इस साल वास्तु के साथ ज्योतिष की कक्षा (Astrology Class) लेने का मौका मिला है। आज कक्षा का पहला दिन था। कक्षा की शुरूआत में वास्तु की कक्षा की ही तरह मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि उन्होंने अब तक अपने विषय में क्या ज्ञान हासिल किया है। ताकि एक स्तर तक का ज्ञान होने पर उससे आगे की बात की जा सके। आश्चर्य की बात यह है कि करीब डेढ़ दर्जन विद्यार्थियों ने एक स्वर में कहा कि इस विषय में अपनी राशि पढ़ने से अधिक कोई ज्ञान नहीं है। सो कक्षा का स्तर शुरू हुआ शून्य से। चूंकि लाइव पढ़ाना एक अलग अनुभव है और ब्लॉग पर ज्योतिष लेख लिखना जुदा बात। सो मैंने निर्णय किया कि अठारह दिन तक चलने वाली कक्षाओं में विद्यार्थियों से रूबरू होने के साथ इस ब्लॉग पर भी रोजाना एक पोस्ट ठेलने का प्रयास करूंगा। ताकि लाइव अनुभव के साथ ऑनलाइन सीखने वालों को भी अच्छा कंटेंट मिल जाए। तो आज से शुरू करते हैं
ज्योतिष की कक्षा का पहला दिन – ज्योतिष की जरूरत क्यों ?
यह सवाल मैंने खुद ने खड़ा किया। ताकि विद्यार्थियों को स्पष्ट हो सके कि जिस विषय को पढ़ना है उसे क्यों पढ़ा जा रहा है। यह सृष्टि ईश्वर की बनाई है। चाहे कपिल मुनि के सांख्य दर्शन की बात करें या शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत की। हमें ईश्वरवादी धर्म एक बात स्पष्ट कर देते हैं कि जो कुछ हो रहा है वह ईश्वर द्वारा तय है। सबकुछ पूर्व नियत है। कोई घटना या मनुष्य के दिमाग में उपजा विचार तक ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित किया गया है। सृष्टि का एक भाग बनकर हम केवल उसे जी रहे हैं।
ऐसे में इच्छा स्वातंत्रय (freedom of will) की कितनी संभावना शेष रह जाती है, यह सोचने का विषय है। क्योंकि या तो सबकुछ पूर्व नियत हो सकता है या हमारे कर्म से बदलाव किया जा सकता है। अगर कर्म से पत्ता भी हिलाया जा सकता है, जो ईश्वर की इच्छा नहीं है तो सबकुछ परिवर्तित किया जा सकता है। यह कर्म आधारित सिद्धांत बन जाएगा। यानि जैसा कर्म करेंगे वैसा भोगेंगे।
तो कुछ भी पूर्व नियत नहीं रह जाता है। इस बात का यह अर्थ हुआ कि ज्योतिष भी समाप्त हो जाएगी। अब ग्रह नक्षत्रों के बजाय यह देखना होगा कि जातक ने अब तक क्या कर्म किए हैं। कुछ प्रश्न फिर अनुत्तरित रह जाते हैं कि जातक की पैदा होने की तिथि, परस्थिति, माता-पिता, परिजन आदि उसका खुद का चुनाव नहीं हैं, ना ही अन्य परिस्थितियों का चुनाव वह कर पाता है। इसका जवाब फिर से प्रारब्ध में आ जुड़ता है।
अगर सबकुछ पूर्व नियत है तो हमें कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं है या जो कर रहे हैं उसका पुण्य और पाप भी हमारा नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता का ही हुआ और अगर कुछ भी पूर्व नियत नहीं है तो बिना चुनाव के हमें मिले जीवन के खेल के पत्तों का सवाल अनुत्तरित रह जाता है। अब तीसरी स्थिति सामने आती है कि ईश्वर ने कुछ पूर्व में ही नियत कर रखा है और कुछ इच्छा स्वातंत्रय की संभावना शेष रखी है। यहां यह स्पष्ट नहीं है कि हमें कितनी स्वतंत्रता मिली हुई है।”
बात दृढ़ और अदृढ़ कर्मों की
कक्षा में एक छात्र ने कहा कि हमें कर्मों का फल भी तो भुगतना है। इस पर मैंने ज्योतिष मार्तण्ड प्रोफेसर के.एस. कृष्णामूर्ति को ज्यों का त्यों कोट कर दिया। उन्होंने अपनी पुस्तक फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी में स्पष्ट किया है कि कर्म तीन प्रकार के होते हैं। पहला प्रकार है दृढ़ कर्म। ये ऐसे कार्य है तो तीव्र मनोवेगों के साथ किए जाते हैं। चाहे चोरी हो या हत्या। पूर्व जन्म के इन कर्मों का फल भी तीव्रता से मिलता है। दूसरा है अदृढ़ कर्म। इस प्रकार के कर्मों के प्रति व्यक्ति सचेत नहीं होता है, लेकिन कर्म तो होता ही है। जैसे अनचाहे किसी का नुकसान कर देना अथवा दिल दुखा देना। ऐसे कर्मों का फल हल्का होता है। तीसरा प्रकार है दृढ- अदृढ़ कर्म। ये कार्य तीव्र अथवा हल्के मनोभावों से किए जा सकते हैं, लेकिन इनकी परिणीति से इतर भावों के स्तर पर कर्मों का फल मिलता है। इन तीन अवस्थाओं के साथ चौथी स्थिति मैंने अपनी तरफ से जोड़ी निष्काम कर्म की। कर्मयोग में बताया गया है कि अगर हम किसी भी कार्य को बिना आसक्ति के भाव से करते हैं तो वे कर्म बंधन पैदा नहीं करते। कर्मयोग की ऊंची अवस्थाओं में ही व्यक्ति ऐसे कर्म कर पाता है। ऐसे जातक जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर कैवल्य या मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
ज्योतिष कक्षा: दूसरा दिन – ग्रह, तारा, नक्षत्र, राशि
