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व्‍यवसाय का चुनाव : ज्‍योतिषीय दृष्टिकोण

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किसी भी अभिभावक के लिए यह बड़ी चिंता होती है कि कि उनकी संतान भविष्‍य में अपनी रोजी रोटी कैसे चलाएगी, अगर नौकरी लगने की संभावना हो तो अधिकांश अभिभाव निश्चिंत हो जाते हैं कि ठीक है, एक बार नौकरी लग जाएगा या नौकरी लग जाएगी तो जिंदगी कट ही जाएगी। नौकरी में प्रोफेशन के चुनाव पर हम फिर किसी और पोस्‍ट में बात करेंगे, लेकिन असली समस्‍या तब होती है जब किसी के पास व्‍यवसाय का पारिवारिक आधार न हो और उसकी कुण्‍डली कह रही हो कि वह नौकरी नहीं करेगा, आगे व्‍यवसाय में जाएगा।

तब पहला सवाल यही आता है कि जातक क्‍या व्‍यवसाय करेगा। जैसा कि परिस्थितियों में पिछली एक सदी में तेजी से बदलाव आया है, उसके अनुसार किसी भी जातक के लिए किसी एक व्‍यवसाय का चुनाव कर देना बहुत ही कठिन बात है।

एक जातक प्रिंट में इस्‍तेमाल होने वाली स्‍याही के लिए विशेष प्रकार का कैमिकल बनाता है। यह कैमिकल केवल वही व्‍यक्ति बनाता है, देश को सभी प्रमुख स्‍याही बनाने वालों को उसी से वह कैमिकल लेना पड़ता है, या फिर विदेश से मंगवाना पड़ता है। उसी से साल के करोड़ों रुपए कमा लेता है। अपनी तरह के विशिष्‍ट व्‍यवसाय के बावजूद वह जातक दशकों से अपने धंधे में टिका हुआ है।

एक अन्‍य जातक बहुत बड़े व्‍यवसायी परिवार से था, धंधा अच्‍छा था, लेकिन उसी धंधे के भरोसे इतने अधिक लोग थे, कि धंधे में और विकास संभव नहीं था, ऐसे में जातक ने टिकट बुकिंग का काम शुरू किया और अपने क्‍लाइंट्स को ऑन डिमांड न केवल टिकट बनाकर देता, बल्कि शिड्यूल के अनुसार उनके घर तक टिकट पहुंचाता, इसकी एवज में कुछ अधिक राशि वसूल करता, तो उसके ग्राहक खुशी खुशी दे देते, आज उस बंदे के पास आठ लड़कों की टीम है और नए ग्राहक लेने से वह कतराता है, जो धंधा बढ़़ा है, वही संभल नहीं रहा।

एक जातक अपने पारिवारिक मिठाई के धंधे में करोड़ो कमाए और अधिक कमाने के चक्‍कर में कमोडिटी बाजार में ट्रेडिंग करने लगा, शीघ्र ही गांठ का पैसा खत्‍म हो गया, फिर दुकान भी बिक गई, इन दिनों वह खाली है, कुछ नहीं करता, गहन डिप्रेशन में चला गया है, परिवार की साख इतनी है कि अब भी दुकान खोल ले तो चल पड़ेगी, लेकिन जातक कुछ नहीं करता।

एक जातक ने एमबीए किया और शेयर बाजार से जुड़ी फर्म में नौकरी करने लगा, कुछ साल नौकरी करने के बाद उसने खुद की कंसल्‍टेंसी की फर्म खोल ली और आज सफलतापूर्वक कंसल्‍टेंसी बेच रहा है। बाजार से खुद भी कमाता है और अपने ग्राहकों से भी कमाता है। उसकी कमाई का अधिकांश भाग कंसल्‍टेंसी से ही आता है।

