे रहा था।