दूसरे दिन बातचीत का मुख्य बिंदु रहा ज्योतिष की पुस्तकें। हालांकि मैंने अपने ब्लॉग के ही एक पेज पर इस पर विस्तार से लिखने का प्रयास कर रहा हूं। इसी क्रम में केवल इतना बता देता हूं कि मैंने प्रोफेसर कृष्णामूर्ति की एक से छह रीडर, हेमवंता नेमासा काटवे की ज्योतिष विचार माला और देवकी नन्दन सिंह की ज्योतिष रत्नाकर पुस्तकें लाने के लिए कहा है। इसके अलावा दूसरे दिन बातचीत हुई लग्न, ग्रह, नक्षत्र और राशि की टर्मिनोलॉजी की। इसी बहाने इस पोस्ट में मैं इन चारों के बारे में विस्तार से बताने का प्रयास करता हूं।
ग्रह : सिद्धांत ज्योतिष अथवा एस्ट्रोनॉमी के अनुसार सूर्य (जो कि एक तारा है) के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पिण्डों को ग्रह कहते हैं। इसी तरह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे चंद्रमा को उपग्रह कहते हैं। पर, फलित ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है। इस तरह सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, वृहस्पति और शनि के अलावा हमें चंद्रमा ग्रह के रूप में मिल जाते हैं। इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा की अपने पथ पर गति के फलस्वरूप दो संपात बनते हैं। इनमें से एक को राहु और दूसरे को केतू माना गया है। इनकी वास्तविक उपस्थिति न होकर केवल गणना भर से हुई उत्पत्ति के कारण इन्हें आभासी या छाया ग्रह भी कहा जाता है।
तारा : अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित पिण्ड को तारा कहते हैं। जैसा कि एस्ट्रोनॉमी बताती है कि हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा में स्थित है। यह 61.3 साल में भचक्र में एक डिग्री आगे निकल जाता है। चूंकि सभी ग्रह सौरमण्डल के इस मुखिया को चारों ओर चक्कर निकालते हैं। अत: पृथ्वी से देखने पर यह अपेक्षाकृत स्थिर नजर आता है।
नक्षत्र : तारों का एक समूह नक्षत्र कहलाता है। आकाश को 360 डिग्री में बांटा गया है। इन्हीं के बीच तारों के 27 समूहों को 27 नक्षत्रों का नाम दिया गया है। हर नक्षत्र का स्वामी तय कर दिया गया है। पहले से नौंवे नक्षत्र तक के स्वामी क्रमश: केतू, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि और बुध होते हैं। इसी तरह यह क्रम 27वें नक्षत्र तक चलता है। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं।
राशि : आकाश का तीस डिग्री का भाग एक राशि का भाग होता है। राशियां कुल बारह हैं। ये क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। सवा दो नक्षत्र की एक राशि होती है। यानि एक राशि में नक्षत्रों के कुल नौ चरण होते हैं।
ज्योतिष कक्षा: तीसरा दिन – राशियां, भाव और भावेश
भचक्र की बारह राशियां : तारों और उससे बने नक्षत्रों के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। नक्षत्रों के नौ चरणों से एक राशि बनती है। यानि सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है। राशियां कुल बारह हैं। पहली राशि मेष, द्वितीय वृष, तृतीय मिथुन, चतुर्थ कर्क, पंचम सिंह, छठी कन्या, सातवीं तुला, आठवीं वृश्चिक, नौंवी धनु, दसवीं मकर, ग्यारहवीं कुंभ और बारहवीं राशि मीन है। हर राशि का अधिपति होता है। सूर्य और चंद्रमा के आधिपत्य में एक-एक राशि है और शेष अन्य ग्रहों के अधिकार में दो-दो राशियां हैं। मेष और वृश्चिक राशि का अधिपति मंगल है। वृष और तुला का शुक्र, मिथुन और कन्या का बुध अधिपति है। चंद्रमा का कर्क राशि पर अधिकार है और सूर्य का सिंह राशि पर। धनु और मीन राशि का अधिपति गुरु है और मकर व कुंभ राशि का शनि अधिपति है।
भाव और भावेश क्या है? भचक्र के 360 अंशों को 12 भागों में बांटा गया है। इनमें से हर भाग 30 डिग्री का है। इस भाग को भाव कहते हैं। जब कोई कुण्डली हमारे सामने आती है तो उसमें बारह खाने बने हुए होते हैं। इनमें से सबसे ऊपर वाला पहला भाव होता है। कुण्डली के भावों को कुछ इस तरह से बताया जा सकता है। जिस भाव में जो संख्या लिखी है वह भाव की संख्या है। पहला भाव कुण्डली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। इसे लग्न कहते हैं। जातक के जन्म के समय यही भाव पूर्व दिशा में उदय हो रहा होता है।
लग्न से जातक की आत्मा, मूल स्वभाव, उसका स्वास्थ्य देखा जाता है। अन्य विषयों के विश्लेषण के दौरान भी लग्न की स्थिति प्रमुखता से देखी जाती है। यदि लग्न मजबूत होता है तो कुण्डली अपने आप दुरुस्त हो जाती है। अगर किसी जातक की कुण्डली में लग्न खराब हो रहा हो तो पहले उसी का उपचार किया जाता है।जहां दो लिखा है वह द्वितीय भाव है। यहां से जातक का परिवार और धन देखा जाता है। तीसरा भाव भाई बंधु और छोटी यात्राएं देखने के लिए है। चौथा भाव माता और घर की शांति बताता है, पांचवा भाव जातक की उत्पादकता और संतान के बारे में बताता है। छठा भाव ऋण, रोग और शत्रुओं की जानकारी देता है। सातवां भाव पत्नी और व्यापार में साझेदार के बारे में बताता है। आठवां भाव आयु और गुप्त कार्यों, नौंवा भाव भाग्य, दसवां कर्म, ग्यारहवां आय और बारहवां भाव व्यय की जानकारी देता है। आय, व्यय और कर्म किसी भी प्रकार के हो सकते हैं।
