पश्चिमी ज्योतिष की तेरहवीं राशिThirteenth Zodiac Sign in Western Astrology |
पाराशर, भृगु, कश्यप, गर्ग ऋषियों और इनके शिष्यों की सैकड़ों पीढि़यों ने जिन ज्योतिषीय गणनाओं को विकसित किया, वे अद्भुत हैं। उन्होंने पृथ्वी से दिखाई देने वाले आकाश को 360 डिग्री का मानते हुए उसे बारह बराबर भागों में बांट दिया। हर भाग को राशि नाम दिया गया। ये राशियां नक्षत्रों से मिलकर बनी हैं और नक्षत्रों तारों के समूह हैं।
इस प्रकार आकाश में दृश्यमान तारों के समूह राशियों के रूप में उद्घाटित हुए। हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं। हर राशि में ऐसे नौ चरण होते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि सवा दो नक्षत्रों से मिलकर एक राशि बनी है।
राशियों के क्रम और आकाश में इनकी स्थिति को लेकर परम्परागत भारतीय ज्योतिष में कभी भ्रम की स्थिति नहीं रही। जैसी कि हमें Western zodiac division में देखने को मिलती है।
इसके साथ ही हमारे ऋषियों ने यह ज्ञात कर लिया था कि पृथ्वी की चूंकि चार प्रकार की गतियां हैं और इनमें से तीन गतियां स्पष्ट रूप से ज्योतिषीय गणनाओं को प्रभावित करती हैं, सो समय के साथ गणनाओं में अपेक्षित सुधार भी प्रस्तावित कर दिए गए। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी की एक गति अपने अक्ष पर घूर्णन की है।
इससे दिन रात बनते हैं। ज्योतिषीय गणना में इसे अहोरात्र कहते हैं। इस गति के भी 24 भाग किए गए हैं। इन्हें होरा कहा जाता है। दिन के बारह घंटो की बारह होरा और रात के बारह घंटों की बारह होरा। पृथ्वी की दूसरी गति सूर्य के चारों ओर है। इसके लिए एक साल का समय लगता है। जब हम पृथ्वी पर खड़े होकर देखते हैं तो हमें सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ दिखाई देता है।
जबकि हकीकत में पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगा रही है। लेकिन एक ऑब्जर्वर की हैसियत से हम सूर्य की गति को देखते हैं। अब सूर्य की इस गति को राशियों के साथ बांध दिया गया और हम पाते हैं कि वर्ष के प्रत्येक एक महीने में सूर्य एक राशि में रहता है, इस प्रकार पूरे वर्ष के दौरान वह एक एक राशि में विचरण करता है।
मसलन इन दिनों सूर्य सिंह राशि में है। अब जब हम गणितीय विश्लेषण से यह ज्ञात करते हैं कि सूर्य सिंह राशि में है तो आकाश में भी वह सिंह राशि में दिखाई देना चाहिए, तभी यह सटीक गणना होगी कि सूर्य सिंह राशि में ही है। अन्यथा गणना का कोई औचित्य नहीं।
जब हम पश्चिमी ज्योतिषीयों की राशियों (Western zodiac division) को देखते हैं तो वे हमें एक राशि खिसकी हुई मिलती है। पश्चिमी ज्योतिषियों ने सूर्य की राशियों को जो दिन बांटे हैं उसके अनुसार 23 अगस्त से 23 सितम्बर तक का समय कन्या राशि के सूर्य का है। जबकि उसी दौरान आसमान में देखा जाए तो यह स्थिति दिखाई नहीं देती।
इस प्रकार का भेद क्यों आता है। इसका जवाब जानने के लिए हमें गणना पद्धतियों पर गौर करना होगा। पश्चिम के ज्योतिषियों के लिए सीईओ कार्टर ने पूर्व और पश्चिम के ज्योतिष के सभी विद्वानों को एकत्रित कर 1930 में एक निश्चित गणना दी, जो ग्रहों की गति बताती थी, लेकिन उस गणना में शोधन की गुंजाइश नहीं रखी गई थी।
एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य नकार दिया गया कि सूर्य भी आकाशगंगा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है। ऐसे में हर 63 साल में सूर्य एक अंश आगे खिसक जाता है। अब अगर हमें अपनी गणनाओं को दुरुस्त रखना है तो सूर्य की इस गति का करेक्शन भी करना होगा। इसी करेक्शन को भारतीय पद्धति में निरयण कहा जाता है।
सायन और निरयण का यही अंतर हमें गणना के स्तर पर कहीं अधिक सुदृढ़ बनाता है और पश्चिमी के ज्योतिषियों को भ्रमित छोड़ देता है। गणनाओं में सुधार नहीं होने के कारण आज जब हम करीब 24 डिग्री का करेक्शन कर रहे हैं वहीं पश्चिम में पुरानी गणनाओं को सपाट इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसका परिणाम यह हुआ कि जब हम आकाश के सिंह के सूर्य को कुण्डली में भी सिंह का देख रहे हैं, पश्चिम के ज्योतिषी उसे कन्या राशि का मानकर चल रहे हैं। गणित की इतनी बड़ी गलती के बाद फलित में भी गड़बड़ी होना स्वाभाविक है।
ऊपर दिए गए सभी तथ्यों को आप भूमिका मानें तो अब मूल बात अब शुरू होती है तेरहवीं राशि की। पश्चिम के ज्योतिषियों का गणित और फलित का झोळ समय के साथ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में फलादेशों में भी चूक होना स्वाभाविक है। हालांकि सीईओ कार्टर की हारमोनियस आस्पेक्ट्स किताब को देखें तो समझ में आता है कि भावों के बीच के अंतर्सबंध को उन्होंने कितनी खूबसूरती से समझा है, लेकिन जब गणना ही सही नहीं होगी तो फलन कैसे सही होगा।
ऐसे में गलत हो रहे फलादेशों के बीच एक नया क्षेपक और जुड़ा है तेरहवीं राशि का। पश्चिम के विद्वानों ने माना कि सूर्य स्थिर रूप से साल के निश्चित दिनों में निश्चित राशि में रहता है। ऐसे में राशियों को ऊपर दिखाए क्रम में जमाया गया था, लेकिन अब वृश्चिक और धनु राशि के बीच एक और राशि डाल दी गई है। इसे नाम दिया गया है “ओफ्यूकस”।
इसे 19 दिन का माना गया है। इसके चलते अब सभी राशियों के समय में बदलाव भी करना शुरू कर दिया गया है। लेकिन वास्तविक समस्या से यह गणना पद्धति अब भी दूर ही है। इस तरह नई राशि जोड़ देने से समस्या का समाधान तो नहीं हो पाएगा, बल्कि वह बढ़ जाएगी।
हां, एक बारगी पश्चिम की राशियां भारतीय सूर्य गणना के पास तो आ जाएंगी, लेकिन 360 डिग्री को बारह भागों में बांटकर बनाई गई 12 राशियों को खण्ड नए प्रकार में किस तरह होंगे और नक्षत्रों का वितरण किस प्रकार होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं किया गया है। नई गणना पद्धति के अनुसार राशियों को दिन बांटे गए हैं वे इस प्रकार हैं…
THE 13 ZODIAC SIGNS
ARIES = APRIL 19 – MAY 13
TAURUS = MAY 14 – JUNE 19
GEMINI = JUNE 20 – JULY 20
CANCER = JULY 21 – AUG 9
LEO = AUGUST 10 – SEPTEMBER 15
VIRGO = SEPTEMBER 16 – OCTOBER 30
LIBRA = OCTOBER 31 – NOVEMBER 22
SCORPIO = NOVEMBER 23 – NOVEMBER 29
SERPENTARIAN = NOVEMBER 30 – DECEMBER 17
SAGITTARIUS = DECEMBER 18 – JANUARY 18
CAPRICORN = JANUARY 19 – FEBRUARY 15
AQUARIUS = FEBRUARY 16 – MARCH 11
PISCES = MARCH 12 – APRIL 18
अब इससे आगे इस राशि को किन नक्षत्रों के साथ रखा जाएगा, इस राशि की क्या विशेषताएं गिनाई गई हैं, इस राशि के जातक किस प्रकृति के होंगे और सबसे महत्वपूर्ण कि पश्चिमी ज्योतिषी किस प्रकार ज्योतिष जैसे विषय को ऑकल्ट बताकर उसका मजाक बना रहे हैं, इन सभी बिंदुओं पर चर्चा अगली पोस्ट में। देखिएगा…
ज्योतिषीय आकाश का विभाजन