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शनि की दशा का प्रभाव और फल (Shani Mahadasha Effects and Remedy)

शनि की दशा का प्रभाव और फल (Shani Mahadasha Effects and Remedy)
शनि की दशा का प्रभाव और फल (Shani Mahadasha Effects and Remedy)

शनि की महादशा का प्रभाव और फल
(Shani Mahadasha Effects and Remedy)

एक वरिष्‍ठ ज्‍योतिषी मुझसे मिलने आए, कुछ देर की बातचीत के बाद एक पुराने जज साहब की चर्चा हुई, कि उनकी वृषभ लग्‍न की कुण्‍डली है और शनि की महादशा शुरू ही हुई है कि उनका खराब समय शुरू हो गया है, पूर्व में जहां वे ऊंचे पद पर थे, वहीं अब उन्‍हें सजा के तौर पर निचले पद पर बैठा दिया गया है और प्रमुख शहर से हटाकर किसी छोटे जिले में लगा दिया गया है।

वृषभ और तुला लग्‍न में शनि कारक होता है। लघु पाराशरी सिद्धांत के अनुसार किसी भी कुण्‍डली में एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति ग्रह उस कुण्‍डली का कारक ग्रह होता है। दूसरी ओर लीगल सेक्‍शन में शनि ही ऐसा ग्रह होता है जो कि लाभदायक सिद्ध होता है। गुरू की दशा के दौरान सभी ज्‍योतिषियों ने एक बात प्रमुखता से उन्‍हें कही थी कि शनि की महादशा में आपका सर्वश्रेष्‍ठ समय होगा। हालांकि उनका रिटायरमेंट भी शनि की महादशा में ही होना था, लेकिन करीब आठ नौ साल इस दशा के दौरान ही उन्‍हें गुजारने थे। जज साहब ज्‍योतिष के शौकीन, खुद भी पढ़ने वाले और जगह जगह ज्‍योतिषियों को कुण्‍डली दिखाने के भी शौकीन। इसी से जज साहब उम्‍मीद लगाए हुए थे कि अधिकांश ड्यू प्रमोशंस उन्‍हें शनि की महादशा लगने के साथ ही मिलने शुरू हो जाएंगे।

शनि की दशा का प्रभाव और फल (Shani Mahadasha Effects and Remedy)
शनि की दशा का प्रभाव और फल (Shani Mahadasha Effects and Remedy)

यानी जज साहब की कुण्‍डली में जिंदगी का सबसे अच्‍छा समय जिस समय शुरू होना था, ठीक उसी समय प्रथम ग्रासे मक्षिका पात अर्थात पहले ही कौर में मक्‍खी आ गिरी थी। यह न तो उनके द्वारा पूर्व में कंसल्‍ट किए गए ज्‍योतिषीय भांप पाए और न ही खुद जज साहब को किसी प्रकार का अनुमान हुआ कि ऐसा कैसे हुआ?

राहु की दशा भोगी तब भी ऐसा समय नहीं आया था, ऐसा मान भंग नहीं हुआ था। जज साहब एक तरफ ज्‍योतिष से नाराज तो दूसरी तरफ ज्‍योतिषियों से।

वरिष्‍ठ ज्‍योतिषी महोदय ने जैसे ही मुझे कुण्‍डली दिखाई और मैंने कहा कि अभी इनका बहुत खराब समय चल रहा है, तो उन्‍हें लगा कि मैं ट्रिक शॉट कर रहा हूं, अगर किसी का समय अच्‍छा चल रहा हो तो वह कुण्‍डली दिखाने के लिए लाएगा ही क्‍यों, इस पर मैंने स्‍पष्‍ट किया कि शनि की महादशा में शनि का अंतर छिद्र दशा की तरह होता है। इस अवस्‍था में अधिकांश जातकों को खराब समय ही भोगना होता है। हालांकि बहुत बड़े नुकसान अब तक मैंने नहीं देखे हैं, लेकिन साख और व्‍यापार में कुछ नुकसान अवश्‍य आता है।

ऐसा क्‍यों होता है ?