लग्न में कोई भी राशि हो सकती है। बारह राशियों में से जो राशि लग्न में होगी जातक का लग्न उसी राशि के अनुरुप कहा जाएगा। यदि जातक के जन्म के समय मिथुन या तुला राशि का उदय हो रहा है तो कहेंगे कि जातक का लग्न मिथुन या तुला का है। फर्ज कीजिए कि एक जातक 7 जून 2011 को रात 8 बजकर 19 मिनट पर बीकानेर में पैदा होता है तो उसकी कुण्डली कुछ इस तरह होगी। (दाएं ओर के चित्र में दर्शाए अनुसार)इसमें कुण्डली के लग्न में धनु राशि है। ऐसे में कहेंगे कि धनु लग्न की कुण्डली है। धनु राशि का स्वामी गुरु है। ऐसे में कहेंगे कि लग्न का अधिपति गुरु है। दूसरे व तीसरे भाव का अधिपति शनि। चौथे का फिर से गुरु, पांचवें व बारहवें का मंगल, छठे व ग्यारहवें का शुक्र, सातवें और दसवें का बुध, आठवें का चंद्र, नौंवे का सूर्य अधिपति होगा। ज्योतिषीय शब्दावली में इसे कहेंगे कि लग्नेश गुरु, द्वितीयेश व तृतीयेश शनि, चतुर्थेश गुरु, पंचमेश मंगल, षष्ठेश शुक्र, सप्तमेश बुध, अष्टमेश चंद्र, नवमेश सूर्य, दशमेश बुध, एकादशेश शुक्र, द्वादशेश मंगल है।
ज्योतिष कक्षा: चौथा दिन
राशियों का परिचय – मेष, वृष व मिथुन राशि
जब हम किसी कुण्डली या टेवे में लग्न कुण्डली देखते हैं तो हमें तीन चीजें प्राथमिक तौर पर दिखाई देती हैं। कुण्डली के बारह भाव, बारह राशियां और नौ ग्रह। पिछले कुछ सालों में यूरेनस, नेप्च्यून और प्लेटो को भी शामिल किया जाता रहा है, लेकिन प्राचीन भारतीय ज्योतिष में इनका उल्लेख नहीं मिला है। आगामी कक्षाओं में हम पहले राशियों, फिर ग्रहों और अंत में भावों से परिचय प्राप्त करेंगे। जब हम किसी कुण्डली का विश्लेषण करते हैं तो हम भाव से देखेंगे कि पूछे गए प्रश्न का आधार क्या है, राशि से देखेंगे कि प्रश्न का स्वभाव क्या है और ग्रहों से देखेंगे कि प्रश्न पर किन ग्रहों का अधिकार या प्रभाव है।
आकाश को बारह बराबर हिस्सों में बांटकर बारह राशियां बना दी गई हैं। पहली राशि मेष, दूसरी वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और बारहवीं मीन राशि है। हर राशि का अपना स्वभाव है। आज की कक्षा में हम केवल तीन राशियों का परिचय प्राप्त करेंगे।
भचक्र की पहली राशि “मेष”
इस राशि पर मंगल का आधिपत्य है। प्रकृति से यह राशि उष्ण और अग्नितत्वीय है। यह चर और धनात्मक राशि है। मानव शरीर पर इसका सिर और चेहरे पर आधिपत्य होता है। जब मैं मेष लग्न या मेष राशि से प्रभावित जातक को देखता हूं तो वह मुझे मझले कद का गठे हुए शरीर का दिखाई देता है। लड़ाकू लोगों की तरह मेष राशि के लोगों का जबड़ा कुछ चौड़ा होता है। ये लोग एक जगह टिककर नहीं बैठते। मेष राशि का एक बालक अगर आपके घर में आता है तो वह पहले कमरे में घूमकर देखेगा। इधर-उधर सामान छेड़ेगा। तब तक उसके अभिभावक उसे रोकने का निष्फल प्रयत्न करते रहेंगे। आप भी परेशान रहेंगे। आखिर निरीक्षण पूरा होने के बाद वह अपनी सीट पर आकर बैठेगा। तब भी उसकी टांगे हिलती रहेंगी। मेष राशि से प्रभावित जातकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है। मेष राशि की दिशा पूर्व है, उत्पाद बम, आतिशबाजी का सामान, तीखे और नुकीले साधन हैं, जब लिखते हैं तो तीखी लिखावट होती है।
प्रेरणादायी वृष राशि
भचक्र की दूसरी राशि है वृष। आकाश के 31वें से 60वीं डिग्री तक इस राशि का विस्तार होता है। पृथ्वी तत्व, स्थिर, स्त्रैण, नम राशि के लोग दूसरों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होते हैं। ये सहनशील, दृढ़, मंद, परिश्रमी, रक्षक और परिवर्तन का विरोध करने वाले होते हैं। ये लोग एक ही काम में जुटे रहते हैं और परिणाम आने की प्रतीक्षा करते हैं। दीर्धकालीन निवेशक इस राशि से प्रभावित माने जा सकते हैं। इन जातकों की इच्छाशक्ति प्रबल होती है और विचारों में दृढ़ता और कट्टरता होती है। शुक्र के आधिपत्य वाली वृष राशि से प्रभावित जातक महत्वाकांक्षी होते हैं और साधनों का संचय कर उनका उपभोग भी करते हैं। कला, संगीत, प्रतिमा निर्माण, सिनेमा, नाटक जैसे आमोद प्रमोद और विलासी कार्यों में शुक्र का प्रभाव देखा जा सकता है। इनकी सदैव सुखी जीवन जीने की कामना होती है। ये लोग तभी तक काम में जुटते हैं जब तक कि इन्हें इच्छित की प्राप्ति नहीं हो जाती। अपने साधनों को जुटा लेने के बाद ये लोग उसका उपभोग करने के लिए अवकाश ले लेते हैं। सुंदर लिखावट, प्रवाह के साथ लेखन और स्त्रियों के प्रति सम्मान इन लोगों में विशेष रूप से देखने को मिलता है। शुभ रंग गुलाबी, हरा और सफेद और शुभ रत्न नीलम, हीरा और पन्ना होता है।
