कुंडली के भावों का रिश्तों पर प्रभाव
How Placement of Planets Affects Relations
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से हर एक कुण्डली अपने आप में एक जातक का पूर्ण स्वरूप होती है। वह न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बल्कि जातक से जुड़े लगभग हर व्यक्ति और हर रिश्ते (kundli and relations) के बारे में जानकारी देती है। लग्न कुण्डली (Lagna Kundli) से रिश्तेदारियों के बारे में एक हद तक बताया जा सकता है। यह मुख्य रूप से जातक और उसके अपने रिश्तेदारों से संबंध के रूप में अधिक जानकारी देता है।
किसी इंसान पर जब कुण्डली का आरोपण किया जाता है तो हमें काल पुरुष (Kaal Purush) की कुण्डली मिलती है। काल पुरुष के रिश्तेदार (Relatives) भी लग्न कुण्डली के भावों के अनुरूप देखे जाएंगे। लग्न से जहां जातक की आत्मा देखी जाती है, वहीं दूसरे भाव से उसके परिवार के बारे में पता चलता है। तीसरा भाव भाइयों और मित्रों के बारे में जानकारी देता है। चौथा भाव पारिवारिक वातावरण और जिस घर में रह रहा है वहां के बारे में बताता है। पंचम भाव संतान के बारे में सूचित करता है। छठा भाव मामा और ननिहाल की जानकारी देता है, सातवां भाव पत्नी और सहयोगी के बारे में बताता है। आठवां भाव ससुराल और ससुराल से जुड़े रिश्तेदारियों के बारे में सूचना देता है, नौंवा भाव पिता और पिता के परिवार में शामिल दादा-दादी के बारे में बताता है, दसवां भाव पिता के कुल की जानकारी देता है। ग्यारहवां भाव बड़े भाई अथवा पथ प्रदर्शक के बारे में बताता है और बारहवां भाव पड़ोसियों और मामी-चाची आदि के बारे में जानकारी देता है।
कुंडली के प्रथम भाव (लग्न) में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of First House on relations
इसे आत्मकारक भाव भी कहते हैं। यह मूल रूप से जातक की स्थिति का वर्णन करता है। उसके शारीरिक ढांचे, उसकी सामाजिक हैसियत, उसकी आर्थिक स्थिति, उसका व्यवहार, जातक का चेहरा मोहरा आदि सभी लग्न से ही देखे जाते हैं। बाकी रिश्तेदारियां लग्न के सापेक्ष ही देखी जाती हैं। ऐसे में हम कहेंगे लग्न ही जातक खुद है। इससे आगे के भाव उसके संबंधों को खुलासा करते हैं।
कुंडली के द्वितीय भाव में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of Second House on relations
दूसरा भाव पारिवारिक पृष्ठभूमि बताने का काम करता है। अगर जातक के दूसरे भाव में एक से अधिक शुभ व अनुकूल ग्रह हों तो जातक आमतौर पर बड़े परिवार का हिस्सा होता है। अगर द्वितीय भाव का अधिपति मजबूत स्थिति में हो तो जातक परिवार से जुड़ा रहता है। अगर द्वितीय भाव और द्वितीयेश दोनों खराब स्थिति में हों, पाप ग्रहों से दृष्ट हो अथवा दूसरे भाव में क्रूर और शत्रु ग्रह बैठे हों तो जातक का परिवार भले ही बड़ा हो, लेकिन जातक परिवार के साथ अधिक समय नहीं बिता पाता है। परिवार की खुशी और दुख को जीवंत रूप में साझा नहीं कर पाता है।
कुंडली के तृतीय भाव में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of Third House on relations
सामान्य तौर पर इस भाव को सहज भाव या साहस का भाव कहा जाता है। भले ही कालपुरुष की कुण्डली में यह बुध का भाव है, लेकिन रिश्तेदार या संबंधों के स्तर पर यह अनुज अथवा आयु में आपसे छोटी उम्र के मित्रों का भाव है। अगर तृतीय भाव में अकेला चंद्रमा बैठा हो तो जातक में खेलकूद की नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है। भले ही जातक खेल के क्षेत्र में बड़ा नाम करे या न करे, लेकिन तीसरे भाव में अकेले चंद्रमा वाले जातक अगर खेलकूद से जुड़े रहते हैं तो अपनी सहज अवस्था में रहते हैं। उनकी लय बनी रहती है। देखा जाए तो तीसरा भाव वास्तव में जातक को शक्ति का आधार देता है। पहले शारीरिक स्तर पर और बाद में मानसिक स्तर पर।
कुंडली के चतुर्थ भाव में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of Fourth House on relations
अगर मुझे देखना हो कि किसी विद्यार्थी के पढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण है या नहीं, तो मैं उसका चौथा भाव देखूंगा। चतुर्थ भाव जातक के पारिवारिक वातावरण के बारे में जानकारी देता है। जातक की माता को चतुर्थ भाव से देखा जाता है। इसे सुख का भाव भी कहा गया है। अगर किसी जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव सौम्य ग्रहों से प्रभावित हो और चतुर्थ भाव का अधिपति शुभ प्रभाव में हो तो जातक को अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान न केवल घर में बेहतरीन वातावरण मिलता है बल्कि जातक की माता भी सुखी रहती है। चतुर्थ भाव में शनि होने पर मैंने जातक को घर से दूर रहने के लिए बाध्य होते देखा है। ऐसे जातक को घर की बहुत याद आती है, फिर भी उसे नौकरी अथवा दूसरे कारणों से घर और माता से दूर रहना पड़ता है।
कुंडली के पंचम भाव में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of Fifth House on relations
कहने को यह संतान का भाव है, लेकिन इस भाव से व्यक्ति की उत्पादन क्षमता देखी जाती है। साथ ही लीजेसी भी। अपने ऑरा से जातक अगली पीढ़ी को क्या सौंपता है यह पंचम भाव बताता है। ऐसे में गुरू के लिए उसका शिष्य भी पंचम भाव है और एक फैक्ट्री मालिक के लिए उसकी फैक्ट्री पंचम भाव है। अगर जातक किसी को पुत्रभाव से देखता है और उसे शिक्षा और ज्ञान देता है तो वह भी जातक का पंचम भाव ही होगा। शिक्षक के लिए उसके छात्र पंचम भाव हैं तो रसोई का काम सिखाते वक्त सास के लिए उसकी पुत्रवधू पंचम भाव होगी। यह भाव तीसरे भाव से तीसरा है। अत: कह सकते हैं कि मित्र या अनुज के साहस का भाव भी यही होगा।
कुंडली के षष्ठम भाव में स्थित ग्रहों का रिश्तों पर प्रभाव
Effects of Planets of Sixth House on relations
सामान्यतया इसे अरि या शत्रु भाव कहा जाता है। सातवां भाव जहां प्रतिद्वंद्वी का भाव है वहीं छठा भाव प्रतिद्वंद्वी के ह्रास का भाव है। अगर किसी जातक का छठा भाव बलशाली है तो उसके शत्रु भी बलशाली होंगे। यह चतुर्थ से तीसरा है। ऐसे में माता के अनुज (मामा) को भी इसी भाव से देखते हैं। सामान्य तौर पर देखा जाए तो ननिहाल को इसी भाव से देखा जाने लगा है। जो लोग आपसे सीधे प्रतिस्पर्द्धा में नहीं हैं, फिर भी आपके कार्यों में रूचि लेते हैं और आपको लगातार उसके नकारात्मक पक्ष बताते रहते हैं, उन्हें भी छठे भाव से ही देखा जाएगा।