कई बार जब मैं यह बात कहता हूं, और ज्योतिषी की हैसियत बनाकर रखने के बाद कहता हूं तो बहुत से लोगों को यह विज्ञान विरोधी लगता है, लेकिन यह हकीकत है। हमारे देश में विकास की बयार के साथ यह कुंठा बहुत गहरे तक धंस गई (या धंसा दी गई, इस बहस में उलझने का अभी वक्त नहीं है)। बहुत से ज्योतिषी भी इसी ट्रैप का शिकार हैं। वे लगातार ज्योतिष को विज्ञान साबित करने की कोशिश करते नजर आते हैं। मेरी स्पष्ट धारणा है कि ज्योतिषी किसी कोण से विज्ञान नहीं है (astrology is not science)।
ज्योतिष के दो भाग हैं। एक गणित और दूसरा फलित। गणित भाग इतना समृद्ध है कि इस स्तर का विज्ञान आधारित गणित विकसित करने में जब पश्चिम के ज्योतिषी लगे थे, तब हम सूर्य और चंद्रमा के संपात कोणों से बनने वाले दो बिंदुओं को राहू और केतू की उपाधि देकर ग्रहण की गणनाएं पेश कर चुके थे। सैकड़ों साल हो गए, हमारे पंचांग पुरानी पद्धतियों से गणना कर ग्रहण का इतना सटीक फलादेश करते हैं कि वैज्ञानिक भी दंग रह जाते हैं।
जब विज्ञान, जो कि पोप के साथ लड़कर यह सिद्ध करने में लगा था कि पृथ्वी सपाट नहीं गोल है, तब हमारे ऋषि कॉर्डिनेट के आधार पर लग्न कुण्डली बना रहे थे। कॉर्डिनेट तभी आ सकते हैं, जब पता हो कि पृथ्वी का मूवमेंट क्या है और इसका आकार क्या है।
समय की गणना भी पश्चिमी ज्योतिषियों के लिए हमेशा तनाव का कारण रही है, उन्होंने एक कलेण्डर बनाया, और वह भी आज तक सही काम नहीं कर पा रहा। अगर आपको विश्वास न हो तो ग्रिगेरियन कलेण्डर में अब तक हुए बदलावों के बारे विकिपीडिया पर पढ़ लें, अनुमान हो जाएगा।यह तो रही गणित की बात। मौजूदा विज्ञान से कहीं आगे और कहीं समृद्ध।
अब बात करते हैं फलित की और इसकी वैज्ञानिकता की। तो पहले अपने दिमाग से यह बात निकाल दीजिए कि फलित ज्योतिषी किसी भी कोण से वैज्ञानिक है। दरअसल विज्ञान अभी उस स्तर पर पहुंचा भी नहीं है, जिस स्तर पर शास्त्र कभी पहुंचे थे। यह तो हमारा दुर्भाग्य है कि सैकड़ों साल की गुलामी और इस विषय पर नियमित शोधों के अभाव ने हमें पाताल में पहुंचा दिया है, लेकिन ऊंट बैठ भी जाए तो कुत्ते से ऊंचा होता है, उसी तर्ज पर फलित ज्योतिष के अच्छे विद्वान वैज्ञानिकों को धता बताते हुए इस प्रकार के फलादेश करते हैं कि वैज्ञानिक आखिर अंधेरें में छिपता छिपाता, अपनी पहचान बचाता हुआ ज्योतिषी के कमरे में प्रवेश करता है और अपना भविष्य दिखाकर आता है।
खुद मेरे पास आने वाले विज्ञानवादियों में से आधे ऐसे होते हैं जो बैठते ही कहते हैं कि उनका ज्योतिष में विश्वास नहीं है। मैं ताड़ जाता हूं कि इस बंदे से फीस निकालना अपेक्षाकृत आसान होगा।
फलित को विज्ञान सिद्ध करने की जरूरत ही कहां है।
कौन कहता है कि जो विषय विज्ञान नहीं है वह सही नहीं है।
क्या कला विज्ञान है, नहीं है फिर भी अपने आप में विषय है
क्या इतिहास विज्ञान है, नहीं है, फिर भी अपने आप में विषय है
क्या दर्शन विज्ञान है, नहीं है, फिर भी अपने आप में विषय है
इसी तरह ज्योतिष भी विज्ञान नहीं है, लेकिन अपने आप में विषय है। अब समझने वाले कुंठाग्रस्त लोगों की समस्या यह है कि उनके दिमाग में बक्से बने हुए हैं। कला, विज्ञान, साहित्य, दर्शन, इतिहास आदि के, अगर कोई विषय इनमें से किसी बक्से में फिट नहीं हो पा रहा है, तो उनका मानना है कि यह विषय है ही नहीं। इसे नकार दो, “एक नन्ना सौ दुख हरे” न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
दूसरे स्तर पर मुझे विज्ञानवादियों का दंभ दिखाई देता है। ज्योतिष ऐसा विषय है कि हर किसी की पकड़ में नहीं आता है। गणित तो वे फिर भी थोड़ी बहुत पकड़ लेते हैं, अपने विज्ञान का सहारा लेकर, लेकिन फलित सीधे उनके सिर के ऊपर से जाती है, क्योंकि इसके लिए आउट ऑफ द बॉक्स सोचना पड़ता है, यह हर किसी के बूते की बात नहीं।
चूंकि इसके लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं है, कोई संगठन नहीं है जो आपको सिखा दे कि फलित के फलादेश कैसे निकाले जाएं, तो यह पूरी तरह ईश्वर की कृपा पर ही निर्भर है कि आप ऐसे ज्योतिषियों के सानिध्य में आएं, जिनसे आपकी लय मिलती हो, और आप ज्योतिष से फलादेश करना सीख जाएं।
आखिर में जब आप फलादेश करने लगते हैं और वे सटीक पड़ने लगते हैं, तो जातक के साथ आश्चर्यचकित होने वाले लोगों में आप खुद भी शामिल होते हैं। ऐसे में कुछ दंभी विज्ञानी जो यह समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी सीखा और किया जासकता है, उनके अहम् को तगड़ी चोट पड़ती है। और वह इस विषय को सिरे से नकार कर हल्का हो जाता है।