ज्योतिष के क्षेत्र में ऐसा माना जाता है कि 13 वर्ष की उम्र तक ग्रह जातक पर प्रभाव भी नहीं डालते हैं। कुछ हद तक यह सही भी है। जीवन की परेशानियां जातक के सामने तब अधिक तीव्रता के साथ आनी शुरू होती है, जब जातक अपने निर्णय खुद लेने लगता है। आत्मनिर्भर होने के साथ ही ग्रहों का प्रभाव भी अधिक तीव्रता के साथ दिखाई देने लगता है। जातक के वयस्क होने से पहले बहुत से अभिभावक अपनी संतान के भविष्य को लेकर चिंतित होते हैं और सहायता के लिए ज्योतिषी से संपर्क करते हैं। हालांकि ज्योतिष जीवन के हर स्तर पर अपना प्रभाव रखती है, फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण और सलाह की भी अपनी सीमाएं हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि बच्चों के लिए ज्योतिष (Astrology for Children) और ज्योतिषी से क्या सहायता ली जा सकती है।
नवजात शिशुओं के लिए ज्योतिष
बच्चे के पैदा होते ही अभिभावक ज्योतिषी को तुरंत जन्म विवरण भेजते हैं और पूछते हैं कि बच्चें का भविष्य कैसा रहेगा। इसके साथ ही यह सवाल आवश्यक रूप से जुड़ा रहता है कि पैदा होने वाली संतान पिता, माता या परिवार के लिए कैसी रहेगी। यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस सृष्टि में पैदा होने वाला हर जीव अपना भाग्य साथ लेकर आता है। न तो कोई जातक किसी और का भाग्य जी सकता है और न ही किसी को अपना सौभाग्य या दुर्भाग्य दे सकता है। इसलिए यह सवाल ही बेमानी है कि पैदा हुए शिशु का उनके अभिभावकों पर क्या असर रहेगा।
एक नवजात बालक या बालिका के केवल शरीर पर ही ग्रहों का असर दिखाई दे सकता है। ऐसे में ज्योतिष के कोण से केवल यही देखा जा सकता है कि कहीं बच्चे के साथ बालारिष्ट तो नहीं है। बालारिष्ट का अर्थ होता है कि छोटी उम्र में शरीर पर कोई कष्ट तो नहीं है, कोई मृत्यु का योग तो नहीं है। ऐसा होने पर तुरंत कुछ उपचार सुझाए जा सकते हैं, जिन्हें करने से रोग या मृत्युतुल्य कष्ट को टालने में मदद मिल सकती है। साथ ही यह भी देखा जाता है कि संतान किस नक्षत्र में पैदा हुई है। अगर गंडमूल नक्षत्र में संतान हो तो शास्त्रों में नक्षत्र पूजन की सलाह दी जाती है।
नवजात बच्चों का लग्न, लग्नेश, चंद्र राशि और नक्षत्र प्रमुख रूप से देखा जाता है। अगर नवजात रोगी है तो छठा भाव देखा जाता है। अगर बहुत गंभीर समस्या हो तो दूसरे, सातवें और आठवें भाव के मारकेश के साथ बाधकस्थानाधिपति से निर्णय निकालने का प्रयास किया जाता है। अगर लग्नेश प्रबल हो तो नवजात के स्वस्थ और आनन्दित रहने की अच्छी संभावना होती है।
कुमार या कुमारी के लिए ज्योतिष (टीन एजर)
आज के युग में कॅरियर तय करने का समय कुमार अवस्था में ही आ जाता है। जब बच्चे 16 वर्ष की आयु तक पहुंचते हैं तो एक ओर अपने स्तर पर निर्णय लेने का प्रयास करने लगते हैं तो दूसरी ओर उनकी रुचियां और गति भी स्पष्ट होने लगती है। कुछ बच्चों के मामलों में स्थिति इतनी स्पष्ट नहीं होती। ऐसे में ज्योतिषी की मदद से यह तय किया जा सकता है कि बच्चों को किस विषय की ओर भेजा जाए और सफलता प्राप्त करने के लिए क्या उपचार किए जा सकते हैं।
कुमार या कुमारी की शिक्षा के लिए पंचम भाव को प्रमुख रूप से देखा जाता है। भले ही कॅरियर बनने में अभी कई साल ही क्यों न हो, शिक्षा की धारा देखने के लिए हमें द्वितीय, षष्ठम और दशम भाव का भी विश्लेषण करना होगा। परीक्षा में कैसे नम्बर आएंगे अथवा प्रतियोगी परीक्षा में बच्चा कैसा प्रदर्शन करेगा, यह देखने के लिए एकादश भाव और एकादश भाव के अधिपति की स्थिति को देखना होगा।
वयस्क संतान के लिए ज्योतिष
अब यहां पर प्रमुख रूप से उच्च शिक्षा के लिए प्रश्न होते हैं। इन्हें नवम भाव से देखा जाएगा। नौकरी के लिए द्वितीय, षष्ठम और दशम भाव को देखा जाएगा और राजयोग के लिए केन्द्र त्रिकोण के संबंधों को देखा जाएगा। इस प्रकार वयस्क संतान से संबंधित उच्च शिक्षा और नौकरी के सवाल प्रमुख होते हैं।
ऐसे में हम देखते हैं कि बच्चों के लिए अभिभावकों के ज्योतिषी को पूछे जाने वाले प्रश्नों की सीमाएं भी होती हैं। नवजात के लिए कई बार उत्साही अभिभावक पूछ बैठते हैं कि भविष्य में किस क्षेत्र में जाएगा। आज से बीस या तीस साल पहले तक कम्प्यूटर या डाटा साइंस जैसा कोइ विषय ही नहीं हुआ करता था। ऐसे में केवल तकनीकी क्षेत्र कहकर काम चला लिया जाता था, वहीं अब डाटा साइंस या बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की संभावनाओं को बहुत स्पष्टता के साथ बताया जा सकता है। हर दो तीन दशक में देश, काल और परिस्थितियां पूरी तरह बदल जाती हैं, ऐसे में जन्म लेने के साथ ही इतने दूर भविष्य के लिए संभावनाएं तलाश करना बहुत अधिक सटीक परिणाम नहीं देता है। कुछ मोटे संकेत मिल सकते हैं, लेकिन उससे दिशा तय नहीं की जा सकती।
बच्चों के लिए ज्योतिषीय उपचार
नवजात शिशु अगर गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके लिए 28वें दिन नक्षत्र पूजन कराया जाता है। इसके अलावा खान पान और वस्त्रों से संबंधित कुछ छोट मोटे उपचार बताए जा सकते हैं, लेकिन जैम स्टोन, पूजन, साधना अथवा दान आदि के उपचार शिशुओं के लिए नहीं बताए जाते हैं। टीन एजर बच्चों को अधिकांशत: हनुमानजी, गणेशजी और सरस्वतीजी से संबंधित उपचार बताए जाते हैं। वयस्क संतान के लिए सभी प्रकार के उपचार प्रभावी होते हैं।
– ज्योतिषी सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी
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