मांगलिक कार्यों में मौली (कलावा)Mauli (Kalava) for Auspicious Occassions |
आपने हमेशा यह देखा होगा कि कैसी भी पूजा हो उसमें पंडित या पुरोहित लोगों को मौली या कलावा बांधते हैं ।क्या आप जानते हैं कि आखिर यह मौली या कलावा क्यों बांधा जाता है।
मौली का अर्थ है सबसे ऊपर, जिसका अर्थ सिर से भी लिया जाता है। त्रिनेत्र धारी भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा विराजमान है, जिन्हें चन्द्र मौली भी कहा जाता है। शास्त्रों का मत है कि हाथ में मौली बांधने से त्रिदेवों और तीनों महादेवियों की कृपा प्राप्त होती है। महालक्ष्मी की कृपा से धन सम्पत्ति, महासरस्वती की कृपा से विद्या-बुद्धि और महाकाली की कृपा से शाक्ति प्राप्त होती है।
इसके आलावा हिन्दू वैदिक संस्कृति में मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते है, ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे। मौली कच्चे सूत के धागे से बनाई जाती है। यह लाल रंग, पीले रंग या दो रंगों या पांच रंगों की होती है। इसे हाथ गले और कमर में बांधा जाता है।
हम किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत मौली बांधकर ही करते हैं। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है। अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे बांधने से बीमारी अधिक नहीं बढती है। पुराने वैद्य और घर परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिये लाभकारी होता है।
ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, डायबीटिज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये मौली बांधना हितकर बताया गया है। मौली शत प्रतिशत कच्चे धागे (सूत) की ही होनी चाहिये। आपने कई लोगों को हाथ में स्टील की बेल्ट बांधे देखा होगा।
कहते हैं रक्तचाप के मरीज को यह बैल्ट बांधने से लाभ होता है। स्टील बेल्ट से मौली अधिक लाभकारी है। मौली को पांच सात आंटे करके हाथ में बांधना चाहिये।
मौली को किसी भी दिन बांध सकते हैं, परन्तु हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल, आंकडे़ या बड़ के पेड़ की जड़ में डालना चाहिये।
लेखक- शिप्रा द्विवेदी