यह समझने के लिए हमें पहले शनि से ठीक पूर्व आई गुरु की दशा की प्रकृति और खुद शनि की प्रकृति को समझना होगा। वृषभ लग्‍न में गुरू अकारक होता है, लेकिन अपनी पूर्ववर्ती राहु की दशा की तुलना में कहीं अधिक बेहतर होता है। चूंकि वृषभ और तुला लग्‍नों में गुरू अकारक होता है, ऐसे में यह जातक के विकास में तो योगदान देता है, लेकिन अपेक्षित स्थिरता नहीं आ पाती है। ऐसे में जातक आगे बढ़ते हुए काफी सारे लूप होल्‍स छोड़ता हुआ चलता है।

गुरू की दशा के आखिर में आती है गुरू में राहु की अंतरदशा, अगर राहु की स्थिति अच्‍छी हो तो यह अंतरदशा अच्‍छी जाती है, वरना गुरू की महादशा का सबसे खराब दौर सिद्ध होता है। हम अगर यह मान लें कि राहु अपेक्षाकृत ठीक है तो गुरू की दशा अंत तक कमोबेश विकास वाली और अनिश्चिताएं बढ़ाने वाली सिद्ध होती है। इसके ठीक बाद आती है शनि की महादशा।

अब गौर करें तो वृषभ और तुला लग्‍नों में शनि की दशा चूंकि कारक है, अत: यह स्थिरता देगी, जातक को कुछ धीमा कर देगी, जहां बिना व्‍यवस्‍था के काम चल रहा है, वहां व्‍यवस्‍थाएं बनाएगी, जो काम अब तक छूटे हुए चल रहे हैं, उन्‍हें पूरा करने का दबाव बनाएगी।

कुल मिलाकर शनि अपनी प्रकृति में आने लगता है। यहां शनि जितना अधिक शक्तिशाली होगा, व्‍यवस्‍था उतनी तेजी से बनेगी, इसका परिणाम यह होता है कि पहले तो विकास बाधित होता है, जो गुरू की दशा के दौरान चल रहा होता है। चाहे वह सीखने के रूप में हो, चाहे वह सोशल कनेक्‍शन के कारण हो या फिर घूमने फिरने के कारण। पहले से चल रही व्‍यवस्‍था और स्थितियां बदलती हैं। गुरू की महादशा के दौरान जिस चिंतारहित मुक्‍त विचरण का दौर चल रहा होता है, शनि के आते ही वह दौर बदल जाता है। परिणाम यह होता है कि जातक खुद को फंसा हुआ महसूस करने लगता है।

वास्‍तव में यह Blessing in disguise है। यानी दुरावस्‍था में सौभाग्‍य। सोलह साल से चल रही व्‍यवस्‍था में हो रहा स्‍थाई परिवर्तन जातक के लिए कभी अनुकूल तो कभी पीड़ादायी सिद्ध होता है। यही कारण है कि शनि की महादशा में शनि का अंतर आने के साथ ही जातक को एकबारगी लगता है कि कहीं खराब समय तो नहीं शुरू हो गया है। इसी कारण शनि की महादशा में शनि के अंतर को छिद्र दशा कहा गया है।

छिद्र दशा का अर्थ है एक महादशा से दूसरी महादशा में ट्रांजिशन। इस दौर में जातक सहज नहीं रह पाता है। पहले से बनाए सिस्‍टम कई बार ताश के पत्‍तों के महल की तरह ढहने लगते हैं। इससे परेशान जातक यह तय नहीं कर पाता है कि समय अच्‍छा आया है या खराब।

अब जज साहब की कुण्‍डली में शनि ने भी कुछ ऐसी ही भूमिका बनाई। हवा में उड़ रहे जज साहब को न सिर्फ छोटी कुर्सी दी गई, बल्कि उनके उच्‍च पदों पर बने हुए पुराने कनेक्‍शन भी दांव पर लग गए। परिणाम यह हुआ कि जज साहब खुद को अकेला महसूस करने लगे। अकेला महसूस करना वास्‍तव में यहां पर आत्‍मनिर्भर होने की पहली सीढ़ी साबित होता है।

