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विवाह विलम्ब के योग

विवाह में विलंब के योग - Vivah Mein Vilamb Ke Yog - Combinations for Delay in Marriage
विवाह में विलंब के योग - Vivah Mein Vilamb Ke Yog - Combinations for Delay in Marriage

विवाह विलम्ब के योग

विवाह एक संश्लिष्ट और बाहू आयामी संस्कार है। इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार के फल के लिए विस्तृत एवं धैर्यपूर्व अध्ययन मनन- चिंतन की अनिवार्यता होती है किसी जातक के जन्मांग से विवाह संबंधित ज्ञान प्राप्ति के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करना चाहिए। विवाह विलम्‍ब के योगों की गणना भी महत्‍वपूर्ण है।

अनेकानेक कन्याओं की वरमाला उनके हाथों ही मुरझा जाती है अर्थात उनका परिणय तब सम्पन्न होता है जब उनके जीवन का ऋतुराज पत्र पात के प्रतीक्षा में तिरोहित हो जाता है वैवाहिक विलम्ब के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे आर्थिक विषमता, शिक्षा की स्थिति, शारीरिक संयोजन, मानसिक संस्कार, ग्रहों की स्थिति इत्यादि।

  1. शनि और मंगल यदि लग्न में या नवांश लग्न से सप्तमस्थ हो तो विवाह नहीं होता विशेषतः लग्नेश और सप्तमेश के बलहीन होने पर
  2. यदि मंगल और शनी, शुक्र और चन्द्रमा से सप्तमस्थ हो तब विवाह विलम्ब से होता है
  3. शनि और मंगल यदि षष्ठ और अष्टम भावगत हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है
  4. यदि शनि और मंगल में से कोई भी ग्रह द्वितीयेश अथवा सप्तमेश हो और एक दुसरे से दृष्ट से तो विवाह में विलम्ब होता है
  5. यदि लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र स्थिर राशिगत हों एवं चन्द्रमा चर राशि में हो तो विवाह विलम्ब से होता है
  6. यदि द्वितीय भाव में कोई वक्री ग्रह स्थित हो या द्वितीयेश स्वयं वक्री हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है
  7. यदि द्वितीय भाव पापग्रस्त हो तथा द्वितीयेश द्वादश्थ हो तब भी विवाह विलम्ब से होता है
  8. पुरुषों की कुण्डली में सूर्य मंगल अथवा चन्द्र शुक्र की सप्तम भाव की स्थिति यदि पापाक्रांत हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है
  9. राहू और शुक्र के लग्नस्थ होने पर भी विवाह में विलम्ब होता है
  10. यदि सप्तम बी हव का स्वामी त्रिक (६,८,१२) भाव में स्थित या त्रिक भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो तो विवाह में अत्यन्त विलम्ब होता है
  11. यदि लग्नेश और शुक्र वन्ध्या राशिगत हो (मिथुन, सिंह,कन्या एवं धनु) तो भी विवाह में विलम्ब होता है।

वैदिक ज्योतिष में विवाह के संदर्भ में आवश्यक निश्चित नियम निरूपित किए गए हैं, जिसके आधार पर विवाह के सम्बंध मे भविष्यवाणी की जा सकती है, हां इसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं।

जैसे कुंडली मे निश्चित विवाह योग है या विवाह योग नहीं है? इसके अलावा विवाह विलंब के योग हैं, द्वि-विवाह या तलाक के योग हैं या सुखद वैवाहिक जीवन के योग हंै या प्रेम विवाह के योग है, साथ ही विवाह के समय व जीवन साथी कैसा होगा इन सभी बातों का कुंडली से पता चलता है

जातक की कुंडली मे विवाह प्रकरणों में शुक्र व मंगल महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हंै, इन दोनों ग्रहों को विवाह संस्कार के आधार स्तम्ंभ कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी शुक्र विवाह के कारक है तो मंगल विच्छेदक ग्रह है

विवाह का भाव कुंडली मे सप्तम भाव है। इसके अलावा कन्या की कुंडली में देवगुरू बृहस्पति व वर की कुंडली में सूर्य की महत्ता भी होती है।

सुखद वैवाहिक जीवन का आकलन करते समय कुंडली के चतुर्थ भाव का भी अध्ययन किया जाता है। सप्तम भाव के आधार पर ही नही वरन विवाह के बारे मे निर्णय लेते समय चतुर्थ भाव, पंचम भाव व एकादश भाव का भी गहन अध्ययन आवश्यक है


सुखद वैवाहिक जीवन के योग

  1. सप्तम भाव के स्वामी का सम्बंध पंचम भाव से व पंचम के स्वामी का सम्बंध सप्तम भाव से हो तो वैवाहिक जीवन सुखद होता है।
  2. शुक्र का सम्बंध 6, 8,12 भावों से नहीं हो, मंगल से युति न हो व उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो दांपत्य जीवन सुखद होता है।
  3. पंचम भाव मे सौम्य ग्रह यथा चंद्र, गुरू, बुध हो तो ऎसे जातक सुमधुर वैवाहिक जीवन बिताते हैं।
  4. पंचम, सप्तम भाव के स्वामी साथ राहू या केतू की युति सफल दांपत्य जीवन प्रदान कराती है।
  5. पंचम भाव मे राहू व एकादश भाव में केतू हालांकि संतान पक्ष को कमजोर करती है, पर ऎसे जातकों का वैवाहिक जीवन ठीक रहता है।
  6. शुक्र व चंद्रमा की युति या सम -सप्तक योग सुखद और आनंददायक वैवाहिक जीवन प्रदान कराते हैं।

वैवाहिक जीवन में बाधाएं

  1. शुक्र व मंगल की युति सुखद वैवाहिक जीवन मे बाधाएं प्रदान करते हैं।
  2. सप्तम भाव मे कू्रर ग्रह सूर्य, शनि राहू या केतू अल्प दांपत्य सुख प्रदान कराते हैं।
  3. कुंडली में मंगल दोष विवाह विलंब कराते हंै, मंगल दोष सिर्फ लग्न कुंडली से ही नहीं वरन चंद्र व सूर्य कुंडली से भी देखना चाहिए।
  4. सप्तम भाव का स्वामी यदि 6, 8 व 12 भाव मे स्थित हो तथा कू्रर ग्रहों से युति करता हो या उस पर किसी कू्रर ग्रह की दृष्टि हो तो वैवाहिक जीवन में बाधाएं आती है।
  5. पंचम भाव में शनि व सप्तम मे सूर्य हो तो विवाह अत्यंत विलंब से होता है।
  6. सप्तम भाव मे मंगल हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो ये द्विविवाह योग बनाते हैं।