एक बंदा बीएससी करता है, फिर एमबीबीएस करता है, चिकित्‍सक बनता है, फिर आईएएस की तैयारी करता है, आईएएस एलाइड में चयन होता है, सात साल नौकरी करने के बाद नौकरी छोड़ समाचारपत्र शुरू करता है, अपना घर चलाने के लिए कपड़ों का शोरूम चलाता है, शौक से ट्यूशन पढ़ाता है और साथ ही सामाजिक सरोकार समूह बनाता है, अंतत: राजनीतिक पार्टी का गठन करता है।

इसी तरह एक बंदा अपने चिकित्‍सक पिता की रसूख का इस्‍तेमाल करते हुए मेडिकल रिप्रजेंटेटिव बन जाता है, सालों तक कभी एक कंपनी तो कभी दूसरी कंपनी में नौकरी करता है, कभी एथिकल तो कभी प्रोपेगंडा कंपनी के लिए काम करता है, लेकिन जीवन में कभी धन के प्रति स्थिर नहीं हो पाता है। जिंदगी के पचासबावन साल इसी प्रकार निकाल लेता है, इसके बाद अचानक जमीनों में बूम आता है और अपने पिछले संपर्क का इस्‍तेमाल कर जमीन की खरीद फरोख्‍त में जातक करोड़ों रुपए दो साल की अवधि में कमा लेता है।

एक वेटेरनरी डॉक्‍टर सरकारी नौकरी करता है, लेकिन कभी अपने काम पर नहीं जाता, हालांकि सरकार से मिली तनख्‍वाह उठाता है, साथ ही अपनी प्राइवेट लैबोरेट्री चलाता है, इसके लिए एक चिकित्‍सक को नौकरी पर रख रखा है जो जांच रिपोर्ट पर हस्‍ताक्षर करता है और लैब की बड़ी टीम जांच रिपोर्ट तैयार करती है। न उसे नौकरी की जरूरत है, न नौकरी पर जाने की। नौकरी के कई गुना अधिक कमाई वह अपनी लैब से करता है।

ऐसे हजारों उदाहरण मैंने अपनी जिंदगी में देखे हैं, जब जातक की पढ़ाई, उसकी नौकरी और उसका व्‍यवसाय तक शुरूआती दौर में अलग होता है और आगे बढ़ते बढ़ते परिवर्तन होता चला जाता है। कुछ लोगों के लिए यह परिवर्तन सुखद रहा है तो कुछ के लिए पीड़ादायी, लेकिन एक बात तय रही कि जहां से शुरूआती दौर में प्रोजेक्‍शन दिखाई देता है, अंत में उससे कहीं अधिक जुदा, कहीं अधिक कंट्रास्‍ट लिए परिणाम दिखाई देते हैं।

यही नहीं अगर किसी जातक को कहा जाए कि वह लोहे से संबंधित काम करेगा तो यह लोहे से संबंधित काम भेल से लेकर रेलवे तक और लुहार से लेकर सिविल इंजीनियर तक कहीं भी हो सकता है। अगर किसी को कहा जाए कि वह अधिकारी बनेगा तो वह सुपरवाइजर से लेकर आईएएस तक कुछ भी हो सकता है। अगर किसी जातक को कहा जाए कि वह खरीद फरोख्‍त करेगा तो साबुनतेल से लेकर हथियारों की खरीद फरोख्‍त तक कुछ भी हो सकता है।

इतने अधिक आयाम हैं कि किसी एक आयाम पर अंगुलि रख देना न तो व्‍यवहारिक रूप से संभव है न नैतिक रूप से सही। वास्‍तव में इस प्रकार की वोकेशनल कंसल्‍टेंसी कर रहे ज्‍योतिषी खुद भी अंधेरे में रहते हैं और अपने जातक की संभावनाओं की भी हत्‍या कर देते हैं। ज्‍योतिषी को अपने विषय और उपलब्‍ध संभावनाअें के बीच उचित संतुलन बनाते हुए कंसल्‍टेंसी करनी चाहिए।