यादों में खोए मिथुन राशि के जातक
आकाश के टुकड़ों का तीसरा 30 डिग्री का टुकड़ा मिथुन राशि है। इस पर बुध का आधिपत्य है। वायव्यीय राशि के जातक यादों के साथ अपनी जिंदगी बिताते हैं। इन्हें आप बचपन की कोई बात पूछ लीजिए, चालीस साल की उम्र में भी तीन साल की उम्र की यादें ऐसे ताजा होंगी जैसे कल ही की बात हो। हाथ पैर लम्बे, शिराएं दिखती हुई, लम्बा और सीधा शरीर, रंग गेहुंआ, दृष्टि तीव्र और क्रियाशील तथा लम्बी नासिका वाले ये जातक अलग से ही पहचान में आ जाते हैं। ये लोग चपल, अध्ययनशील, व्यग्र और परिवर्तन के लिए तैयार रहने वाले लोग होते हैं। द्विस्वभाव राशि के ये जातक नौकरी के साथ व्यवसाय करते देखे जा सकते हैं। कई बार केवल व्यवसाय करते हैं तो दो तरह के व्यवसाय में लगे दिखाई देते हैं। दूसरों की सहायता करते वक्त इनका कौशल देखते ही बनता है। परिवर्तनशीलता एक ओर जहां इनका सद्गुण है वहीं दूसरी और दुर्गुण भी। ये काम को छोड़कर दूसरा हाथ में ले लेते हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता के चलते ये लोग बीमार कम पड़ते हैं। अगर रोग होते भी हैं तो अधिकांशत: फेफड़ों से संबंधित। बुध के संबंधित व्यवसाय ये आसानी से कर लेते हैं। दलाली इनका खास गुण होता है। शीघ्रता से मित्रता करते हैं और उतनी ही शीघ्रता से अपने साथी की कमियां भी निकाल लेते हैं। इसलिए इन्हें परफेक्ट मैच कम ही मिल पाता है। ये लोग जब लिखते हैं तो इनका वायव्यीय गुण उभर आता है। लिखते समय पंक्तियों के ऊपर निकल जाते हैं। हरा और पीला रंग इनके लिए शुभ है, नीले और लाल रंगों से बचना चाहिए। पन्ना और पुखराज भाग्य को उत्तम बनाएंगे। अगर सफल होना है तो मिथुन राशि वालों एकाग्र होना सीख लो।
राशियों का यह परिचय स्पष्टत: राशियों के संबंध में ही समझा जाए। जब लग्न मजबूत हो और जातक की कुण्डली में लग्न का प्रभाव अधिक हो तो राशियों का स्वभाव जातक के लग्न के स्वभाव के अनुसार होगा और अगर चंद्रमा अधिक मजबूत हो और कुण्डली पर चंद्रमा का अधिक प्रभाव हो तो जिस राशि में चंद्रमा होगा, व्यक्ति का नैसर्गिक स्वभाव चंद्र कुण्डली या चंद्रमा वाली राशि के अनुसार होगा
ज्योतिष की कक्षा – पांचवां दिन
अब तक हमने पढ़ा है ज्योतिष की जरूरत क्यों है, ग्रह, नक्षत्र और राशियां क्या है और पिछली पोस्ट में हमने राशियों से परिचय प्राप्त करना शुरू किया था। मेष, वृष और मिथुन राशि के बाद आज हम पढ़ेंगे कर्क राशि के बारे में। हालांकि मैं इन राशियों के बारे में छोटी छोटी जानकारी ही दे रहा हूं, लेकिन ये वह जानकारी है जिसे पढ़ने के बाद आप जातक को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि यह किस राशि का जातक हो सकता है। या किस राशि का प्रभाव जातक पर अधिक है। इस बारे में विशद जानकारी के लिए आपको ज्योतिष रत्नाकर और फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए।
सर्वाधिक राजयोग बनाने वाली कर्क राशि
दरअसल मुझे पहली बार इस राशि का परिचय ऐसे ही प्राप्त हुआ था। आप गौर कीजिए कि कर्क लग्न होने पर कुण्डली क्या बनेगी। इस कुण्डली में चारों केन्द्र ऐसे हैं जिनमें ग्रह उच्च के होते हैं। लग्न में कर्क राशि में गुरु आएगा तो उच्च का होगा, चौथे भाव में शनि उच्च का होगा, सातवें भाव में मंगल और दसवें भाव में सूर्य उच्च का होगा। इसके अलावा लग्न से ग्यारहवां भाव आय का है। चंद्रमा अगर उच्च का हुआ तो इस भाव में होगा। सूर्य, बुध और शुक्र के सर्वाधिक संबंध बनते हैं। ऐसे में कर्क लग्न वालों के धन और आय के संबंध के योग भी कमोबेश अधिक बनते हैं। शुक्र बेहतर होने पर पैसा और प्रसिद्धि साथ साथ मिलते हैं। किसी भी लग्न में पाया जाने वाला यह दुर्लभ योग है जो कर्क में सहजता से उपलब्ध होता है। इन सभी बिंदुओं के चलते कर्क लग्न को राजयोग का लग्न कहा गया है।
कर्क राशि की विशेषताएं : यह पृष्ठ से उदय होने वाली राशि है। इनका बेढंगा शरीर, दुर्बल अवयव और शक्तिशाली पंजा होता है। इनके शरीर का ऊपर हिस्सा बड़ा होता है। उम्र बढ़ने के साथ इनकी तोंद भी बढ़ती जाती है। केश कत्थई और भूरापन लिए होते हैं। अस्थिर चेतना वाले इन जातकों की जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आते हैं। चंद्र का आधिपत्य इन्हें उर्वर कल्पनाशीलता होती है। धन संपन्नता या सम्मान की स्थिति पाने के लिए ये लोग दक्षता से जन समूह को प्रेरित कर देते हैं। ये लोग घर परिवार औ सुख की कामना करते हैं। उपहास और समालोचना का भय इन्हें विचारशील, कूटनीतिज्ञ और लौकिक बना देता है। जातक का स्वास्थ्य जवानी में खराब रहता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य सुधरता जाता है। इस राशि वाले जातकों के लिए मंगलवार का दिन शुभ होता है। हस्तलेखन अस्थिर होता है, शुभ रंग श्वेत, क्रीम और लाल है। शुक्रवार को ये लोग आनन्द और लाभ अर्जित कर सकते हैं।
