गणेश देवों के देव हैं। जब रुद्राष्टाध्यायी सीख रहा था, तो वहां एक मंत्र गणांनात्वां गणपति से शुरू होता है। बाद में पता चला कि यह वैदिक मंत्र है। वेदों के जमाने में तो गणेश के बजाय इंद्र और प्राकृतिक तत्वों की पूजा होती रही है। ऐसे में वैदिक मंत्रों में गणेश। कई जगह पूछा। नियमित रूप से पंडिताई करने वाले तो त्रयंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्द्धनम कहते हुए शिवजी, भैरूजी, माताजी और मंदिर में स्थापित सभी 33 कोटि (33 koti devta) देवताओं के इत्र के फाहे लगाकर बाकी बचा कान पर लगा लेते हैं। ऐसे में पंडितों से मदद मिलने की उम्मीद नहीं थी।
बाद में एक दिन गुरु पाराशर से पूछा। तो उन्होंने कहा गणपति तो इंद्र हैं। मैंने दोबारा पूछा, समझा कि मैंने गलत सुन लिया है, तो गुरुजी ने स्पष्ट किया कि सभी देवताओं को गण माना गया है और इंद्र इन सभी देवताओं के ऊपर है। यानी सबसे पहले और ऊपर इंद्र हैं। बात हजम होना टेढ़ा काम हो गया।
“मैं सोचने लगा फिल्मों, कॉमिक्स और अब टीवी सीरियलों में देखे हुए इंद्र के स्वरूप से एक ही इमेज दिमाग में आती है कि एक सुकुमार एक बड़े से सिंहासन पर बैठा है और उसके आगे सुंदर नर्तकियां पारंपरिक भारतीय परिधान को अपने न्यूनतम उपभोग के सिद्धांत के साथ पहने हुए नृत्य कर रही हैं। दो मिनट का नृत्य और फिर उस सुकुमार का डोलता हुआ सिंहासन। कोई भी दो, पांच, दस या पचास साल तेज तप करता है और इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। इंद्र के पास ज्यादा काम भी नहीं है। बस बारिश करवाते हैं। बारिश भी कभी होती है और कभी नहीं होती। इंडियन मैटीरियोलॉजिकल डिपार्टमेंट वाले भी उन्हें जब तब गालियां निकालते रहते हैं। भारत की मानसूनी हवाओं के साथ अल निनो और अल नीना घूमती रहती हैं, पता नहीं इंद्र की अप्सराओं का क्या हुआ। हां, इंद्र के साथ उनकी अप्सराएं ध्यान में आती हैं। कॉमिक्स हो या टीवी सीरियल अप्सराओं को क्या कमाल के फीगर के साथ पेश किया जाता है, गजब। इंद्र को छोड़कर आंखे अप्सराओं पर ही टिकी रहती है।”
– मैंने गुरु पाराशर से पूछा कि इंद्र तो केवल सिंहासन पर बैठे रहते हैं और अप्सराओं का नृत्य देखते रहते हैं फिर से देवों के देव कैसे हो गए।
तो गुरुजी ने बताया कि इंद्र ने सभी इंद्रियों को जीत लिया तो उन्हें अधिक काम करने की जरूरत नहीं है। जैसे क्राउंचिंत टाइगर हिडन ड्रेगन में गुरु अपनी शिष्या से कहता है न कि मास्टर्स को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। उसी तरह इंद्र ने जब सबकुछ जीत लिया तो उन्हें मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती।
– तो अप्सराएं?
– अप्सराएं महिलाएं नहीं हैं, जैसा तुम सोचते हो, वे तो शक्तियां हैं, तरंगें हैं, इंद्र का खुद का विस्तार हैं, जो उन्हीं से निकलती हैं और उन्हीं में समा जाती हैं। अप्सराओं का नृत्य भी महिलाओं का नृत्य नहीं, बल्कि शक्तियों का प्रदर्शन है। इंद्र का यही तो सबसे महत्वपूर्ण काम है कि सृष्टि में तरंगों की ताल नियमित बनी रहे और वे उस पर ध्यान केन्द्रित रखें।
– इंद्र तो सहायता के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास भागते रहते हैं?
– वैदिक काल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश नहीं थे। बाद में धीरे धीरे ये देवता शामिल हुए और जो शक्तियां इंद्र में निहित मानी गई थी। बाद में अन्य देवों में बंट गई। ब्रह्मा सृष्टि के रचियता हुए, विष्णु पालन करने वाले और शिव प्रकृति को फिर से साम्य में लाने वाले। बाद की कहानियों में इंद्र को ऐसी स्थिति में ला दिया गया, कि वे हमेशा दूसरे देवताओं के पास जाकर अपनी समस्याएं (प्रकृति और आमजन की समस्या के अलावा अपने सिंहासन डोलने की) लेकर प्रमुख तीन देवताओं के पास जाने लगे। शुरूआत में ऐसा नहीं था।
– देवता को कुल जमा 33 करोड़ हैं?
– देवता 33 कोटि हैं। टीका करने वालों ने इसे 33 करोड़ बना दिया। ये तैंतीस करोड़ नहीं हैं। ये तैंतीस प्रकार हैं। ये 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, इंद्र और प्रजापति हैं। आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभाष 8 वसु हैं। मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज 11 रुद्र हैं। अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु 12 आदित्य हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमार हैं।
– और गणेशजी (मेरे इष्ट जो हैं)?
– गणेशजी शिव परिवार के हैं और इन्हें बाद में आई कथाओं में सभी देवताओं से पहले पूज्य बताया गया है। ये भी इंद्र की भांति गणों के अधिपति हैं।
– देवों में परिवारवाद?
– (गुरुजी मुस्कुराते हुए) यह आजकल के भ्रष्टाचार वाले परिवारवाद की तरह का नहीं है। हमारे सभी देवता अपने गुणों के साथ प्रकट हुए हैं। हर देवता में अपने विशिष्ट गुण हैं। ऐसे में शिव और उनके परिवार के गुणों को देखें तो शिव चौरासी लाख आसन जानने वाले और गायों की रक्षा करने वाले हैं। सिर में चंद्रमा और गले में सांप को धारण किए शिव साक्षात चैतन्य है। उनकी पत्नी शक्ति है। वाहन नंदी और पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं। हर एक के अपने गुण और वाहन हैं। दूसरी तरफ विष्णु हैं। राम और कृष्ण के अवतार विष्णु के ही अवतार हैं। ध्यान दोगे तो पता चलेगा कि राम के साथ शिव का बारहवां रुद्र हनुमान हमेशा साथ रहे।
इसके बाद भी लंबी बातचीत हुई जिसका तात्पर्य यह था कि अन्य धर्म अथवा संप्रदायों में जहां एक देवता बनाकर उसके पीछे एक पुस्तक बनाई गई है, जिसका पालन करना जरूरी है, वहीं भारतीय मान्यता में सभी देवों को गुणों के साथ प्रकट किया गया और मनुष्य को आजादी दी गई कि वे चाहे जिस देवता की आराधना करे। जैसा मनुष्य का निजी गुण है उसे वैसे ही देवता मिल जाएंगे। इसीलिए हर किसी का अपना ईष्ट है।