आज के दौर में जब नित निए बाजार के उपक्रम सामने आ रहे हों तो ज्‍योतिषी को किसी भी सूरत में जातक को यह निर्देशित नहीं करना चाहिए कि वह अमुक क्षेत्र में जाए और वही निश्चित काम करे। केवल बाजार ही नहीं, ज्‍योतिषीय योग भी अपनी भूमिका बदल रहे हैं। पूर्व में राजयोग देखकर कहा जाता था कि जातक सरकारी नौकरी करेगा, लेकिन अब मुझे मिलने वाले अधिकांश राजयोग वाले जातक कॉर्पोरेट व्‍यवसाय से जुड़े मिल रहे हैं । सरकारी नौकरियों में ऐसे लोग भी मिल रहे हैं जिनकी कुण्‍डली में स्‍पष्‍ट राजयोग नहीं है और वे नौकरी में भी वही पीड़ा भोग रहे हैं जैसी कोई पुराने जमाने की लाला कंपनी में कर्मचारी भोगते थे। ऐसे जातकों को कभी अनुकूल अधिकारी नहीं मिलते हैं।

अब ज्‍योतिषी जातक की मदद किस प्रकार कर सकता है

मैंने अपने स्‍तर पर जातक की मदद करने के लिए कुछ स्‍थापित नियम बनाए हैं। इसके अनुसार पहले मैं देखता हूं कि जातक की कुण्‍डली में नौकरी का योग है या व्‍यवसाय करने का योग है अथवा नौकरी के साथ व्‍यवसाय करने का योग है। कई बार जातक की कुण्‍डली में व्‍यवसाय का योग नहीं होता, लेकिन अपनी नौकरी के साथ निवेश के जरिए अतिरिक्‍त कमाई की संभावनाएं भी होती हैं, वह भी स्‍पष्‍ट करने का प्रयास करता हूं।

जब यह तय हो जाए कि जातक व्‍यवसाय ही करेगा तो मैं फिर व्‍यवसाय करने वालों को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटता हूं। पहले होते हैं उत्‍पादन करने वाले, इन जातकों को फैक्‍ट्री लगाने, उत्‍पादन इकाई लगाने, हैंडीक्राफ्ट का काम करने अथवा आइसक्रीम या घी तक बनाकर बेचने की सलाह दी है और ये लोग तभी अच्‍छी कमाई कर पाते हैं जब किसी वस्‍तु का उत्‍पादन करते हैं। दूसरे जातक होते हैं ट्रेडिंग वाले, ये लोग अगर उत्‍पादन इकाई लगा भी लें तो इनकी उत्‍पादन इकाई डूब जाती है, ऐसे में इन्‍हें सलाह दी जाती है कि माल कहीं से भी लेकर आओ और चाहे कही भी बेच दो, ट्रेडिंग करो, लेकिन उत्‍पादन मत करो। ये लोग माल को इधर उधर करने में ही अच्‍छी कमाई करते हैं। तीसरे प्रकार के होते हैं सर्विस प्रोवाइडर। ये लोग चाहे उत्‍पादन करें या ट्रेडिंग करें, लेकिन इनका मूल कार्य होता है सेवा देना। जहां इनके ग्राहकों को जिस चीज की जरूरत हो, वह उपलब्‍ध कराकर ट्रेडिंग कर सकते हैं अथवा उत्‍पादन कर दे सकते हैं, लेकिन सेवा की जरूरत के मुताबिक ही इन लोगों को काम मिलता है।

ऐसे में मुझे स्‍पष्‍ट रूप से तीन प्रकार के लोग मिलते हैं उत्‍पादन, ट्रेडिंग और सेवा क्षेत्र वाले। इनमें से एक दूसरे के भीतर बहुत अधिक संक्रमण नहीं किया जा सकता। सेवा वालों की सीमा होती है कि वे केवल सेवा के योग्‍य ट्रेडिंग अथवा उत्‍पादन ही कर पाएंगे। वहीं उत्‍पादन से जुड़े लोग अपने उत्‍पादित माल का सफलतापूर्वक विपणन कर पाते हैं, चाहे ट्रेडिंग करने वालों को दें या सीधे बाजार में रिटेल करें। ट्रेडिंग करने वालों को अगर ट्रेड करने के लिए उत्‍पादन सहायक उपकरण के तौर चाहिए तो बहुत सूक्ष्‍म उत्‍पादन कर पाते हैं और अगर सेवा भी देते हैं तो वह भी ट्रेड के प्रकार की होती है, यानी वे सेवा उपलब्‍ध करवा देते हैं।