कर्क राशि से प्रभावितों के उदाहरण : भारतीय राज व्यवस्था में कर्क राशि का बड़ा महत्व रहा है। आजानुभुज राम कर्क लग्न के थे। उनकी कुण्डली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, शुक्र और चंद्रमा उच्च के थे। वर्तमान दौर में इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी और अब सोनिया गांधी की कुण्डली कर्क लग्न की बताई जाती है। मैंने खुद ने अब तक ये कुण्डलियां देखी नहीं है इसलिए मैंने लिखा बताई जाती हैं, अटल बिहारी वाजपेयी की कुण्डली तो जिस ज्योतिषी ने देखी उन्होंने ही मुझे बताया कि उनके कर्क लग्न और लग्न में शनि है।
ज्योतिष की कक्षा : छठा दिन
ज्योतिष की कक्षा में हम राशियों का परिचय प्राप्त कर रहे हैं। पूर्व के लेखों में हम मेष, वृष, मिथुन और कर्क राशियों पर चर्चा कर चुके हैं। इस कक्षा में हम बात करेंगे सिंह और कन्या राशि की। अब तक जिन पाठकों ने फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद ज्योतिष के आधारभूत सिद्धांत खरीद ली है, वे मेरे इन लेखों के साथ तेजी से आगे बढ़ सकते हैं और जो पाठक केवल इन लेखों के भरोसे हैं, उन्हें केवल राशियों का फौरी परिचय ही मिल सकेगा। सालने वाली बात यह है कि हर लेख में इक्का दुक्का कमेंट और पांच सात मेल के अलावा पाठकों का रुझान नहीं मिल पा रहा है। एक ओर जहां ज्योतिष से संबंधित भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जाती है वहीं इस विषय को विषय के तौर पर पढ़ने और समझने वाले लोगों की कमी खलती है।
मैं अब देरी से आए पाठकों से भी आग्रह करूंगा कि वे पूर्व में बताई गई पुस्तकों को शीघ्र खरीदें और अठारह लेखों की इस शृंखला के दौरान अधिक से अधिक सवाल जवाब तक सीखने का प्रयत्न करें। एक बात और पिछले लेखों में एक दो लोगों ने जिसासा प्रकट की थी कि राशियों का प्रभाव लग्न से देखा जाए या चंद्रमा से। इस बारे में मैं बहुत पहले बता चुका हूं, यहां पुनरावृत्ति कर देता हूं कि लग्न और राशि में से जो अधिक प्रबल होगा उसी राशि का प्रभाव जातक पर अधिक दिखाई देगा।
जंगलों और वीराने में घूमते ‘सिंह’
सिंह राशि से प्रभावित जातकों की यह सबसे बड़ी विशेषता होती है। इस राशि पर सूर्य का प्रभाव है। अग्नि तत्व की यह राशि शुष्क, पुरुष, धनात्मक और स्थिर है। चंद्र, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र होने के नाते सिंह में आने पर मित्रक्षेत्री होते हैं और शनि, शुक्र और बुध शत्रुक्षेत्री। सिंह राशि के जातकों की हड्डियां उन्नत होती हैं, कंधे और माथा चौड़े होते हैं। ये जातक बैठे हुए ठिगने दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि इनका धड़ छोटा और टांगें लम्बी होती हैं। जब ये उठकर खड़े होते हैं और औसत से अधिक कद के होते हैं। जिन जातकों की कुण्डली में सूर्य और गुरु की अच्छी युति होती है वे परपीड़ा को समझने में कामयाब होते हैं।
चिकित्सकों और बेहतर प्रशासकों की कुण्डली में यह योग प्रमुखता से दिखाई देता है। सूर्य का प्रभाव होने से जातक अपने आध्यात्मिक उत्थान का अपने स्तर पर प्रयास करते हैं। इसी कारण सिंह राशि वाले जातक जंगलों या वीराने अथवा पहाड़ों में अकेले घूमते हुए देखे जा सकते हैं। इनका संगीत, नाटक और खेल से लगाव होता है। ये स्पष्ट वक्ता, उन्मुक्त और निष्पक्ष होते हैं। न क्षुद्र व्यवहार करते हैं और न दूसरों का ऐसा व्यवहार बर्दाश्त कर पाते हैं। इसी कारण समूह में इनकी भूमिका सदैव नेतृत्व की ही रहती है। ये सामान्यता उच्च पद अथवा समाज में ऊंचा दर्जा पाने का प्रयास करते नजर आते हैं। इनके लिए साख ही सबकुछ है इसलिए साख बढ़ाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं। इनके लिए रविवार का दिन शुभ है, सोमवार को धन का व्यय होता है और मंगलवार को बड़ी सफलताएं प्राप्त करते हैं। बुधवार को भाग्य साथ देता है। शनिवार को धोखा खाते हैं। शुभ रंग नारंगी है और शुभ अंक एक। माणिक और पन्ना पहनने से भाग्य में बढ़ोतरी होती है।
अत्यधिक विश्लेषण से परेशान करने वाले कन्या जातक
