गैलेक्टिक सेंटर Galactic Center आकाशगंगा का केन्द्र
गैलेक्टिक सेंटर (Galactic Center) आकाशगंगा का केन्द्र है। इसे आकाशगंगा का सूर्य भी कहा जाता है। इस केन्द्र के चारों ओर आकाशगंगा में शामिल सभी खगोलीय पिण्ड चक्कर लगाते हैं। इनमें हमारे सौरमण्डल का सूर्य और उसके सभी पिण्ड भी शामिल हैं। यानी चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और सूर्य आकाशगंगा के इस सूर्य की परिक्रमा करता है।
सूर्य से इसकी दूरी करीब 25 हजार से 28 हजार प्रकाश वर्ष है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ होता है कि प्रकाश की किरण एक साल में जितनी दूरी तय करती है, उसे प्रकाशवर्ष कहते हैं। पृथ्वी से इसकी सापेक्ष स्थिति वृश्चिक और धनु राशि के बीच में दिखाई देती है। वैज्ञानिकों ने पुष्ट प्रमाणों से बताया है कि आकाशगंगा के बीचों बीच एक बहुत बड़ा ब्लैक होल है। इसे ही आकाशगंगा के सूर्य की उपाधि दी गई है।
हालांकि भारतीय ज्योतिषीय गणनाओं और फलित ज्योतिष में इसकी कोई उपादेयता नहीं है, लेकिन सूर्य का इसके चारों को चक्कर लगाना या कहें हमारी आकाशगंगा का केन्द्र होना इसे महत्वपूर्ण बना देता है। प्राचीन भारत में आधुनिक दूरबीन और गामा रे ऑब्जर्वेटरी जैसे उपकरण नहीं थे, ऐसे में दृश्यमान खगोलीय पिण्डों की ही गणना संभव थी। शास्त्रों में इस गैलेक्टिक सूर्य के बारे में कहीं उल्लेख हो, ऐसा मैंने तो अब तक कहीं पढ़ा नहीं है।
अंतरिक्ष की धूल के कारण इस केन्द्र को सामान्य उपकरणों की मदद से देखना संभव नहीं है। अल्ट्रावायलेट अथवा सॉफ्ट एक्स रे इसे देखने में नाकाम रहती है, ऐसे में गामा किरणों अथवा हार्ड एक्स रे की मदद से इसका अध्ययन किया जाता है।
हार्लो शेपले (Harlow Shapley) ने पहली बार 1918 में धनु राशि के बीच इसकी उपस्थिति के बारे में चर्चा की थी, लेकिन सेलेस्टियल डस्ट यानी अंतरिक्ष की धूल के कारण वे इसे देखने में नाकाम रहे थे। बाद में 1940 में माउंट विल्सन ऑब्जर्वेटरी से संबद्ध वॉल्टर बाडे (Walter Baade) ने सौ इंच के हुकर टेलिस्कोप की मदद से इस केन्द्र की तलाश की थी। यह एक अंतराल या कहें गैप के रूप में दिखाई दिया था। तब से इसे बाडे विंडों के नाम से ही जाना जाता है।
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर स्थित डोवर हाइट्स में वैज्ञानिकों के एक दल ने सी इंटरफैरोमीटर (sea interferometer) की सहायता से पहली बार इंटरस्टैलर और इंटरगैलेक्टिक खगोलीय पिंडो की खोज की थी। इस टीम ने 1954 में एक अस्सी फीट का डिश एंटीना इस्तेमाल कर सेजिटेरियस ए के पास आकाशगंगा के केन्द्र का पता बताया, जो कि इससे पूर्व में बताए गए केन्द्र से करीब 32 डिग्री की दूरी पर था। बाद में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने ऑस्ट्रेलियाई खोजकर्ताओं के बताए स्थान को ही आकाशगंगा का केन्द्र मानते हुए उसे गेलेक्टिक लैटीट्यूड और लांगीट्यूड के लिए जीरो कॉर्डिनेट का स्थान दे दिया। इक्वेटोरियल कॉर्डिनेट सिस्टम में इसकी लोकेशन RA 17h 45m 40.04s, Dec −29° 00′ 28.1″ है।
केन्द्र का ब्लैकहोल
लगातार प्रेक्षण और शोध से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इस केन्द्र के बीचों बीच एक बहुत बड़े आकार का ब्लैक होल है। इसे सुपर मैसिव ब्लैकहोल कहा जाता है, इसका आकार हमारे सूर्य की तुलना में एक लाख से लेकर एक करोड़ गुणा तक बड़ा हो सकता है। इस ब्लैकहोल के चारों ओर आण्विक गैस का बहुत ही संघनित घेरा है, जो इस ब्लैकहोल की तुलना में कहीं बड़ा है और इस केन्द्र से प्रसारित होने वाली रेडियो वेव (जिससे कि हम उसे पहचान पा रहे हैं) को ऊर्जा मुहैया कराता है।
वर्ष 2008 में हवाई, ऐरिजोना और कैलिफोर्निया में हुए एक शोध में इस ब्लैकहोल का आकार 440 लाख किलोमीटर तय किया गया है। आपको बता दें कि पृथ्वी जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, उसका कुल रेडियस 1500 लाख किलोमीटर है, और बुध द्वारा सूर्य के चारों ओर लगाए जाने वाले चक्कर की परिधि 460 लाख किलोमीटर है। इससे आपको ब्लैकहोल के आकार का अनुमान हो सकता है।
जर्मनी स्थित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सट्राटेरेस्ट्रीयल फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने चीलियन दूरबीन की मदद से न केवल इस ब्लैकहोल की पुष्टि की है बल्कि इसका वजन भी 43 लाख सौर द्रव्यमान के बराबर बताया है। यानी 43 लाख सूर्य जैसे तारों जितना द्रव्यमान अकेले इस ब्लैकहोल में है।
आकाशगंगा के इस सूर्य के पास करीब एक करोड़ तारे हैं। इनमें से अधिकांश रेड ओल्ड जाइंट तारे हैं। ये ऐसे तारें है जो पुराने हो चुके हैं और अपने आप समाप्त होकर ब्लैकहोल में तब्दील होने वाले हैं। यहीं पर कुछ युवा तारों की मौजूदगी भी दिखाई देती है, वैज्ञानिकों का मानना है कि ये युवा तारे ही एक तारे के टूटने से बने हैं, संभवत: यह प्रक्रिया कुछ करोड़ साल पहले हुई होगी। केन्द्र के पास ऐसे युवा तारों की उपस्थिति ने वैज्ञानिकों को भी आश्चर्य में डाल दिया है। इनके बनने के लिए कई थ्योरीज हैं, लेकिन अब तक किसी भी एक थ्योरी को मान्यता नहीं मिली है।