समूह में मृत्यु और ज्योतिषीय गणनाएं : Answer to BBC
हाल ही में बीबीसी ने एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें उसने सामूहिक मृत्यु में ज्योतिषीय योगों पर चर्चा की है। हालांकि संवाददाता ने अपने किसी जानकार ज्योतिषी को कोट भी किया है, लेकिन ज्योतिष को मिथ्या साबित करने की कोशिश भर का यह हल्का प्रयास मुझे नहीं सुहाया, सो बीबीसी के सवाल और उसके जवाब को लेकर यह पोस्ट देखिएगा। पहले बीबीसी का लेख और अंत में मेरा जवाब…
इतनी मौतों का ज्योतिष के पास क्या है जवाब?
ज्योतिष का बुनियादी सिद्धांत है कि हर व्यक्ति की कुंडली अलग होती है, इंसान के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के हिसाब से ही जीवन चलता है और मौत होती है. तो सवाल ये उठता है कि केरल में कोल्लम मंदिर में एक साथ इतने लोगों की मृत्य एक ही वक़्त, एक ही दिन कैसे हो गई? क्या उन सबकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति एक जैसी थी? या सबके हाथ की रेखाएँ एक जैसी थीं?
दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री विद्यापीठ में ज्योतिष के प्रोफ़ेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं, “देखिए व्यक्ति की कुंडली अलग-अलग हो सकती है लेकिन ऐसी घटनाएं स्थान विशेष के भाग्य से भी जुड़ी होती हैं. ज़ाहिर सी बात है कि अगर उस ख़ास स्थान का भाग्य ख़राब होगा तो वहां रहने वाले लोगों का भाग्य भी उसी से जुड़ा होगा.” त्रिपाठी कहते हैं, “ऐसी घटनाओं की व्याख्या करते वक़्त व्यक्ति विशेष की बात नहीं हो सकती. ऐसे में तो हमें उस जगह, उस भूखंड की किस्मत का विचार करना होगा.” तो जब व्यक्ति की क़िस्मत का फ़ैसला स्थान से ही जुड़ा है तो फिर जन्मकुंडली का क्या मतलब है?
इसके जवाब में देवी प्रसाद कहते हैं, “जन्म कुंडली बेमानी नहीं होती है. वो व्यक्ति के भविष्य का पूर्वानुमान होती है लेकिन वो सौ फ़ीसदी सच नहीं होती है.” रात-दिन टीवी पर आने वाले ज्योतिषी, अख़बार में छपने वाले भविष्यफल कितने सटीक हो सकते हैं, ये पूछने पर त्रिपाठी कहते हैं, “इन लोगों ने ज्योतिष शास्त्र का मज़ाक बना दिया है और हर बात को हल्के में पेश कर देते हैं. इस वजह से लोग ज्योतिष को गंभीरता से नहीं लेते हैं.”
टीवी पर अक्सर दिखने वाली एस्ट्रोलॉजर दीपिका कहती हैं, “जितने लोग भी उस हादसे में मारे गए उन सबकी किस्मत में उनकी आयु उतनी ही थी. इसे मंडेन एस्ट्रोलॉजी में एक्सप्लेन कर सकते हैं. जितने लोग भी मारे गए उनके जन्म के वक़्त उनके ग्रहों की दशा ऐसी रही होगी कि वो एक साथ मारे गए.”
वहीं जाने-माने लेखक और इतिहास पर शोध करने वाले संजय सोनावणी कहते हैं, “केरल में जो हादसा हुआ वो पूरी तरह से मानवीय भूल थी. लापरवाही थी जिसकी वजह से इतने लोगों की जानें गईं. इसके लिए मंदिर प्रशासन ज़िम्मेदार है. ज्योतिषाचार्य उसे उलजुलूल तरीक़े से समझा रहे हैं. ऐसी ही घटनाएं ज्योतिष की पोल खोलती हैं. सच तो यह है कि ज्योतिष कोई विज्ञान ही नहीं है.” मूल खबर के लिए यहां चटका लगाएं
एक ज्योतषी के रूप में मेरा जवाब
इस लेख में ज्योतिष के एक पक्ष को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं। इन सवालों के मूल में ही कोटि दोष है। आम लोगों को जिन्हें ज्योतिष की इतनी समझ नहीं होती है, उनके लिए ऐसे सवाल और उनके अनबूझे जवाब असहजता पैदा करते हैं। मैं यहां स्पष्ट करने का प्रयास करता हूं कि सवाल में कोटि दोष का अर्थ क्या है और क्यों सवाल खड़ा करना ही मूल रूप से गलत है। यहां ज्योतिष नहीं बल्कि सवाल पूछने वाला गलत है। इसे समझने के लिए पहले हम विज्ञान की बात करते हैं, ताकि समझ में आए कि सिद्धांत किस प्रकार बनते हैं और किस प्रकार काम करते हैं।
अणुओं का व्यवहार सामान्य भौतिक अवस्थाओं में जैसा बताया गया है वैसा ही होता है, यानी तेल में पृष्ठ तनाव, रबर में तन्यता, धातु में विस्तार की क्षमता जैसे। लेकिन जब यही अणु सूर्य की गर्मी में प्लाजमा स्टेज में होते हैं तो इन अणुओं के व्यवहार में बदलाव आ जाता है, क्योंकि वहां 6000 कैल्विन स्तर का ताप होता है। इसी प्रकार शून्य से 273 डिग्री नीचे के तापमान पर भी अणुओं का स्वभाव बदल जाता है। रबर की तन्यता समाप्त हो जाती है, गैस लिक्विड में बदल जाती है। इस तरह हम देखते हैं कि माध्यम और सथान बदल जाने पर अणुओं की स्वाभाविक प्रक्रिया में भी बदलाव आ जाता है।
