रक्षा बंधन नहीं है, रक्षा सूत्र है राखी
समय के साथ शब्द भी रूढ़ होते चले जाते हैं और शब्दों का भाव उस रूढि़ को आगे बढ़ाता है। ऐसा ही शब्द है रक्षा बंधन। ऐसा माना जाता है कि बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है, इस उम्मीद में कि भाई बहिन की रक्षा करेगा, यानी भाई बंध जाता है, अपनी बहिन की रक्षा के लिए… क्या वास्तव में ऐसा है ?? कतई नहीं।
क्या आप जानते हैं सबसे पहला रक्षा सूत्र किसने किसे बांधा था, इंद्र को उनकी पत्नी शची ने सबसे पहला रक्षा सूत्र बांधा, क्यों बांधा, क्योंकि देवासुर संग्राम में इंद्र पर लगातार आक्रमण होते रहते, इंद्राणी हर युद्ध में इंद्र के साथ नहीं होती, ऐसे में इंद्र की रक्षा के लिए वे अपना सूत्र इंद्र को बांध देती हैं।
हम मानव सभ्यता के विकास को देखें तो पाते हैं कि पुरुष शिकारी है और स्त्री घोंसले (घर) को संभालने वाली, दोनों की अपनी अपनी भूमिकाएं हैं। जब पुरुष से बाहर निकलता है तो केवल खुद की स्किल और अपने औजारों के भरोसे होता है, ये औजार ज्ञान से लेकर हथियार तक कुछ भी हो सकते हैं। अब स्त्री हर बार पुरुष के साथ बाहर तो नहीं जा सकती, ऐसे में देवताओं से मिन्नत की जाती है कि वे पुरुष की रक्षा करें, इसी गरज से हाथ में मौली के रूप में रक्षा सूत्र बांध दिया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह रक्षासूत्र पुरुष की रक्षा करता है।
सनातन मान्यता यह मानती है कि रजस्वला होने से पूर्व स्त्री साक्षात देवी होती है और जीवन की आगे की वय में उसे देवी के अन्य रूपों के तौर पर मान्यता मिली हुई है। इसी देवी से उम्मीद होती है कि यह पुरुष की रक्षा करेगी। पति-पत्नी के साथ और माता-पिता अपने पुत्र के साथ विभिन्न संस्कारों से एक दूसरे से जुड़े होते हैं, लेकिन सहोदरों में बहिन को किसी और से संस्कारवश जुड़ना होता है, ऐसे में बहिन के पास केवल एक ही साधन है कि वह अपने भाई की रक्षा कर सके, वह है रक्षा सूत्र। वह अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधती है, ताकि किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थिति में भाई की रक्षा हो सके।
वास्तव में यह रक्षा बंधन नहीं, बल्कि रक्षा सूत्र का कवच है, यहां भाई किसी वचन में बंधा हुआ नहीं है, बल्कि बहिन रक्षा सूत्र बांधने के साथ खुद को भाई की रक्षा की चिंता से मुक्त करती है और भाई को विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए अधिक सक्षम बनाती है।
बहिन की रक्षा वाला सूत्र हमें मुगलकाल से मिलता है, कहानी के अनुसार चित्तौड़ की रानी कर्णावती अपनी रक्षा के लिए हुंमायू को राखी भेजती है, लेकिन हुंमायू समय पर पहुंचकर अपनी धर्म बहिन को बचा नहीं पाता है। इस कहानी का प्रचार इतना अधिक है कि रक्षा सूत्र का मूल स्वभाव और भावना दोनों सिरे से बदल गई हैं।
जब एक सनातनी देवता के सामने सिर झुकाता है, तो पुजारी उसके हाथ पर जो मौली बांधता है, वह वही रक्षा सूत्र है, जो देवी के रूप में बहिन अपने भाई के हाथ में बांधती है, उत्सवप्रिया नारी ने सामान्य मौली की बजाय रक्षासूत्र को रंगबिरंगी राखी में तब्दील कर दिया है।