ज्योतिष पुस्तक श्रृंखला (Astrology Books) में आज चर्चा करूंगा हेमवंता नेमासा काटवे की पुस्तक देव विचार माला की। पुस्तक का परिचय में उनकी पुस्तकों के कुछ वाक्यों से करना चाहूंगा जो मुझे जब-तब आन्दोलित करते रहते हैं।
मेरे अनुभव के अनुसार वेतनभोगी, कामचोर, आलसी, शिक्षक, प्राध्यापक, क्लर्क, जागीरदार, पैतृक संपत्ति पर जीविका चलाने वाले, निश्चित आय वाले लोगों की जिंदगी में ग्रहों के फल नजर नहीं आते।
ग्रहों के प्रभाव ऐसे लोगों की जिंदगी में अधिक नजर आएंगे जिनका जीवन अधिक स्वतंत्र प्रकृति का हो।
जिनकी संतान की अल्प आयु में मृत्यु होती है या बिल्कुल संतान नहीं होती उनके परिवार के स्वप्नों में छोटे बालक दिखते हैं तथा स्वप्नों में मारपीट और झगड़ों के दृश्य दिखाई देते हैं।
जन्म के समय गुरु-शुक्र युति हो तो यह द्ररिद्रतादर्शक है, लेकिन ये लोग बहुत बुद्धिमान होते हैं
रवि मेष राशि में तापदायी तथा तुला में कल्याणकारी और सुखदायी होता है यानि उच्च राशि में खराब प्रभाव और नीच राशि में हितकारी होता है। l
इसके अलावा मैं बीसीयों वाक्य और लिख सकता हूं लेकिन यहां केवल एक नजीर ही पेश करना चाहता था कि कैसे काटवे सोचने का नजरिया तक बदल देते हैं। मैं काटवे की हर पुस्तक के बारे में विस्तार से लिख सकता हूं। साठ से सौ पृष्ठों की इन पुस्तकों में इतना कुछ दिया गया है कि दिमाग की खिड़कियां खुल जाती हैं।
देव विचार माला की कुल सत्रह छोटी पुस्तकें हैं। काटवे ने ज्योतिष विद्यार्थियों को मछली पकड़कर देने के बजाय मछली पकड़ना सिखाने में अधिक रुचि दिखाई है। इसके चलते हर पुस्तक अपने आप में पूर्ण, सोचने के लिए मजबूर करने वाली और विषय पर बनी रहने वाली है।
जो लोग परम्परागत ज्योतिष पढ़ते हैं उनके लिए तो यह पुस्तक अपरिहार्य है ही जो कृष्णामूर्ति पद्धति के अनुसरणकर्ता हैं वे भी ज्योतिष के इस दूसरे आयाम को पढ़ें तो बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।
देव विचार श्रंखला की किताबों में : (Astrology Books)
सात ग्रहों के लिए अलग अलग विचार और राहू-केतू के लिए एक अलग पुस्तक है। इसके अलावा भाव, भावेश, तेज, देव विचार, देव रहस्य, अध्यात्म, प्रश्न, गोचर तथा शुभाशुभ ग्रह निर्णय किताबें शामिल हैं।
हर ग्रह के बारे में जो पुस्तक है, वह उस ग्रह के संबंध में प्राचीन भारतीय ज्योतिष की पुस्तकों में जो कुछ दिया गया है, उसे समेटते हुए हर अध्याय के अंत में काटवे ने अपने विचार भी शेयर किए हैं। ऐसे में न केवल ग्रह का परिचय प्राप्त होता है, बल्कि पुराने संदर्भ भी आसानी से एक स्थान र मिल जाते हैं।
काटवे का परिचय
हेमवंता नेमासा काटवे का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के शहापुर में 6 फरवरी 1892 में क्षत्रिय परिवार में हुआ था। मूलत: कन्नड़ होने के बावजूद काटवे मराठी, संस्कृत, हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी में वार्तालाप कर लेते थे। अपने मामा से ज्योतिष का शौक लिया और बाद में रुचि बढ़ती गई। विषय में पारंगत होने के बाद कुछ वर्ष काशी में रहे।
बाद में उन्होंने ज्योतिष भास्कर और ज्योतिष दीप पत्रिकाओं में भी लिखा। वर्ष 1936 में काटवे नागपुर पहुंचे। हनुमानजी के इस भक्त को ज्योतिष पर थोथी बहस करने वालों को मजा चखाने में आनन्द आता था।
चाय के आदी और नसवार के प्रेमी काटवे बैठे-बैठे तीन-चार घण्टे की समाधि लगा लेते। अपनी मित्र मण्डली को एक साल पहले जानकारी दी और 11 अगस्त 1949 में संसार छोड़ दिया।
स्रोत देव विचार माला, नागपुर प्रकाशन