आपको भी कभी न कभी ऐसे व्यक्ति मिले होंगे जो छोटी सी बात को बहुत अधिक विस्तार से समझते और समझाते हैं। एक बार गलती से भी इन लोगों को सामान्य बात का विश्लेषण पूछ लिया जाए तो घंटों तक उस तथ्य की चीरफाड़ करते रहते हैं। ये कन्या जातक के लोग हैं। कन्या राशि का स्वामित्व बुध के पास है। यहीं पर बुध उच्च का भी होता है। सो ये लोग किसी न किसी रूप में फायनेंस, पब्लिकेशन या अन्य पढ़ने लिखने के काम से जुड़े हुए होते हैं। अपने प्रोफेशन में भले ही अपनी विश्लेषण क्षमता के कारण ये लोग पूछे जाते हों, लेकिन सामाजिक तौर पर इनकी स्थिति एक समय बाद यह हो जाती है कि लोग बात करने से कतराने लगते हैं।
अगर कन्या जातक खुद पर कंट्रोल रखना सीख लें तो इनके आकर्षक और सम्मोहित करने वाला जातक ढूंढना मुश्किल है। ये लोग दिमाग अधिक काम में लेते हैं सो शरीर का इस्तेमाल कम से कम करने का प्रयास करते हैं। इन्हें आराम की अवस्था पसंद है। बुध के पूरे प्रभाव के चलते ये लोग नए कपड़े भी पहने तो वे मैले जैसे दिखाई देंगे। बुध का प्रभाव लग्न पर अधिक हुआ तो दांत भी गंदे दिखाई देंगे। यहां बुध उच्च और शुक्र नीच होता है। यानि सांसारिक साधनों से अधिक इन लोगों को ज्ञान की परवाह होती है। जातक लम्बा, पतला, आंखें काली, भौंहें झुकी हुई, आवाज पतली और कर्कश होती है। हमेशा तेज चलते हैं और अपनी उम्र से कम के दिखाई देते हैं। ये लोग लेखा कार्यों में होशियार होते हैं और अपनी नौकरी लाभ के अवसर के अनुसार लगातार बदलते रहते हैं।
कार्यों को इतनी अधिक सावधानी से करते हैं कि हर काम में पुनरावृत्ति तक करने को तैयार रहते हैं। ताला बंद करेंगे तो दो बार चेक करेंगे। पत्र लिखेंगे तो गीले गोंद लगे पत्र को फिर से खोलकर पढ़ेंगे। इन लोगों को अपने स्वास्थ्य को लेकर वार्तालाप करना पसंद होता है। इतना अधिक कि छोटी सी बीमारी को लेकर घंटों और दिनों तक बातें कर सकते हैं। उसके हर एक पहलु पर इतना विस्तार से वर्णन करते हैं कि सुनने वाला ही भाग खड़ा हो। व्यावसायिक प्रवृत्ति के कारण धन के प्रति सावधान होते हैं। इन लोगों को किसी भी ट्रस्ट या संस्थान में कोषाध्यक्ष बनाया जा सकता है। इनके लिए शुभ रंग हरा और शुभ दिन बुधवार होता है। भाग्य को बढ़ाने के लिए इन लोगों को पन्ना, मोती और हीरा पहनना चाहिए।
राशियों का मूल स्वभाव है यह
मैंने राशि के जो गुण बताए हैं वे लग्न अथवा चंद्रमा होने पर प्रकट होते दिखाई देते हैं। अन्यथा राशि जिस भाव में होगी वैसे ही भाव के गुणों में परिवर्तन आएगा। यहां राशि के मूल स्वभाव दिए जा रहे हैं। क्रूर अथवा सौम्य राशियों का प्रभाव होने अथवा केन्द्र व त्रिकोण जैसे भावों में होने पर इनमें कुछ अंतर भी आता है। उनकी गणना अलग से की जाएगी। पहले राशि से परिचय हो जाए। फिर ग्रहों और भावों के परिचय होने के बाद सम्पूर्ण कुण्डली का समग्र विश्लेषण किया जाएगा। तब तक पाठक राशियों के मूल स्वभाव से ही परिचित हों। कहीं-कहीं हो सकता है कि पाठकों को अपने गुण मिलते हुए लगें, लेकिन ये अपना पूरा प्रभाव अपनी दशा अथवा अंतरदशा में देते हैं, भले ही मूल स्वभाव इससे इतर हो।
ज्योतिष कक्षा : 7वां दिन
वणिक बुद्धि वाले तुला राशि के जातक
तुला राशि के जातकों की मनोदशा का केवल यही वर्णन नहीं है। भारतीय जनतंत्र में आज जिस व्यक्ति की छाप सबसे बड़ी है वह तुला राशि का ही जातक था। मैं बात कर रहा हूं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की। बाजार में अपनी तुला लिए खड़े व्यक्ति के रूप में तुला राशि को दिखाया गया है। विचारों से सम और हर बात को पूरी तरह तौलकर देखने वाला जातक तुला राशि का होगा। हालांकि इस राशि पर शुक्र का आधिपत्य है, इस कारण तुला राशि के जातकों को बनने संवरने, संगीत, चित्रकारी और बागवानी जैसे शौक होते हैं। इसके बावजूद रचनात्मक आलोचना और राजनैतिक चातुर्य इन जातकों का ऐसा कौशल होता है कि दूसरे लोग इनसे चकित रहते हैं। वणिक बुद्धि के कारण वाद विवाद में पड़ने के बजाय समझौता करने में अधिक यकीन रखते हैं। इन जातकों का शरीर दुबला पतला और अच्छे गठन वाला होता है। चेहरा सुंदर भी न हो तो मुस्कान मोहक होती है। इन जातकों को विपरीत योनि वाले सहज आकर्षित करते हैं। हालांकि इन जातकों की शारीरिक संरचना सुदृढ़ होती है, लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होने के कारण बीमारियों की पकड़ में जल्दी आते हैं। साझीदार के साथ व्यापार करना इनके लिए ठीक रहता है। जातक उचित समय पर सही सलाह देता है। ऐसे में साझेदार भी ज्यादातर फायदे में रहते हैं। एक बार मित्र बना लें तो हमेशा के लिए अच्छे मित्र सिद्ध होते हैं। इन जातकों का पंचमेश शनि होता है। इस कारण तुला लग्न के जातकों के अव्वल तो संतान कम होती है और अधिक हो भी जाए तो संतान का सुख कम ही मिलता है। इनके लिए शुभ दिन रविवार और सोमवार बताए गए हैं। शुभ रंग नारंगी, श्वेत और लाल तथा शुभ अंक एक व दस हैं।
