हवाई द्वीप के एक मनोचिकित्सक डॉ. ह्यू लिन (dr. ihaleakala hew len) ने अपने देश के सबसे कठिन मनोरोगियों को बिना उनसे मिले उन्हें ठीक कर दिया। आप और हम भले ही इसे जादू (Jadu) मान लें, लेकिन इस चिकित्सक ने अपनी दिनचर्या में इस जादू (Jadu) को शामिल कर रखा है।
कुछ साल पहले इस चिकित्सक की पहली नियुक्ति देश के ऐसे मनोचिकित्सालय में हुई, जहां मनोरोग के सबसे विकट मामले भेजे जाते थे।
डॉ. ह्यू लिन ने सोचा कि उन्हें यहां भेजा गया है तो इसमें जरूर ईश्वर का कोई न्याय रहा होगा। उन्होंने यह मानते हुए कि इन सभी मरीजों का चिकित्सक से कोई न कोई संबंध जरूर रहा है।
इस जीवन में न सही पिछले किसी जन्म में हुए संबंध (Past Life Relationship Connections) की वजह से आज वे साथ हैं। एक मरीज से रूप में तो दूसरा चिकित्सक के रूप में। यहीं से इलाज की प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
जब चिकित्सक अस्पताल में आए तो वहां के मरीजों से न केवल अस्पताल का स्टाफ बल्कि चिकित्सक भी डरते थे। जंजीरों में जकड़े होने के बावजूद इन मरीजों के करीब जाना भी खतरनाक था।
यहां ड्यूटी इतनी कठिन थी कि अस्पताल के स्टाफ को महीने दो महीने के बाद बदल दिया जाता था, ताकि ड्यूटी कर रहे कार्मिकों का मानसिक स्वास्थ्य न बिगड़ जाए।
इसी के साथ चिकित्सक की एक नई यात्रा शुरू हुई मानसिक संदेशों के आदान-प्रदान के रूप में। उन्होंने एक एक मरीज की फाइल को पढ़ना शुरू किया। हर केस को पढ़ने के दौरान उन्होंने दो मानसिक संदेश हर मरीज तक पहुंचाने का प्रयास किया।
‘मुझे खेद है,’ ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं’ डॉ. ह्यू लिन इसे ‘खुद की सफाई’ की पद्धति बताते हैं। वे इसे ‘हो’ओपोनोपोनो’’ कहते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मरीजों पर धीरे धीरे इसका असर दिखाई देने लगा।
एक समय के बाद खतरनाक मरीज शांत होने लगे। अब स्टाफ भी नियमित काम करने लगा। जो मरीज हल्के मनोरोग से पीडि़त थे, वे ठीक होकर घर लौटने लगे, फिर अधिक गंभीर मरीजों में भी तेजी से सुधार शुरू हुआ।
आखिर एक दिन खतरनाक स्तर के मनोरोगियों का वार्ड पूरी तरह खाली हो चुका था। आज डॉ. ह्यू लिन दुनियाभर में मरीजों को दुरुस्त करते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को अपनी पुस्तक द जीरो लिमिट (Zero Limits Book) में सहेजा है।
इसमें उन्होंने स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि दुनिया जैसी है वह हमारे भीतर का ही प्रतिबिंब है। भले ही आज हम उस प्रतिबिंब के कारणों को न जानतें हों, लेकिन इसी जन्म का भूतकाल अथवा पूर्वजन्म (Reincarnation) का बंधन इन बिंबों को पैदा करता है।
भारतीय दर्शन भी सृष्टि में मौजूद हर जीव के आपसी संबंध को मानता है। हम जैसी दुनिया को देखते हैं, वह बाहरी दुनिया नहीं होती, बल्कि हमारे भीतर हमारे द्वारा बनाई गई दुनिया का प्रतिबिंब मात्र है।
कुछ साल पहले ब्राजील के लेखक पॉल कोएलो (Paulo Coelho) ने इसी बात को अपने प्रसिद्ध उपन्यास द एल्केमिस्ट (Alchemist Book) में इस तर्ज में कहा था कि ‘जिस चीज को तुम पूरी शिद्दत से चाहते हो, पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साजिश करती है।’
इस कहानी में स्पेन का एक गडरिया अपने सपने पर विश्वास कर उसका पीछा करना शुरू करता है और आखिर में अपने भाग्य को पाता है। केवल एक विश्वास ही होता है जो सामान्य गडरिए को एल्केमिस्ट यानी अन्य धातुओं से सोना बनाने वाला कीमियागर बना देता है।
इस कहानी से सालों पहले परमहंस योगानन्द (Paramahansa Yogananda) ने अपनी जीवनी में मन के विश्वास और उससे उपजने वाले चमत्कारों के बारे में अपनी जीवनी योगी कथामृत (Autobiography of a Yogi) में जानकारी दी। खण्डों में विभक्त आत्मकथा में ऐसे कई उद्धरण हैं।
मसलन एक बार योगानन्द अपनी बहिनों को छत पर देखते हैं जो कटी हुई पतंगों को हसरत भरी निगाहों से देख रही होती हैं। छत नीची होने के कारण योगानन्द के घर में एक भी पतंग नहीं आ रही होती है।
योगानन्द विश्वास के आधार पर वातावरण में ऐसा परिवर्तन लाते हैं कि ऊंचाई पर उड़ रही पतंग अचानक हवा बंद होने के कारण गोता लगाती है और सीधे उनके घर में आ गिरती है। देखने में यह छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन किसी कटी पतंग की ओर इशारा कर उसे अपनी ओर बुला लेने का अर्थ पूरे माहौल पर कब्जा करना है।
एक ओर हमारा हमारा अंतर्मन यह जानता है कि पूरी सृष्टि का संतुलन कैसे चल रहा है। किसी मामले में यह हमारी लय को सृष्टि की लय के साथ मिला देता है तो दूसरी ओर मन ही है जो प्रकृति के संतुलन को अपनी इच्छा के अनुसार मोड सकता है। हो सकता है कि इससे प्रकृति का संतुलन एक नई व्यवस्था की ओर मुड़ जाए, लेकिन अंतत: संतुलन बना रहता है।
जो लोग इस संतुलन को जानते हैं और सृष्टि की परम लय के साथ खुद को जोड़कर चलते हैं, उन्हें भाग्यशाली कहा जाता है। दूसरी ओर इस संतुलन से परे रहने वाले लोग जीवन के उस रस से लगातार वंचित रहते हैं जिसके वे हकदार हो सकते हैं। हमारे दिमाग में हर तथ्य के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू साथ साथ चलते हैं।
जब सकारात्मक पक्ष हावी रहता है तो हमें तेजी से सफलताएं मिलती हैं और नकारात्मक पहलू के हावी रहने पर विफलता निश्चित हो जाती है। सफल होने वाले लोगों में इस सकारात्मक दृष्टिकोण को सहज रूप से देखा जा सकता है। वे कहते हैं मुझे नहीं पता कि इस काम में सफलता कैसे मिलेगी, लेकिन मेरा मन कह रहा है कि मैं सफल रहूंगा।
कहा जा सकता है कि अगर किसी इंसान को भाग्यशाली बनना है तो उसे पहले खुद पर विश्वास करना होगा, इसके बाद अपने विश्वास पर अडिग रहना होगा। या तो वह सृष्टि की परम लय के साथ खुद को जोड़ पाने में सफल होगा, या लय को बदलने की क्षमता हासिल कर लेगा।