आपके सपनों के घर में वास्तु की भूमिका (Vastu for home)
आपके सपनों के घर में वास्तु की भूमिका (Vastu for home) काफी अहम होती है यह बात आप जब लेख पूरा पढ़ कर खत्म करेंगे तो समझ जायेंगे।
इंसान की इच्छा होती है कि वह एक ऐसा घर बनाए जिसमें वह तमाम सुविधाएं हों जिनकी वह हमेशा इच्छा करता रहा है। अधिकांश सफल लोग अपने जीवन के तीसरे या चौथे दशक में ऐसा घर बना लेते हैं। यहां सफल कहने से मेरा मतलब है संतोषजनक स्थिति तक स्थापित हो जाना।
जिससे आगे बढने के लिए आदमी पूरी ताकत से प्रयास नहीं करता। इस लेख में हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि किसी जातक का घर कब कनेगा, वास्तु के अनुसार एक आदर्श घर (Vastu for home) में क्या विशेषताएं होनी चाहिए।
घर बनाने से पहले जमीन खरीदने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, घर के नक्शे में क्या जरूरी सावधानियां रखी जानी चाहिए, उपयोग में ली जाने वाली सामग्री के बारे में कुछ आवश्यक बातों पर इस लेख में चर्चा होगी।
कुछ कोण ज्योतिषीय होगा, कुछ वास्तु तो आम जानकारी की कुछ बातों को भी इस पोस्ट में शामिल किया गया है.
किसका घर कब बनेगा
जातक की कुण्डली में चौथा घर बहुत बेहतर स्थिति में हो तो वह अपनी जिंदगी के शुरूआती वर्षों में ही घर बना लेता है। सामान्य तौर पर घर बनाने के लिए दूसरा, चौथा और ग्यारहवां भाव देखा जाता है।
अगर कोई बना बनाया घर खरीद रहा हो, तो उसके लिए शुक्र और जमीन लेकर घर बना रहा हो तो मंगल को विशेष तौर पद देखा जाता है। कुण्डली का चौथा घर घरेलू वातावरण और माता की मानसिक स्थिति का परिचायक भी होता है।
जिन लोगों को शांत वातावरण और अच्छे जेस्चर वाली माता मिलती है वे लोग शीघ्र बनाते देखे गए हैं। इसके अलावा चतुर्थ भाव के स्वामी और इस भाव पर दूसरे ग्रहों की दृष्टि भी महत्वपूर्ण होती है।
इससे पता चलता है कि घर कैसा होगा। ग्रह विशेष से भवन के वास्तु पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसके बारे में मेरी एक पुरानी पोस्ट कैसा है घर आपका में मैंने विस्तार से जानकारी दी है।
घर बनाने के लिए जमीन
हर वर्ण के व्यक्ति के लिए जमीन की विशेषताएं बताई गई हैं। इसके अनुसार पीले रंग की सुगंधित भूमि ब्राह्मण भूमि है, रक्तवर्ण की भूमि क्षत्रिय भूमि है, हल्की धूसर लेकिन उपजाऊ भूमि वणिकों है और काली व दुर्गंधयुक्त भूमि शूद्र भूमि है। अपने प्रोफेशन के अनुसार हमें श्रेष्ठ भूमि का चुनाव करना होता है। यह तो रंग और वर्ण की बात हुई। अब यह देखना होगा कि जमीन में ताकत कितनी है।
इसके लिए एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्ढा खोदें और उसमें पानी भरकर रख दें। अगर उसमें पानी भरा रहता है तो श्रेष्ठ भूमि है, लेकिन पानी पूरी तरह सूख जाए तो उस भूमि को छोड़ देने योग्य बताया गया है। हालांकि अब जमीनों को छोड़ा नहीं जा सकता, लेकिन उपचार करके उसे काम में लेने योग्य बनाया जा सकता है। ऐसे में भूमि में दोष होने पर हर हालत में उसका उपचार भी किया जाना चाहिए। अन्यथा समय बीतने के साथ उसके खराब प्रभाव सामने आने लगते हैं।
वास्तु के अनुसार सर्वोत्तम घर (Vastu for home)
वास्तु के अनुसार पूर्व और उत्तर दिशा गृह मालिक के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। पूर्वमुखी घर का मालिक प्रशासन और सरकार में अच्छी दखल रखता है। ऐसा घर पितृसत्तात्मक होता है। यानि पुरुषों की अधिक चलती है।
