जातक कुण्डली के अनुसार हर जातक का अनुकूल देवता या कहें ईष्ट होता है। इस ईष्ट का निर्धारण करने की पुरानी विधि अवकहड़ा चक्र रही है। इसके अनुसार यह शुरू में ही तय कर दिया जाता है कि जातक किस देवता की आराधना करेगा। समय के अनुसार देखा गया है कि यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे में अनुकूल देवता का निर्धारण करने के लिए कई सामानान्तर विधियों का इस्तेमाल किया जाता है।
पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार हर लग्न के अनुसार जातक के लिए दो प्रकार के ग्रह अनुकूल होते हैं। जातक कुण्डली का लग्नाधिपति और उस कुण्डली का कारक ग्रह। इसके अनुसार हर जातक के इन दो ग्रहों से संबंधित देवताओं के उपचार हमेशा सहायक सिद्ध होते हैं।
कृष्णामूर्ति पद्धति के अनुसार उन सभी ग्रहों से अनुकूलता का लाभ लिया जा सकता है, जिन ग्रहों का संबंध लग्न अथवा नवम भाव से हो। कृष्णामूर्ति के अनुसार नवम या भाग्य भाव ही वह भाव है, जहां से ग्रहों के स्वभाव में परिवर्तन की गुंजाइश मिल सकती है। ऐसे में अगर किसी जातक की लग्न कुण्डली के कारक ग्रह का संबंध अगर लग्न अथवा नवम भाव से न हो तो केपी के अनुसार उसका उपचार नहीं किया जा सकता है।
लाल किताब के अनुसार जिस ग्रह से प्रतिकूलता मिल रही हो उस ग्रह अथवा उन ग्रहों के समुच्चय का उपचार किया जा सकता है। लाल किताब चूंकि पारंपरिक ज्योतिष के मूल सिद्धांतों से कुछ हटकर है, ऐसे में लाल किताब में दिए गए अधिकांश उपचारों का कोई तार्किक कारण नहीं मिल पाता है। वह होम्योपैथी मॉड्यूल की तरह काम करती है, रोग का लक्षण दिखाई देने पर लक्षण का ईलाज कर दिया जाता है, उसी प्रकार खराब ग्रहों के कारण जीवन में जो कठिनाई दिखाई दे रही है, उसके अनुसार उस समस्या के समाधान के लिए ठीक वही उपचार बता दिया जाता है। यही कारण है कि लाल किताब में लग्न कुण्डली के अनुसार अलग और वर्ष कुण्डली के अनुसार अलग अलग उपचार सामने आते हैं। इससे कुछ हद तक कंफ्यूजन बढ़ता है। कम से कम किसी एक विशिष्ट ईष्टदेव की साधना का मार्ग तो अवरुद्ध हो ही जाता है।
मेरे अनुभव के अनुसार उपचारों के लिए उपरोक्त में से अधिकांश विधियों को अगर ज्यों का त्यों इस्तेमाल करने का प्रयास किया जाए, कहीं एक विधि तो कहीं दूसरी विधि पूरी तरह फेल नजर आती है। इसके भी कई कारण हैं। पहला तो यह कि जातक अपने किसी विशेष सवाल अथवा अपनी किसी विशेष परिस्थिति को लेकर ही ज्योतिषी के पास आता है। उस समय जातक का आशय अपनी पूरी कुण्डली के विश्लेषण के बजाय केवल अपने तात्कालिक कार्य को लेकर केन्द्रित होता है।
कई बार ऐसे भी जातक होते हैं जो किसी दशा विशेष में पीड़ादायी स्थिति में फंस जाते हैं। चाहे वह मानसिक पीड़ा हो, आर्थिक हो या शारीरिक, कुल मिलाकर वह दौर जातक के लिए बहुत खराब होता है। यहां हमें देखना होता है कि वर्तमान दशा के अनुसार कौनसे देवता की अराधना जातक के लिए सर्वाधिक फलदायी साबित हो सकती है।
ऐसे में न केवल जातक कुण्डली का पारंपरिक ज्योतिष के दृष्टिकोण से विश्लेषण कर ज्ञात करना होता है कि कारक ग्रह कौनसे हैं और उनमें से प्रभाव बढ़ाने वाले ग्रह कौनसे हैं और किन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करना है, बल्कि यह भी निर्णय करना होता है कि वर्तमान में चल रही दशा के अनुसार कौनसा ग्रह सर्वाधिक अनुकूल अथवा प्रतिकूल है।
अगर आपकी दशा सामान्य है और एक बार उपचार बताने के बाद उसके लिए फॉलोअप की जरूरत नहीं है तो इसके लिए आपको 1100 रुपए फीस जमा करानी होती है, वहीं शनि, राहु अथवा मारक दशा के मामले में न केवल आपको उपचार जानने होते हैं, बल्कि फीडबैक देकर ज्योतिषी का फॉलोअप भी लेना होता है। ऐसी स्थिति में आपको 5100 रुपए फीस देनी होती है। पहली बार आपको 43 दिन में और दूसरी बार 3 महीने बाद फीडबैक देकर फॉलोअप लेना होता है।
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