बहुत से जातकों का नवजात संतानों को लेकर प्रमुख प्रश्न होता है कि बच्चे का क्या नाम रखें। क्या नाम रखने से भाग्य में बदलाव होता है, क्या नाम बदलने से लाभ होगा, कौनसा नाम भाग्यशाली रहेगा, क्या नाम के अक्षर घटाने बढ़ाने से भाग्य बदलता है। नाम को लेकर इस प्रकार के प्रश्न बहुत अधिक बढ़ चुके हैं। इस प्रश्नोत्तरी में इन्हीं प्रश्नों के जवाब देने का प्रयास कर रहा हूं।
क्या नाम बदलने से भाग्य बदलता है?
अगर कोई नाम हर कोण से भाग्यशाली हो अथवा कोई संख्या सर्वथा भाग्यशाली हो तो जगत के सभी जीवों के नाम श्रीराम चंद्र अथवा श्रीकृष्ण ही हो जाते। या कहें गणेश या हनुमान हो जाते। इससे शुभ और सुखदायी नाम क्या हो सकते हैं। इसी प्रकार अगर कोई संख्या शुभ हो तो उस संख्या में शून्य (जो कि न्यूमरोलॉजी में कहीं मिलता ही नहीं है) जुड़ने पर उस संख्या का मान दस गुणा कैसे हो जाता है। न्यूमरोलॉजी और दूसरी कई हल्की विधाएं इस प्रकार के भ्रम पैदा करती है।
नाम में अक्षर जोड़ने या घटाने से फर्क पड़ेगा?
भविष्य जानने का दावा करने वाली बहुत सी विधाएं हैं। एक परंपरागत वैदिक ज्योतिषी का पंडित होने के नाते मुझे शास्त्रीय विधि ही सर्वश्रेष्ठ लगती है। शास्त्रीय ज्योतिष दर्शन में हम मानते हैं कि यह सृष्टि पूर्वनीयतता पर चलती है। यानी सबकुछ पहले से तय है। इसलिए जातक के जनम के समय बनी जन्मपत्रिका के आधार पर जीवन के किसी भी बिंदू पर सटीक फलादेश करने का प्रयास करते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जातक चाहे जिस तिथि को पैदा हुआ हो, जिस तिथि को शुभ या अशुभ कार्य कर रहा हो, अगर उस जातक की जन्मपत्रिका में सफल होना लिखा है तो सफल होगा और अगर विफल होना लिखा है तो तय तौर पर विफल होगा। चाहे अपने नाम में अतिरिक्त अक्षर जोड़े या घटाए, कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
नाम में एक्सट्रा A या E जोड़ें तो?
अंग्रेजी भाषा को पैदा हुए भी अभी कुछ सौ साल ही हुए हैं। अगर आपके बच्चे का नाम अंग्रेजी में लिखा जाए और उसमें अक्षर घटाए और बढ़ाएं जाएं, तो इसका फल एक परंपरागत भारतीय ज्योतिषी वैसे भी नहीं बता सकता।
पुराने ज्योतिषी क्यों नाम रखते थे?
यह एक महत्वपूर्ण बिंदू है। आप अगर आज से तीस या चालीस साल पुरानी बनी जन्मपत्रिकाएं देखेंगे तो पाएंगे कि उनमें जातक का नाम लिखा होता है। जो नाम पंडितजी तय कर देते थे, वही नाम हो जाता था। चाहे वह तोताप्रसाद हो या लल्लूराम, जातक उसी नाम को जीवनभर अपनाए रखता। कुछ सयाने लोग कालांतर में अपना जन्म का नाम जन्मपत्रिका में रखकर ऑफिशियल नाम बदल लेते थे। बाद में ज्योतिषी कुछ लिबरल हुए और उन्होंने प्रथम नामाक्षर देना शुरू किया। अब यह नामाक्षर कई बार ड या लू जैसा कुछ अटपटा हो जाता। इसके बावजूद प्रथम नामाक्षर को फॉलो करने का प्रयास किया जाता था।
प्रथम नामाक्षर का क्या अर्थ है
ज्योतिषियों द्वारा बताया गया प्रथम नामाक्षर वास्तव में जातक के जन्म नक्षत्र का चरण का नाम होता है। इसे पता करने का तरीका इस लेख में विस्तार से बताया गया है (नाम से राशि पता करें )
पुराने जमाने में ज्योतिषी का संबंध मुख्य रूप से दरबार या कहें श्रेष्ठ वर्ग से जुड़ा था। गणनाएं बहुत कठिन थी और स्कॉलर बहुत कम थे। ऐसे में वृहद् गणनाओं के लिए न तो ज्योतिषी समय दे पाते थे और न ही जातक इतना खर्च वहन कर पाने की स्थिति में थे। ऐसे में ज्योतिषी टेवा बनाया करते थे। इस टेवे में लग्न और चंद्र कुण्डली तथा सामान्य दशा विवरण होता था। साथ ही जातक के परिजनों को पैदा हुए जातक का नाम या नामाक्षर बता दिया जाता था। यह नामाक्षर नक्षत्र के चरण को रिप्रजेंट करता था। अगर जातक का नामाक्षर पता हो तो यह पता किया जा सकता है कि जातक का जन्म किस ग्रह की कितनी दशा बीत जाने पर हुआ है। इससे जातक अपनी युवा अथवा अधेड़ावस्था में किसी भी दूसरे ज्योतिषी को अपना नाम बताए तो ज्योतिषी केवल अंगुलियों पर गणना कर तय कर पाते थे कि जातक की वर्तमान में कौनसी दशा चल रही है और केवल नाम के आधार पर फलादेश किया जा सकता था।
नामाक्षर से और क्या गणनाएं संभव हैं ?
