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गायत्री स्तोत्रम Gayatri strotam

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महेश्वर उवाच

जयस्व देवि गायत्रि महामाये महाप्रभे ।
महादेवि महाभागे महासत्त्वे महोत्सवे ।।1।।

दिव्यगन्धानुलिप्ताड़्गि दिव्यस्त्रग्दामभूषिते ।
वेदमातर्नमस्तुभ्यं त्र्यक्षरस्थे महेश्वरि ।।2।।

त्रिलोकस्थे त्रितत्वस्थे त्रिवह्निस्थे त्रिशूलनि ।
त्रिनेत्रे भीमवक्त्रे च भीमनेत्रे भयानके ।।3।।

कमलासनजे देवि सरस्वति नमोSस्तु ते ।
नम: पंकजपत्राक्षि महामायेSमृतस्त्रवे ।।4।।

सर्वगे सर्वभूतेशि स्वाहाकारे स्वधेsम्बिके ।
सम्पूर्णे पूर्णचन्द्राभे भास्वरांगे भवोद्भवे ।।5।।

महाविद्ये महावेद्ये महादैत्यविनाशिनी ।
महाबुद्ध्युद्भवे देवि वीतशोके किरातिनि ।।6।।

त्वं नीतिस्त्वं महाभागे त्वं गीस्त्वं गौस्त्वमक्षरम ।
त्वं धीस्त्वं श्रीस्त्वमोंकारस्तत्त्वे चापि परिस्थिता ।
सर्वसत्त्वहिते देवि नमस्ते परमेश्वरि ।।7।।

इत्येवं संस्तुता देवी भवेन परमेष्ठिना ।
देवैरपि जयेत्युच्चैरित्युक्ता परमेश्वरि ।।8।।

।। इति श्रीवराहमहापुराणे महेश्वरकृता गायत्रीस्तुति: सम्पूर्णा ।।

हिन्दी अनुवाद – 1 से 4 श्लोक तक

भगवान महेश्वर बोले – महामाये, महाप्रभे, गायत्रीदेवी आपकी जय हो. महाभागे आपके सौभाग्य, बल व आनन्द सभी असीम है. दिव्य गंध व अनुलेपन आपके श्रीअंगों की शोभा बढ़ाते हैं. परमानन्दमयी देवी, दिव्य मालाएँ व गंध आपके श्रीविग्रह की छवि बढ़ाती हैं. महेश्वरी, आप वेदों की माता हैं. आप ही वर्णों की मातृका हैं. आप तीनों लोकों में व्याप्त हैं. तीनो अग्नियों में जो शक्ति है, वह आपका ही तेज है. त्रिशूल धारण करने वाली देवी, आपको मेरा नमस्कार है. देवी, आप त्रिनेत्रा, भीमवक्त्रा, भीमनेत्रा तथा भयानका आदि अर्थानुरुप नामों से जानी जाती है. आप ही गायत्री और सरस्वती हैं. आपके लिए हमारा नमस्कार है. अम्बिके, आपकी आँखे कमल के समान हैं. आप महामाया हैं. आप से अमृत की वृष्टि होती रहती है.

5 से 7 श्लोक तक अनुवाद

सर्वगे! आप सम्पूर्ण प्राणियों की अधिष्ठात्री हैं. स्वाहा और स्वधा आपकी ही प्रतिकृतियाँ हैं. अत: आपको मेरा नमस्कार हैं. महान दैत्यों का दलन करने वाली देवी, आप सभी प्रकार से परिपूर्ण हैं. आपके मुख की आभा पूर्णचन्द्र के समान हैं. आपके शरीर से महान तेज छिटक रहा है. आपसे ही यह सारा विश्व प्रकट होता है. आप महाविद्या और महावेद्या हैं. आनन्दमयी देवी, विशिष्ट बुद्धि का आपसे ही उदय होता है. आप समयानुसार लघु व बृहत शरीर भी धारण कर लेती हैं. महामाये, आप नीति, सरस्वती, पृथ्वी तथा अक्षरस्वरूपा हैं. देवी, आप श्री, घी तथा ऊँकार स्वरुपा हैं. परमेश्वरी ! तत्त्व में विराजमान होकर आप अखिल प्राणियों का हित करती हैं. आपको मेरा बार – बार नमस्कार हैं.

श्लोक 8 का अनुवाद

इस प्रकार परम शक्तिशाली भगवान शंकर जी ने उन देवी की स्तुति की और देवता लोग भी बड़े उच्चस्वर से उन परमेश्वरी की जय ध्वनि करने लगे.
इस प्रकार श्रीवराहमहापुराण में महेश्वरकृत गायत्रीस्तुति सम्पूर्ण हुई.