किसी जातक की कुण्‍डली में पांचवा भाव उत्‍पादन का होता है। अगर पांचवा भाव अच्‍छा है तभी जातक उत्‍पादन कर सकता है। अगर यह भाव किसी भी कारण से नष्‍ट हो रहा हो तो कितना भी बड़ा व्‍यवसायी क्‍यों न हो, उसकी फैक्‍ट्री एक दिन बंद होकर ही रहती है। यही भाव सट्टा बाजार से जुड़े, कमोडिटी बाजार से जुड़े और शेयर बाजार से जुड़े डे ट्रेडर्स का भी होता है। हालांकि यहां यह उत्‍पादन से नहीं बल्कि हौंसले से जुड़ा होता है। पंचम भाव का संबंध चंद्रमा अथवा मंगल से होने पर जातक सट्टा, शेयर अथवा कमोडिटी का काम करता है। यह पंचम भाव खराब हो तो शुरूआती में अच्‍छा लाभ अर्जित करने वाले सटोरिए भी औंधे मुंह जमीन सूंघ जाते हैं।

जिन जातकों की कुण्‍डली में सप्‍तम और तृतीय भाव मजबूत होता है, इसके साथ ही बुध का सपोर्ट मिलता है, तो जातक अच्‍छे ट्रेडर्स बनते हैं। इन जातकों के लिए एक स्‍थान से माल उठाना और दूसरी जगह निपटा देना, इतना आसान होता है कि इनके माल को छू देने से ही माल छू मंतर हो जाता है। कुछ कोण ऐसे भी होते हैं कि सप्‍तम और तृतीय भाव के साथ बुध का संबंध नवम अथवा द्वादश से जुड़ने पर ट्रेडर विदेशों से सामान मंगवाने अथवा विदेशों में माल सप्‍लाई करने वाला भी बनता है। ऐसे जातकों के दूरस्‍थ स्‍थानों पर संपर्क तेजी से बनते हैं और वे लाभदायी सिद्ध होते हैं।

जिन जातकों की कुण्‍डली में स्‍पष्‍ट रूप से व्‍यापार करने के योग हों साथ ही इनका संबंध छठे भाव से बन रहा हो तो ये जातक सेवा क्षेत्र को प्रमुखता के साथ चुनते हैं। सामान्‍य तौर पर इन जातकों का लग्‍नेश निर्बल होता है। ऐसे में इन्‍हें अपनी कमाई के लिए दूसरों की आवश्‍यकताओं पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे देश में अभी सर्विस इंडस्‍ट्री सर्वोच्‍च है। ऐसे में कह सकते हैं कि तृतीय श्रेणी की यह सेवा अधिकांश युवाओं को प्रभावित कर रही है। यहां सेवा क्षेत्र के कामगारों यानी पेड सर्वेंट्स की बात नहीं हो रही, बल्कि सर्विस इंडस्‍ट्री से जुड़े व्‍यापारियों की बात हो रही है। जो जातक नौकरी करते हैं, उनकी कुण्‍डली में आवश्‍यक रूप से छठा भाव मजबूत होता है, क्‍योंकि यह पेड सेलेरी का भाव है, लेकिन व्‍यापारी की कुण्‍डली में यह भाव उसे सर्विस सेक्‍टर से जोड़ता है।

तीनों श्रेणियों के व्‍यापारियों को आगे और भी श्रेणियों और कार्यक्षमताओं के आधार पर बांटा जा सकता है, लेकिन मोटे तौर पर यही तीन श्रेणियां रहेंगी।