नामाक्षर न केवल जातक की राशि बता देता है, नक्षत्र बता देता है, नक्षत्र चरण बता देता है और दशाक्रम का राज बता देता है। एक नामाक्षर के आधार पर इतनी गणित हो जाती थी। यही कारण था कि कुछ दशक पहले तक जन्म नामाक्षर बहुत महत्वपूर्ण हुआ करता था। अब दशाक्रम पता चल जाए, तो प्रमुख ग्रहों जैसे शनि, गुरू, राहु जैसे ग्रह जो एक से ढाई साल की अवधि में गोचर करते हैं, उनकी लगभग स्थिति भी पता चल जाएगी। ऐसे में जन्म तिथि और जन्म समय सटीक न भी पता हो तो जातक की दशा के बारे में मोटे तौर पर फलादेश किए जा सकते हैं।
क्या जन्म नामाक्षर के अलावा दूसरा नाम रखा जा सकता है?
हमेशा से रखा जा सकता था। पुराने जमाने में जब ज्योतिषी नामाक्षर दे रहे थे, तब भी बदला जा सकता था और आज तो कम्प्यूटर के कारण गणनाएं इतनी आसान हो गई हैं कि हर जातक अपने मोबाइल में अपनी जन्मपत्रिका लिए घूम रहा है, तब तो जन्म नामाक्षर की उपादेयता और भी कम हो गई है। ऐसे में अब जन्म नामाक्षर को छोड़ा जा सकता है। आज अपनी संतान का जो चाहें वह नाम रख सकते हैं। संतान के भाग्य पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्या जन्म नामाक्षर के अलावा दूसरा नाम रखना चाहिए?
इस बारे में कई प्रकार के भेद हैं। मेरे एक गुरुजी जो पांचांगकर्ता थे, उनका विश्वास था कि जो जन्म नामाक्षर है उसी के आधार पर नाम रखा जाना चाहिए। दूसरा नाम उतना शुभ नहीं होता। परन्तु व्यवहार में ऐसी बात देखने में नहीं आती। संभवत: उनके पांचांगकर्ता होने के कारण उनका ऐसा विश्वास रहा हो। मेरे एक दूसरे गुरु जो कि तंत्र और साधना में अच्छी दखल रखते हैं, उनका विचार है कि किसी भी सूरत में जन्म नामाक्षर वाला नाम नहीं रखना चाहिए। क्योंकि अगर किसी जातक का सही जन्म नामाक्षर पता हो तो उस पर अभिचार प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक आसानी से किए जा सकते हैं। अगर जन्म नामाक्षर और प्रसिद्ध नाम अलग अलग हों तो प्रयोग की प्रबलता अपेक्षाकृत कम हो जाती है।
संतान का कैसा नाम रखना चाहिए?
यह पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है। कुछ लोगों पर सोनू मोनू जैसे नाम भी अच्छे लगते हैं तो कुछ लोगों के लिए श्रीकांत और व्योमकेश जैसे नाम भी सूट नहीं करते। ऐसे में किसी को यह बताना व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं है कि क्या नाम रखा जाए। इस दौर में सनातनी हिंदू क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ नामों को रखने में अधिक रुचि रखने लगे हैं। ऐसे में एक कुंजी में सुझा सकता हूं, उससे बहुत सारे नाम एक साथ मिल जाएंगे। ईश्वर के किसी भी रूप की सहस्रनामावली ले जाएं। यह गणेशसहस्रनाम, गोपालसहस्रनाम, विष्णु सहस्रनाम, ललितासहस्रनाम, शिवसहस्रनाम आदि कोई भी सहस्रनाम हो सकता है। बालकों के लिए शिव, विष्णु और गणेशजी के किसी नाम का उपयोग किया जा सकता है और कन्या के लिए ललिता आदि देवियों के सहस्रनाम उपयोग में लिए जा सकते हैं। इसके अलावा पुरुषदेव के नाम के आगे प्रिया लगाकर किसी भी कन्या का नाम बनाया जा सकता है और देवी के किसी भी नाम के आगे पति लगाकर किसी भी बालक का नाम भी बनाया जा सकता है। ऐसे नाम शुभ भी होंगे और सार्थक भी।
ज्योतिषी सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी
9413156400