सबल ग्रह का रत्न धारण करें या निर्बल ग्रह काGemstone for weak planet or for stronger one |
यह भी एक टेढ़ा सवाल है कि ज्योतिषी उपचार के दौरान निर्बल ग्रह का रत्न (gemstone) पहनाया जाए या सबल ग्रह का। जो ग्रह कुण्डली में उपयोगी है उसकी ताकत को बढ़ाया जाए या जो ग्रह निर्बल अवस्था में पड़ा है उसे उभारा जाए। वास्तव में ऐसा होता है मुझे इसमें भी शक है। कृष्णामूर्ति का तो कथन है कि लग्न और नवम भाव तथा इनसे सम्बन्धित ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कोई ग्रह निर्बल हो या सबल क्या फर्क पड़ता है। इस लेख को पढ़ने से पहले पाठक को चाहिए कि मेरे रत्नों पर लिखे कुछ पिछले लेखों को देख लेना चाहिए। रत्न – मोती और पुखराज तो किसी को भी पहना दो और दूसरा है रत्न : कब, कौनसा और कैसे पहनें
इन लेखों में मैंने वर्तमान में रत्न को लेकर चल रहे कई सिद्धांतों और उनके कारण पैदा हो रहे व्याघात को समझाने का प्रयास किया है। निर्बल और उच्च ग्रह का उपचार भी ऐसा ही एक और व्याघात है। इसे एक उदाहरण कुण्डली से समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिए एक तुला लग्न की कुण्डली है। उसमें शुक्र लग्न का अधिपति हुआ। एक केन्द्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने के कारण शनि इस कुण्डली में कारक ग्रह है। नवम भाव का अधिपति होने के कारण बुध का उपचार भी किया जा सकता है।
अब कृष्णामूर्ति की माने तो इस कुण्डली के शुक्र, शनि और बुध ग्रह का ही इलाज किया जा सकता है। अब इस कुण्डली में अगर गुरू, सूर्य या मंगल खराब स्थिति में है तो उनके इलाज की जरूरत ही नहीं है। एक व्यक्ति राजमहल में रह रहा हो तो उसे ज्ञान, आधिपत्य, और ताकत स्वत: मिलती है, और अगर न भी मिले तो उसके लिए प्रयास करने की जरूरत भी नहीं है।
ऐसा जातक अगर ज्योतिषी से यह मांग करे कि उसे अपने आधिपत्य, ताकत और ज्ञान में बढ़ोतरी की जरूरत है तो मान लीजिए कि वह केवल किसी लालसा की वजह से कुछ समय के लिए भटककर यह सवाल कर रहा है। वास्तव में उसे जो चाहिए वह ऐश्वर्य, विरासत, कंफर्ट, कम्युनिकेशन स्किल और अपनी चाही गई चीजों के लिए ईज ऑफ एक्सस की जरूरत है। यानि वह अपनी जरूरतों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार नहीं है।
अगर वह जातक किसी साधन या व्यवस्था को पाने का प्रयास कर रहा है या रही है तो यह कुछ समय की बात हो सकती है दीर्घकालीन जरूरत नहीं। ऐसे में तुला लग्न में बैठे नीच के सूर्य को ताकतवर बनाने के लिए माणिक्य भी पहना दिया तो फायदा करने के बजाय नुकसान अधिक करेगा।
यही बात अन्य लग्नों के लिए भी लागू होती है। तो जातक का इलाज करते समय यह ध्यान रखने वाली बात है कि वास्तव में जातक का मूल स्वभाव क्या है। उसे अपनी मूल स्थिति में लौटाने से अधिक सुविधाजनक कुछ भी नहीं है। भाग्य को धोखा नहीं दिया जा सकता, लेकिन मानसिक स्थिति में सुधार कर खराब समय की पीड़ा को दूर किया जा सकता है। ऐसे में किसी एक जातक की लालसा का पोषण करने के बजाय उसे सही रास्ते की ओर भेजना मेरी समझ में सबसे सही उपाय है। ऐसे में मेष से लेकर मीन राशि और लग्न वाले जातकों के लिए अलग-अलग उपचार होंगे। आप गौर करेंगे कि कुछ ग्रहों को कारक तो कुछ को अकारक भी बताया गया है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी कुण्डली में कारक ग्रहों का प्रभाव होता है और अकारक का नहीं होता। प्रभाव तो सभी ग्रहों का होगा, लेकिन मूल स्वभाव कारक ग्रह के अनुसार ही होगा। ऐसे में उपचार के समय भी कारक ग्रहों का ही ध्यान रखा जाए।
रही बात उच्च और नीच की… यह तो रश्मियों का प्रभाव है। नीच ग्रह की कम रश्मियां जातक तक पहुंचती है और उच्च ग्रह की अधिक रश्मियां। ऐसे में अगर कारक ग्रह अच्छी स्थिति यानि अच्छे भाव में बैठकर कम रश्मियां दे रहा है तो उसके लिए उपचार करना चाहिए। और अकारक ग्रह खराब स्थिति में या नीच का भी है तो उसे छेड़ने की जरूरत नहीं है।
यह मेरा अब तक के अध्ययन से उपजा विश्लेषण है.. जरूरी नहीं है कि सही ही हो, लेकिन अब तक जितने जातकों का इलाज इन तथ्यों को ध्यान में रखकर किया है, मुझे बेहतर परिणाम मिले हैं। एक उदाहरण भी देना चाहूंगा। एक जातक तुला लग्न का ही था और अपने संगठन में टॉप लेवल पर पहुंचने के लिए प्रयासरत था, मुझे लगा कि वह अपनी ताकत और प्रबंधन गुण की वजह से तो टॉप लेवल पर नहीं पहुंच पाएगा, लेकिन शनि का नेगेटिव प्रभाव बढ़ाने से बात बन सकती है। पांचवे भाव में स्व राशि का होने के बावजूद मैंने जातक को लोहे की अंगूठी गले में पहना दी, और गले में पहना रक्त चंदन का सूर्य उतरवा दिया। शनि का असर तेजी से बढ़ा, लग्न में बैठे सूर्य और गुरू भी इतना असर नहीं कर पाए जितना शनि ने किया। अब वह अपने संगठन के बहुत महत्वपूर्ण ऊंचे पद पर आसीन है।