हताश होना नहीं सीखा वृश्चिक ने
वृश्चिक राशि के जातकों की सबसे बड़ी खूबी यही होती है कि वे कभी हार नहीं मानते। एक बार जिस काम में जुट गए उससे जल्दी से उकताते नहीं है और आखिरी दम तक उस काम को पूरा करने में जुटे रहते हैं। वृश्चिक राशि के लोग दो तरह के होते हैं। एक जो अपनी इंद्रियों को जीतकर जितेन्द्रिय बन जाते हैं। और दूसरे निम्न कोटि के जो ईर्ष्यालु और असभ्य होते हैं। इस राशि पर मंगल का आधिपत्य है सो अच्छा खासा डील डौल और चौड़ा माथा होता है। बालों में स्वाभाविक रुप से घुंघरालापन होता है। दवाओं से जुड़े कामों में अच्छा लाभ कमा सकते हैं। जलतत्वीय राशि होने के कारण इन लोगों का अंतर्ज्ञान भी ठीक होता है। बात दैहिक सुख की हो या गुप्त साहसिक कार्यों की, ये लोग पूर्ण संतुष्टि के साथ जिंदगी जीना पसंद करते हैं। मंगल के कारण आई उत्तेजना, अधिकार, उग्रता और द्ढृता इन लोगों को जिंदगी के कई क्षेत्रों में सफल बनाती है। ये अच्छे नौकर सिद्ध होते हैं, जब तक कि मालिक इनके साथ ईमानदार रहे। एक बार इन्हें नीचा दिखा दिया जाए या धोखा दे दिया जाए तो क्रूरता की हद तक जाकर बदला लेते हैं। कठोर वाणी से शत्रु बनाते हैं। अगर वृश्चिक राशि वाले लोग बोलना सीख लें तो अपने पीछे फॉलोअर्स की अच्छी संख्या एकत्रित कर सकते हैं। अधिकार की अति भावना के कारण ये चाहते हैं कि परिवार में भी बिना किसी लॉजिक या सवाल जवाब के इनकी बात सुन ली जाए और उस पर अमल हो। घर में कलह का यह सबसे बड़ा कारण बनता है, वरना इन लोगों को शांत और सहज पारिवारिक वातावरण पसंद है। स्त्रियों में वृश्चिक लग्न के मामले में तो केएस कृष्णामूर्ति ने यहां तक कहा है कि वृश्चिक लग्न की स्त्री हो और लग्न व मंगल अशुभ पीडि़त हो तो ऐसी औरत से विवाह करना अभिशाप है। वृश्चिक लग्न के जातकों के लिए रविवार, सोमवार, मंगलवार और गुरुवार सफलता देने वाले हैं। पीला, लाल, नारंगी और क्रीम रंग शुभ है।
ज्योतिष कक्षा : आठवां दिन
विपरीत परिस्थिति में बेहतर प्रदर्शन : धनु राशि
धनु राशि के जातकों के बारे में बताने से पहले अगर मैं आपको बता दूं कि युवाओं के पथ प्रदर्शक स्वामी विवेकान्द धनु लग्न के जातक थे, तो आपके दिमाग में धनु लग्न अथवा धनु राशि से प्रभावित जातकों की छवि तुरंत बन जाएगी। धनु राशि का स्वामी गुरु है। इन जातकों की खासियत यह होती है कि ये विपरीत परिस्थिति में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं। ये जातक बहुत अधिक सोचते हैं। इस कारण निर्णय करने में देरी भी करते हैं, लेकिन एक बार जिस निर्णय पर पहुंच जाए उससे डिगते नहीं हैं। सत्य के साथ रहते हैं और किसी के साथ अन्याय हो रहा हो तो उसके साथ जा खड़े होते हैं। बोलने में इतने मुंहफट होते हैं कि यह जाने बिना कि सामने वाले पर क्या बीत रही होगी, बोलते जाते हैं। इन लोगों की बोली में ही व्यंग्य समाया हुआ होता है। सीधी बात कहने की बजाय टोंटिंग में ही बोलते नजर आएंगे। अच्छे चेहरे मोहरे, सुगठित शरीर, लम्बा चौड़ा ललाट, ऊंची और घनी भौंहों वाले आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर ही समझा जा सकता है कि यह धनु लग्न या धनु राशि प्रधान व्यक्ति है। ये निडर, साहसी, महत्वाकांक्षी, अति लोभी और आक्रामक होते हैं। इन लोगों को जिंदगी में अनायास लाभ नहीं होता है। ये रिश्तेदारों के प्रति निर्मम और अपरिचितों के लिए नम्र होते हैं। ये तेजी से मित्र बनाते हैं और लम्बे समय तक उसे निभाते भी हैं। अगर किसी व्यक्ति की धनु राशि या धनु लग्न की कन्या से विवाह हो तो उसे भाग्यशाली समझना चाहिए। क्योंकि ऐसी कन्या अपने पति को समझने वाली और सही परामर्श देने वाली होती है। इनके लिए शुभ दिन बुधवार और शुक्रवार बताए गए हैं। शुभ रंग श्वेत, क्रीम, हरा, नारंगी और हल्का नीला बताया गया है। शुभ अंक छह, पांच, तीन और आठ हैं।
सतत कर्म, सहनशील, स्थिर प्रवृत्ति : मकर राशि
लम्बे और पतले मकर लग्न अथवा राशि के जातकों को एक बारगी देखने पर यकीन नहीं होता कि ये लोग बड़े समूह या संगठन का सफल संचालन कर रहे हैं। बचपन में इन्हें देखें तो लगता है पता नहीं कब बड़े होंगे और कब अपने पैरों पर खड़े होंगे। पर, किशोरावस्था में अचानक तेजी से बढ़ते हैं और इतना विकास करते हैं कि अचानक युवा दिखाई देने लगते हैं। यह अवस्था भी इतने अधिक लम्बे समय तक रहती है कि साथ के युवक अधेड़ दिखने लगते हैं और इन पर जैसे अवस्था का असर ही दिखाई नहीं देता। यह त्याग और बलिदान की राशि है। कृष्णामूर्ति बताते हैं कि जो व्यक्ति पिछले जन्म में अपना बलिदान देता है वह इस जन्म में मकर राशि में पैदा