कमोबेश ऐसा ही ज्योतिष में भी होता है। वृष लग्न का जातक कुछ सांवला होता है और वृष लग्न में चंद्रमा होने पर वही जातक गोरा हो सकता है, इसी प्रकार गजकेसरी योग में जातक राज का सुख भोगता है, लेकिन यही गजकेसरी जब मारक स्थानों से संपर्क कर लेता है तो यह मारक बन जाता है। किसी जातक के जीवन में विवाह के कम से कम तीन अवसर बनते हैं। जब बचपन में बनता है तो जातक अच्छे पारिवारिक माहौल में रहता है, जवानी में बनता है तो उसका विवाह होता है और वृद्धावस्था में बनता है तो जातक की मृत्यु होती है और अंतिम संस्कार धूमधाम से होता है।
यह स्थितियां तो मैंने बताई है कि जब खुद व्यक्तिगत जातक कुण्डली की अवस्थाओं में इस प्रकार के इतने परिवर्तन आते हैं। अब बात करते हैं कि जब प्राकृतिक आपदा हो जैसे केदारनाथ त्रासदी या कोसी का बाढ़, मानव जनित विश्व युद्ध, पृथ्वी की भूगर्भीय हलचल से भूकंप, आतकंवादी गतिविधि में भीड़ में बम फूटना या धार्मिक स्थानों पर एकत्रित हुए श्रद्धलुओं का हादसे में शिकार होना, ऐसी स्थितियों के लिए ज्योतिष के लिए सामान्य जातक कुण्डली के नियम लागू नहीं होते। इसके लिए ज्योतिष की एक पृथक शाखा है, उसका नाम मण्डेन ज्योतिष है, जो वृहद् स्तर पर होने वाली गतिविधियों के बारे में फलादेश करती है। इसमें ज्योतिष के सामान्य नियम लागू नहीं होते हैं। उस आपदा में ग्राम विशेष, शहर विशेष, क्षेत्र विशेष या अवस्था विशेष में शामिल सभी जातकों पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन यह प्रभाव भी एक जैसा नहीं होता। केदारनाथ घाटी में हजारों लोग एक साथ मारे गए, लेकिन उसी क्षेत्र में बचने वाले लोगों की संख्या भी अच्छी खासी रही, घायल होकर ईलाज लेकर पुन: स्वस्थ होेने वाले भी थे, एक ही परिवार में बचने वाले और मरने वाले दोनों थे। इसी प्रकार किसी आतंकवादी बम विस्फोट में विस्फोट के सामने और पीछे खड़े लोगों के साथ भी यही होता है कि एक ही स्थान पर घटना होती है, कोई अधिक प्रभावित होता है तो कोई अपेक्षाकृत कम।
मृत्यु के मायने
सामान्य बोलचाल की भाषा और किसी विषय विशेष की शब्दावली में भी आधारभूत अंतर होता है। हम लोक व्यवहार में कह देते हैं कि जिसकी सांसें चल रही है वह जिंदा है और जिसकी सांसें और धड़कन चलने बंद हो गए वह मर चुका है। वास्तव में मृत्यु का यही अर्थ नहीं है। मृत्यु के भी कई प्रकार है। एक जातक घर से भाग जाता है, कुछ दिन में परिवार को सूचना मिलती है कि वह मर चुका है, कपड़ों के आधार पर लाश की शिनाख्त भी हो जाती है, कई साल बाद जातक पुन: लौट आता है, और बताता है कि उसने किसी भिखारी को अपने कपड़े दे दिए थे। ऐसे में जातक को जिस अवधि में मरा हुआ माना गया, उस समय वह जिंदा था। इसी प्रकार कोई जातक अगर बीस साल कोमा में रहे और उसके बाद सांस छोड़े तो उसे कब मरा हुआ माना जाए। सामान्य जीवन से जातक ने बीस साल पहले ही छोड़ दिया था और उसी अवस्था में उसके शरीर ने भी आखिर काम करना बंद कर दिया। दूसरी ओर आध्यात्मिक स्तर पर देखा जाए तो शरीर छोड़ने के बाद भी बहुत से लोग इस लोक को छोड़ नहीं पाते हैं, वे किसी न किसी प्रकार अपने प्रियजनों से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करते हैं। भले ही मौजूदा विज्ञान इसे न माने, लेकिन जिस प्रकार लोक भाषा का इस्तेमाल कर बीबीसी ज्योतिष का मिथ्या साबित करने का प्रयास कर रहा है, उसी लोक भाषा में मरे हुओं की मुक्ति उस समय तक नहीं हुई होती है। तो किसी जातक को कब मरा हुआ माना जाए, यह भी अब तक अबूझ ही है।
ज्योतिष सामान्य लोगों के लिए गूढ़ विषय है, अगर किसी व्यक्ति ने कभी चुंबक नहीं देखी हो तो वह कभी नहीं मानेगा कि कोई लोहे जैसी दिखने वाली चीज खींचने या धक्का देने की प्रक्रिया कर सकती है, कुछ इसी तरह जिन लोगों को ज्योतिष के आधारभूत नियमों की जानकारी भी नहीं होती, वे इस विषय का विश्लेषण करते समय उस मूर्ख के समान हैं जो इत्र को चाटकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि यह किसी काम का नहीं, क्योंकि यह स्वाद में खारा है। इस विषय को पढि़ए, गुणिए, समझिए और फिर दूसरे लोगों को समझाना शुरू कीजिए, वरना बीबीसी की क्रेडिबिलिटी पहले ही खतरे के निशान पर है, ऐसे मूर्खतापूर्ण लेखों से पूरी तरह खत्म हो जाएगी।