Home Astrology Kundli Horoscope रक्षाबंधन : रक्षा का सूत्र और रक्षा का वचन

रक्षाबंधन : रक्षा का सूत्र और रक्षा का वचन

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रक्षाबंधन अथवा राखी का त्‍योहार आज मुख्‍य रूप से भाई बहन के बीच का त्‍योहार बन गया है, लेकिन अपने वास्‍तविक स्‍वरूप में यह ऐसा नहीं है। पहली बार देवासुर संग्राम में जा रहे इंद्र की रक्षा के लिए उनकी पत्‍नी शचि ने इंद्र के हाथ में रक्षासूत्र बांधा था। वही रक्षासूत्र कालांतर में बहनें अपने भाई के हाथ में भी बांधने लगी, इसके पीछे बहनों की मंशा यही होती है कि हमारा भाई सुरक्षित रहे। एक ओर यह रक्षा सूत्र है तो दूसरी ओर बहनों को भाई से रक्षा का वचन भी मिलता है।

सनातन बोध में पुरुष कर्म और पुरुष का वचन ही अंतिम सत्‍य है तो स्‍त्री के पास भाव और भाव से उपजी वह दिव्‍य ऊर्जा है, जिससे वह सृष्टि के कल्‍याण का मार्ग प्रशस्‍त करती है। रक्षाबंधन के दिन बहन भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हुए यह सुनिश्चित करती है कि सालभर भाई पर किसी प्रकार की विपदा न आए। यह क्रम इस प्रकार होता है कि वह भाई के माथे पर कुंमकुंम और अक्षत का तिलक लगाती है, हाथ पर रक्षासूत्र बांधती है और मुंह में गुड़ की डली रखकर क्रिया को पूरा करती है। बदले में भाई अपने मन और वचन से आवश्‍यकता होने पर बहन की रक्षा का वचन देता है।

यह रक्षासूत्र केवल भाई बहन अथवा स्‍त्री पुरुष के लिए ही नहीं है, इसी सूत्र के जरिए सांसारिकता और अध्‍यात्‍म भी आपस में जुड़ते हैं। दाता और आश्रित भी आपस में जुड़ते हैं, ब्राह्मण और जजमान भी आपस में जुड़ते हैं और यहां तक कि लक्ष्‍मी और बलि भी आपस में जुड़ जाते हैं।

कथा के अनुसार राजा बलि ने नारायण श्री हरि को अपनी भक्ति के बल पर रसातल में अपने पाश में बांध लिया था। कोई तरीका नहीं था कि श्रीहरि उनके छूट पाएं। ऐसे में लक्ष्‍मी पाताल लोक जाती हैं और महाबलि के हाथ में रक्षासूत्र बांधकर बदले में अपने पति की स्‍वतंत्रता मांगती है। रक्षासूत्र में बंधे बलि अपनी बहिन का मान रखने के लिए श्रीहरि को मुक्‍त कर देते हैं।

इसी प्रकार एक श्रावणी, एक ब्राह्मण अपने जजमान की कलाई पर सूत्र बांधते हुए कहते हैं “येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥“ अर्थात दानवीर महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षासूत्र तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। भाई बहिन के बीच के इस बंधन में रक्षासूत्र बांधने के साथ ही बहिन अपने भाई को सुरक्षित बना देती है, वहीं भाई बदले में रक्षा का वचन देकर उसे निभाने का प्रयास करता है।

भद्रा और रक्षाबंधन

श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है, इसी दिन सूर्य और चंद्रमा ऐसे कोण पर होते हैं जो सामान्‍य तौर पर भद्रा योग का निर्माण करता है। भद्रा मुहूर्त का उपयोग सामान्‍य तौर पर उग्र कार्यों का संपादन करने के लिए किया जाता है। ऐसे में रक्षाबंधन जैसे शुभ कार्य के लिए भद्रा को टालने का प्रयास किया जाता है। इसी कारण रक्षाबंधन का मुहूर्त हर वर्ष लिया जाता है। अगर मुहूर्त टल भी जाए तो भी अधिकांश मामलों में भाई के रक्षासूत्र बांधा जा सकता है। भद्रा तीन स्‍थानों पर निवास करती है। अगर भद्रा का निवास आकाश और पाताल में हो तो मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं, पूरा दिन ही श्रेष्‍ठ होता है, लेकिन अगर भद्रा का निवास पृथ्‍वी पर हो तो मुहूर्त का ध्‍यान रखा जाना चाहिए।

यह रक्षा सूत्र सामान्‍य तौर पर सूत का धागा होता है। बच्‍चों को रंगबिरंगे धागे अधिक पसंद होते हैं। बहिनें भी अपने भाइयों के लिए बेहतर से बेहतर सूत्र का इस्‍तेमाल करना चाहती हैं, ऐसे में जहां सामान्‍य सूत्र का धागा सामान्‍य कॉटन या सिल्‍क का होता था, वहीं कालांतर में इस पर रंगबिरंगे उपादान जुड़ने लगे। बाद में कार्टून कैरेक्‍टर और पता नहीं क्‍या क्‍या जुड़ता गया। इन सालों में देख रहा हूं कि मैटल की राखियां तक आने लगी हैं। बाजार जो न करवा दे।

प्रेम से बांधे गए किसी भी उपादान में कोई कमी नहीं हो सकती, फिर भी मेरा मानना है कि सादा मौली का धागा हो या रेशमी डोर की फैंसी राखी, सभी उपादान एक ही बात तय करेंगे कि बहनों के भाई सुरक्षित रहें और हर रक्षासूत्र को धारण करने वाले भाई का एक ही मन होगा कि किसी भी सूरत में बहिन को कष्‍ट से बचाकर रखूं।

सभी भाइयों को रक्षासूत्र मिलने की और सभी बहिनों को रक्षा का वचन मिलने की शुभकामनाएं…