दंपत्ति में पति पत्नी के बाद तक जीवित रहता है। उत्तरमुखी घरों में ज्यादातर कंसल्टेंट रहते हैं। यानि नौकरी संबंधी सलाह देने वाले, बैंकर्स, इंश्योरेंस एजेण्ट, आयुर्वेद और होम्योपैथी के चिकित्सक और ऐसे अन्य लोग जो रचनात्मकता के साथ लोगों को सलाह देते हैं।
आमतौर पर दूसरे लोगों को सलाह देने के साथ ही इनका पेशा जुडा होता है। ऐसे घरों के बच्चों की स्थिति बेहतर होती है। परिवार तेजी से बढता है। कन्याएं अधिक हों तो परिवार अधिक फलता-फूलता है। पश्चिममुखी घरों में अधिकांश नौकरीपेशा लोग रहते हैं।
ये जिन्दगी का अधिकतर हिस्सा व्यवस्थाएं बनाने में बिता देते हैं। इन घरों में ऊर्जा का स्तर कम होता है। धीरे बोलने वाले और छोटी-छोटी समस्याओं को भी जरूरत से अधिक गंभीरता से सुलझाने वाले लोग इस श्रेणी में आते हैं।
दक्षिणमुखी घरों को सबसे खराब दिशा वाले घर बताया गया है। कुछ स्थानों पर तो लिखा है कि ऐसे घरों में विधवाएं, विधुर और स्यापा करने वाले लोग रहते हैं। लेकिन एलोपैथ चिकित्सकों और हॉस्टलों के अलावा दुकानों को इन दिशा में बेहतर परिणाम देते देखा गया है।
ध्यान दें तो पता चलता है चिकित्सक के घर रोने वाले लोग अधिक आते हैं। हॉस्टल में रहने वाले लोग कभी हॉस्टल से आत्मीय रिश्ता नहीं जोड पाते हैं और दुकान के प्रति दुकानदार का यह नजरिया होता है कि यह जितनी जल्दी खाली हो बेहतर है ताकि दूसरा माल लाकर डाला जा सके।
नक्शा बनाते समय ध्यान रखें (House map design)
नक्शा बनाते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है, मसलन घर में हवा, पानी और रोशनी के बीच कम से कम बाधाएं हों। घर के सामने ऐसा खुला स्थान न हो, जहां से नकारात्मक ऊर्जा आती हो, और ऐसी बाधा भी न हो कि पर्याप्त ऊर्जा न मिल पाए।
घर के भीतर दरवाजों और छतों का संतुलन ऐसा होना चाहिए कि बैठते समय असहजता महसूस न हो। फर्श को सबसे ज्यादा अनदेखा किया जाता है। किसी भी प्रकार की टाइल्स लगा ली जाती है। बाद में पता चलता है कि टाइल्स के रंगों के कारण ही घर में समस्याएं बढ़ रही हैं।
फर्श का एक उदाहरण गंगानगर में देखने में आया। दो रिश्तेदार मिलकर ठेकेदारी का काम करते थे। उन्होंने कॉलोनी काटी तो अपने लिए एक एक घर पास में बना लिया। 120 फीट X 270 फीट के प्लाटों पर बने घर हर दृष्टि से एक समान थे।
एक सज्जन तो खुश थे, लेकिन दूसरे लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे थे। एक अवस्था तो यह आई कि उनका मनोचिकित्सक से ईलाज शुरू हो गया। साथ ही पियक्कड़ी की हद तक शराब पी रहे थे।
हम वास्तु देखने के लिए पहुंचे तो उनके घर देखते रह गए। हर कोण से वास्तु (Vastu for home) का ध्यान रखा गया था।
यहां तक कि घर के उत्तरी पश्चिमी कोने को हल्का करने के लिए वहां उन्होंने एक स्विमिंग पूल तक बना रखा था। इसके बावजूद हमें समस्या को पहचानने में दस मिनट से अधिक समय नहीं लगा।
हमने स्वस्थ साझेदार का घर देखा, उन्होंने बताया कि ठीक ऐसा ही पूर्वमुखी घर सड़क की दूसरी ओर है। हमारा अनुमान फर्श को लेकर था। हमने कहा बिल्कुल एक जैसा नहीं है, फर्श में अंतर है। यह एक अनुमान था, जो सटीक पड़ा।
उन्होंने बताया कि फर्श की डिजाइन को लेकर दोनों घरों की मालकिनों में कुछ भेद था। सो एक घर में सपाट सफेद मार्बल के टुकड़े लगे थे, लेकिन दूसरे घर में ऐसा मार्बल लगा था, जिसमें काले रंग की झाईं थी।
यह राहु चंद्रमा का स्पष्ट संकेत था। हमने फर्श बदलवा दिया। छह महीने बाद वे मिलने के आए तो काफी खुश थे। मनोचिकित्सक का ईलाज जारी था, लेकिन शराब की लत बहुत हद तक छूट चुकी थी। केवल फर्श से इतना फर्क पड़ सकता है, तो कल्पना कीजिए, वास्तु के किसी एक कोण को नजरअंदाज करने का क्या नुकसान हो सकता है।