होता है। ये जातक मितव्ययी, नीतिज्ञ, विवेक बुद्धियुक्त, विचारशील, व्यावहारिक बुद्धि वाले होते हैं। इनमें विशिष्ट संगठन क्षमता होती है। असाधारण सहनशीलता, धैर्य और स्थिर प्रवृत्ति इन्हें बड़ा संगठन खड़ा करने में मदद करती है। इन लोगों को उपहास से हमेशा भय लगा रहता है। इस कारण समूह में बोल नहीं पाते। ऐसे में लोग समझते हैं कि ये लोग अंतर्मुखी हैं। इस राशि का स्वामी शनि है। शनि अच्छा होने पर ये लोग ईमानदार, सजग और विश्वसनीय होते हैं और शनि खराब होने पर ठीक उल्टा होता है। इन्हें एक साथी हमेशा साथ में चाहिए। तब इनका कार्य अधिक उत्तम होता है। इन जातकों में अहंकार, निराशावाद, अत्यधिक परिश्रम की कमियां होती हैं। इन्हें चिंतन पक्षाघात (एनालिसिस पैरालिसिस) की समस्या होती है। जातकों को सजग रहकर इन समस्याओं से बचने की कोशिश करनी चाहिए। ये लोग अपने परिजनों से प्रेम करते हैं लेकिन उसका प्रदर्शन नहीं करते। इसलिए परिवार के लोग, यहां तक कि इनकी संतान भी ही समझती है कि उनके पिता उन पर ध्यान नहीं देते। एक बात है जो इनके व्यवहार के विपरीत होती है वह यह कि जहां समूह में एक भी बाहर का व्यक्ति हो तो ये लोग चुप्पी मार जाते हैं, लेकिन यदि परिवार के लोग या सभी निकट के परिचित लोग हो तों परिहास की हल्की फुल्की ऐसी बातें करते हैं कि सभा में उपस्थित सभी लोगों का हंसते हंसते बुरा हाल हो जाता है। इनके लिए शुभ दिन शुक्रवार, मंगलवार और शनिवार होता है। शुभ रंग लाल, नीला और सफेद है।
ज्योतिष कक्षा : 9वां दिन
कुंभ – मजबूत शरीर और शक्तिशाली दिमाग
भचक्र ही यह ग्यारहवीं राशि है। इस पर शनि का आधिपत्य है। वायु तत्वीय, विषम और स्थिर राशि है। इस राशि में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नहीं होता। इस लग्न के जातक आमतौर लंबे, दुबले, क्रियाशील, नकारात्मक सोच वाले, काम में लगे रहने वाले और मजबूत शरीर वाले होते हैं। ये दिमागी रूप से इतने सजग होते हैं कि इन्हें प्रशंसा अथवा अन्य चापलूसी वाले तरीकों से खुश किया या बरगलाया नहीं जा सकता।
इसी प्रवृत्ति के कारण ये लोग नई बातों को समझने और आत्मसात करने के मामले में कुछ कमजोर होते हैं, इसके चलते कुंभ राशि के जातकों पर बहुत जल्दी पुरातनपंथी होने का ठप्पा लग जाता है। अपनी तय नियमों और सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं, इस कारण सामाजिक स्तर पर कई बार बहिष्कार की स्थिति तक पहुंच जाते हैं। केएस कृष्णामूर्ति तो कहते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में कुंभ राशि के जातक काम के प्रति झुके हुए होते हैं, यहां काम का अर्थ उन्होंने अभिलाषा से लगाया है। ऐसे जातक अगर अकेले में या बिना मित्रों के रहेंगे तो खराब स्थिति में रहेंगे।
भले ही सावधानी से मित्रों का चुनाव करे, लेकिन मित्र जरूर रखें। कुंभ राशि अथवा लग्न वाली स्त्रियां अपने साथी को संतोषजनक पाने पर उनका पूरा साथ देती हैं, लेकिन असंतुष्ट होने पर अपने पति को छोड़ देने के लिए भी हिचकिचाती नहीं हैं। कुंभ जातकों के लिए गुरु, शुक्र, मंगल और सोमवार श्रेष्ठ बताए गए हैं। शुभ रंग पीला, लाल, सफेद और क्रीम है।
मीन – करुणामयी सहारा देने वाली
यह गुरु की दूसरी और भचक्र की अंतिम राशि है। इस राशि के जातकों में करुणा की भावना होती है, स्वयं बढ़कर भले ही सहायता न करे, लेकिन पुकारे जाने पर पूरी तरह सहायता के लिए तत्पर हो उठते हैं। ये दार्शनिक होते हैं, रोमांटिक जीवन जीते हैं, साहस के साथ स्पष्ट बोलने वाले और विचारशील होते हैं। अपनी सज्जनता के कारण जिंदगी में सफलताओं के कई मौके गंवा बैठते हैं।
द्विस्वभाव राशि का असर जातकों के विचारों पर भी पड़ता है, एक समय इनके एक प्रकार के विचार होते हैं तो परिस्थितियां बदलने पर विचार भी बदल जाते हैं। मीन जातकों को प्राय: गैस संबंधी शिकायत होती है। मदिरा के सेवन के शौक को मीन राशि वाले जातकों को नियंत्रण में रखना चाहिए। ये लोग आमतौर पर भण्डारी, शिक्षक, मुनीम अथवा बैंक में कर्मचारी होते हैं।
एकाग्रता कम होने के कारण निरन्तर नए कार्यों की ओर उन्मुख होते रहते हैं। अपनी संतान के आश्रित बनने से बचने क लिए ये जातक युवावस्था में ही निवेशों पर ध्यान देने लगते हैं। मीन लग्न के जातक अपेक्षाकृत तेजी से मित्र बनाते हैं, ऐसे में इनके मित्रों में हर तरह के लोग शामिल होते हैं। इन जातकों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि अपने सभी भेद मित्रों के सामने नहीं खोलें, अन्यथा परेशानी में फंस सकते हैं। मीन राशि के लिए गुरु, मंगल और रविवार श्रेष्ठ दिन हैं। लाल, पीला, गुलाबी और नारंगी रंग शुभदायी हैं। एक, चार, तीन और नौ अंक शुभ हैं।