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विवाह योग : सहायक, बाधक, उपचार और दिशा

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विवाह योग : सहायक, बाधक, उपचार और दिशा

कुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों के बारे में एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जब बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है।

यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।

विवाह योग के बाधक

बृहस्पति की दृष्टि पंचम पर पड़ने से उस समय विवाह के योग बन जाते हैं लेकिन यदि उसी समय एकादश स्थान में राहू बैठा हो वह नकारात्मक योग भी बनाता है जिससे बने बनाए रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं और बनता हुआ काम अटक जाता है। अक्सर सुनने में आता है कि सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एन मंजिल के समीप पंहुच कर मामला लटक गया या कहें बात सिरे नहीं चढ़ी। इसका सीधा सा कारण है आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती है।

कुंडली में विवाह योग बनाने के उपाय

लेख के उपरोक्त वर्णन में आपने विवाह के कारक ग्रहों की दशा और विवाह में बाधक ग्रहों की दशा के बारे में जाना। ऐसे में जातक के सामने यह सवाल उठ सकता है कि यदि उसकी कुंडली में ग्रहों की दशा अनुकूल नहीं है तो उसे क्या करना चाहिये। इसके लिये जातक कुछ सामान्य उपाय कर सकते हैं। मसलन यदि देवताओं का गुरु ग्रह बृहस्पति की दशा आपकी कुंडली के अनुसार कमजोर चल रही है और आपके विवाह में अड़चने आ रही हैं तो आपको बृहस्पति को प्रसन्न करना चाहिये। इसके लिये हर गुरुवार इनकी पूजा करें और पीले रंग की वस्तुएं इन्हें अर्पित करें। गुरुवार के दिन पीले रंग के परिधान धारण करें तो बहुत अच्छा रहेगा।

कमजोर ग्रहों को रत्न पहनने से भी काफी शक्ति मिलती है। बृहस्पति को शक्तिशाली करने के लिये आप पुखराज, जरकन या हीरे की अंगूठी पहन सकते हैं। भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करना भी काफी लाभकारी होता है। अगर और भी बेहतर और त्वरित परिणाम चाहते हैं तो ज्योतिषाचार्य को अपनी जन्म कुंडली दिखाएं और विवाह में बाधक ग्रह या दोष का पता लगाकर उसका निवारण करें।

विवाह किस जगह होगा

कुंडली में जिस भाव में शुक्र स्थित है, वहां से सातवें भाव में जो राशि स्थित है उस राशि के स्वामी की दिशा में ही जातक के जन्म स्थान से ससुराल होता है। जैसे किसी की कुंडली में शुक्र कर्क राशि में स्थित है तो इस राशि से सातवीं राशि मकर होती है, मकर राशि के स्वामी शनि होते हैं और इनकी दिशा पश्चिम है तो उक्त जातक का ससुराल उसके जन्म स्थान से पश्चिम मे होता है। शुक्र से यदि सप्तमेश नजदीक है तो ससुराल उसी दिशा मे नजदीक व दूर स्थित है तो ससुराल जन्म स्थान से दूर होगा।