हालांकि इस केस में मैंने प्रश्‍न कुण्‍डली से उनकी स्थिति का जायजा लिया और उनके पुन: पुराने पद पर बहाल होने की तारीख और ज्‍वाइन करने की तारीख तक निकाल दी, जो कुछ ही महीने में सटीक साबित हुई। यह मामला न केवल ज्‍योतिषी के रूप में मेरी साख को बहुत तेजी से ऊंचाई देने वाला साबित हुआ, बल्कि खुद मेरे कांफिडेंस लेवल को भी बढ़ाने वाला सिद्ध हुआ। मामले में शामिल जज साहब और वरिष्‍ठ ज्‍योतिषी महोदय दोनों ही बहुत ही कड़े मापदण्‍डों वाले जीव रहे हैं, वहां मेरी साख भी दांव पर ही लगी थी।

खैर, सफल केस के इतर हम फिर से शनि की स्थिति पर आते हैं, यहां शनि ने एक बारगी जज साहब को गिराया और गुरू की दशा में जो हेकड़ी उन्‍होंने पाल ली थी, वह वापस धरातल पर आ गई। मानसिक और सामाजिक स्‍थल पर धरातल देख लेने के बाद जज साहब एक बार फिर से पुराने पद पर पहुंच गए और अभी सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं।

लगभग यही स्थिति व्‍यापार के मामले में भी होती है। सर्विस सेक्‍टर के लोगों को गुरू की महादशा से शनि की महादशा में संचरण के दौरान सर्वाधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्‍योंकि पहले जो सेवा कार्य व्‍यवहार और मुस्‍कुराहट से मिल रहा होता है, बाद में वही काम जिम्‍मेदारी और शिकायतों के निपटारे की ओर बढ़ने लगता है। ट्रेडिंग से जुड़े लोगों के पुराने संबंध खत्‍म होते हैं और नए स्‍थाई प्रगाढ़ संबंध बनते हैं और उत्‍पादन क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए उत्‍पादन इकाइयों में स्‍थाई और बड़े परिवर्तन का दबाव सामने आता है।

ये सभी परिवर्तन शुरू में पीड़ादायी सिद्ध होते हैं, लेकिन आगे की 19 साल की शनि की महादशा ज्‍यों ज्‍यों आगे बढ़ती चली जाती है, समय बताता है कि शनि की शुरूआती दौर में किए गए बड़े परिवर्तन ही उन्‍हें स्‍थाई उन्‍नति और स्‍थाई लाभ दिला रहे हैं।

वृषभ और तुला लग्‍नों में तो शनि सदैव ही अनुकूल परिणाम देता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, लाभदायक ही सिद्ध होता है। बहुत कम योग अथवा बहुत कम ऐसी स्थितियां होती हैं कि शनि नुकसान कर जाए। परिणाम में जल्‍दी अथवा देरी हो सकती है, लेकिन अनुकूल परिणाम मिलेंगे जरूर।

मकर और कुंभ लग्‍नों के लिए शनि चूंकि लग्‍नेश होता है, ऐसे में शनि को परिणाम देने के लिए शनि की महादशा में शुक्र की अंतरदशा आने का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे जातकों की कुण्‍डली में शनि की महादशा में शुक्र का अंतर जातकों के जीवन स्‍तर तक को बदलने वाला सिद्ध होता है।

अन्‍य शेष सभी लग्‍नों के लिए शनि की महादशा मिश्रित फलदाई साबित होती है। शनि में शनि तो पीड़ादायी अथवा खराब जाएगा ही, संबंधित लग्‍न के कारक ग्रह एवं उसके शनि से संबंध के अनुरूप ही अंतरदशा का परिणाम आता है, ऐसे में यह पूरी तरह कुण्‍डली देखकर ही तय किया जा सकता है कि मिश्रित फलों में अनुकूल फल कब और प्रतिकूल फल कब मिलेंगे।


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