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भद्र योग (Bhadra Yog) – पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

भद्र योग (Bhadra Yog) पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)
भद्र योग (Bhadra Yog) पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

भद्र योग (Bhadra Yog)
पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

भद्र योग (Bhadra yog) बुद्धि के कारक बुध इस योग का निर्माण उस समय करते हैं जब वे स्वराशि जो कि मिथुन एवं कन्या हैं के होकर केंद्र भाव यानि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम स्थान में बैठे हों तो भद्र महापुरुष योग का निर्माण करते हैं।

ऐसे योग वाले जातक का सिर सिंह के समान चाल हस्‍ती के समान उरू और वक्ष स्‍थल ऊंचे और पुष्‍ट, हाथ पैर लंबे और मोटे सजीली कुक्षी और आकृति में लंबा तलहथी एवं तलवे सुंदर गुलाबी रंग के कमल पुष्‍प के जैसे होते हैं। ऐसा जातक अत्‍यंत मधुरभाषी विद्वान बुद्धिमान सत्‍कारी धर्मात्‍मा परोपकारी स्‍वतंत्र और रत्‍नों को तराजू से तौलने वाला होता है, अर्थात महाधनी तथा कीर्ती एवं यश की प्राप्ति करने वाला होता है। साधारण रूप से इसकी आयु 80 वर्ष तक मानी गई है।

यह योग जातक को बुद्धिमान तो बनाता ही साथ ही इनकी संप्रेषण कला भी कमाल की होती है। रचनात्मक कार्यों में इनकी रूचि अधिक होते हैं ये अच्छे वक्ता, लेखक आदि हो सकते हैं। इनके व्यवहार में ही भद्रता झलकती है जिससे सबको अपना मुरीद बनाने का मादा रखते हैं। बातों में उनके सामने कोई भी नहीं ठहर सकता। ऐसे जातक आंकडो से सम्बधित कार्य, बैंक, चार्टेड अकाउंट, क्‍लर्क, अध्ययन कार्यों से सम्बंधित तथा विदेश सम्बंधी कार्य करते हैं। भद्र योग वाला व्यक्ति बहुत व्यवहार कुशल होता है और किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में माहिर होते है। आज के समय में ऐसे लोग बड़े मित्र वर्ग वाले और सबसे सतत संपर्क में रहने वाले होते है। आधुनिक युग में देखें तो इन्‍हें दूर संचार के संसाधनों का बहुत शौक होता है।

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मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि पंच महापुरुष योग बनाते हैं जो कि जातक के लिये बहुत ही शुभ माने जाते हैं इनमें मंगल रूचक योग बनाते हैं तो बुध भद्र योग का निर्माण करते हैं वहीं बृहस्पति से हंस योग बनता है तो शुक्र से मालव्य योग एवं शनि शश योग का निर्माण करते हैं। इन पांचों योगों को ही पंच महापुरुष योग कहा जाता है।

यदि के पूर्ण बली हों तो ही उत्‍कृष्‍ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्‍चता अथवा न्‍यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्‍त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्‍तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्‍डली में एक योग हो तो वह भाग्‍यशाली दो हो तो राजा तुल्‍य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्‍पष्‍ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं।