मधुमेह-3: ग्रह, राशियों व भावों से मधुमेह का संबन्धRelation of Planets, Signs and Houses with Diabetes |
पूर्व के दो लेखों भाग एक व भाग दो में हमने मधुमेह रोग को समझने और उससे संबंधित योगों पर चर्चा की। इस आखिरी लेख में हम शेष सिद्धांतों एवं सामान्य सिद्धांतों के बारे में चर्चा करेंगे। ग्रहों, राशियों और भावों का मधुमेह (Diabetes) से संबंध देखेंगे।
सांसारिक साधनों का कारक शुक्र
शुक्र यदि सूर्य अथवा मंगल से पीडि़त होकर जलतत्वीय राशि में हो।
गुरु अथवा शुक्र यदि आठवें भाव में पीडि़त हों तो मधुमेह रोग होता है।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ आठवें भाव में पड़ा हो।
शुक्र यदि दूसरे भाव में हो और लग्न भाव पीडि़त हो, साथ ही लग्नेश छठे भाव में षष्ठेश के साथ नीच का होकर स्थित हो।
मन का कारक चंद्रमा
चंद्रमा सूर्य अथवा मंगल से पीडि़त हो और जलतत्वीय राशि में स्थित हो।
चंद्रमा अगर शनि से बुरी तरह पीडि़त हो।
चंद्रमा अगर जलतत्वीय राशि में स्थित हो और राशि का अधिपति अगर छठे भाव में जलतत्वीय राशि में हो तो मधुमेह होता है।
गुरु और चंद्रमा पीडि़त हों और पीडि़त करने वाला ग्रह आठवें भाव में स्थित हो।
देवताओं के गुरु वृहस्पति
अगर गुरु शनि से बुरी तरह पीडि़त हो।
अगर गुरु पूर्वषाढ़ा नक्षत्र में हो।
गुरु अगर राहू के नक्षत्र में हो या इससे प्रभावित हो।
सातवें भाव में कर्क अथवा तुला राशि हो।
तुला राशि अथवा सातवें भाव में हो या इससे अधिक ग्रह स्थित हों।
रोग का घर छठा और मृत्यु का आठवां भाव
छठे भाव का अधिपति अगर आठवें भाव में हो या आठवें का अधिपति छठे भाव में हो।
दो या दो से अधिक ग्रह अगर छठे भाव में स्थित हों।
राहू आठवें भाव के अधिपति के साथ छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में स्थित हो।
आठवें भाव में नकारात्मक ग्रह हों और गुरु और शुक्र पीडि़त हों तो मधुमेह रोग होता है।
चौथे और सातवें भाव के अधिपति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों।
छठे या सावतें भाव के अधिपति का संबंध बारहवें भाव के अधिपति से हो और शनि से प्रभावित हो तो मधुमेह होता है।
सामान्य सिद्धांत
दो या अधिक ग्रह जलतत्वीय राशि में पीडि़त हों।
चौथे और सातवें भाव के अधिपति पीडि़त हों।
तीसरे भाव का अधिपति बुध अथवा मंगल के साथ पीडि़त हो तो मधुमेह रोग होता है।
बुध यदि गुरु की राशि (धनु अथवा मीन) में हो।
मधुमेह शृंखला की इन तीन कडि़यों में हमने पहले रोग के विषय में जाना, फिर इसके ज्योतिषीय को और उपचारों की फेहरिस्त। इस पत्रवाचन से उपजे निष्कर्ष के आधार पर प्रशिक्षु और गुणि ज्योतिषियों को भी अपने अपने स्तर पर जांच और शोध करनी चाहिए ताकि हम इन सिद्धांतों को और अधिक सुदृढ़ बना सकें।